पिछले एक साल से अपने बच्चे की तलाश में दर दर भटकीं 22 साल की अनुपमा ने अब केरल के हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका को दायर कर दिया है। उनका आरोप है कि उनके पिता, जो कि सीपीआईएम नेता हैं, उन्होंने उनसे उनका बच्चा छीना और किसी को गोद दे दिया। उनका कहना यह भी है कि उनके बच्चे को बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित रखा गया।
अपनी याचिका में अनुपमा ने कहा कि उनके बेटे को उनसे उस समय दूर किया गया जब वो मात्र 4 दिन का था। उन्होंने बताया कि इस काम में उनके माता-पिता के साथ 4 अन्य लोग भी शामिल हैं। उनका कहना है कि माता पिता ने उनके बच्चे की पहचान छिपाने और उसे अनाथ बनाने की साजिश रची और बाद में उनके बच्चे को ‘अम्मा थोट्टिल’ को सौंप दिया जो कि बाल कल्याण समिति द्वारा संचालित संगठन है।
अनुपमा ने अपनी याचिका में अनुरोध किया है कि उनके बच्चे को उनके माता-पिता अदालत में लाकर पेश करें और उन्हें सौंपे। वह कहती हैं कि उनके बच्चे को कस्टडी में रखना पूरी तरह से अवैध है जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और उनकी इच्छाओं के विरुद्ध है।
बता दें कि अनुपमा और अजीत का बेटा 19 अक्टूबर को ही 1 साल का हुआ है। उसके जन्म के चंद दिन बाद ही अनुपमा के पिता व कम्युनिस्ट नेता जयचंद्रन ने उसे उसके माता-पिता से दूर कर दिया था। दरअसल कम्युनिस्ट पिता अनुपमा और अजीत के रिश्ते के खिलाफ था।
जयचंद्रन, सीपीआई (एम) के पेरूकाडा में स्थानीय कमेटी का सदस्य हैं और तिरुवनंतपुरम सेंटर ऑफ इंडिया ट्रेड यूनियन में जनरल सेक्रेट्री भी। शायद इसीलिए पार्टी नेताओं से लेकर अधिकारी और सीएम पिनराई विजयन तक ने इस मामले में अब तक हस्तक्षेप नहीं किया। उलटा अनुपमा को मानसिक तौर पर अस्थिर कहकर समझाया गया कि बच्चे को गोद दिया गया लेकिन अनुपमा की सहमति से… क्योंकि वो बच्चा पालने की हालत में नहीं थीं।
यहाँ बता दें कि अनुपमा ने जिस हैबियस कॉर्पस याचिका को दायर किया है उसे सामान्यत: ऐसे समझा जा सकता है कि ये एक रिट आदेश के रूप में जारी की जाती है। इसमें एक व्यक्ति को निर्देश दिया जाता है कि वो उस व्यक्ति को न्यायालय के सामने पेश करे और उस प्राधिकारी के न्यायालय को सूचित करे कि आखिर उसे क्यों अवैध तौर पर हिरासत में लिया गया था।
अब इसी हैबियस कार्पस याचिका के तहत अनुपमा ने कहा है कि उनके माता-पिता उनके बच्चे को वापस करें, जिसे उन्होंने अवैध रूप से कस्टडी में लिया था और अनाथ बताकर संस्था को दे दिया था। याचिका ने बाल कल्याण समिति पर भी आरोप लगाया है कि उन्होंने माँ के दावे के बाद बच्चे का डीएनए नहीं कराया और कानूनी अधिकारों का दुरुपयोग किया।