दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने गुरुवार (24 फरवरी) को एक अभियोग आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें साल 2020 में दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों (Delhi Anti Hindu Riot) के दौरान कथित भड़काऊ भाषण देने के वाले भाजपा के विभिन्न नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की माँग की गई थी। अदालत ने कहा कि इस याचिका को भविष्य के लिए लंबित नहीं रखा जाएगा।
अदालत शेख मुज्तबा फारूक द्वारा दायर एक लंबित मामले में एक वकील की ओर से दायर एक हस्तक्षेप आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसने भाजपा अधिकारियों अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अभय वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने और जाँच की माँग की थी।
याचिका दायर करने वाले वकील की ओर से अदालत में पेश होने वाले अधिवक्ता पवन नारंग के अनुसार, याचिकाकर्ता फारूक के पास याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा गया है कि जो लोग पुलिस के पास भी नहीं गए हैं, उनकी जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने अभियोग आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया।
हालाँकि, इस मामले में सोमवार (28 फरवरी) को सुनवाई होगी। अदालत 2020 के दिल्ली हिंदू विरोधी दंगों की स्वतंत्र एसआईटी जाँच की माँग करने वाली याचिकाओं के एक और समूह पर सुनवाई जारी रखेगी।
ध्यान देने वाली बात है कि पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट को उस लंबित याचिका पर ‘तीन महीने के भीतर’ तय करने के लिए कहा था, जिसमें भाजपा नेताओं कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा और अभय वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की माँग की गई थी। इस दंगे को 23 से 26 फरवरी 2020 के बीच पूर्वोत्तर दिल्ली में इस्लामवादियों द्वारा किए गए हिंदू विरोधी दंगों को अंजाम दिया गया था।
यहाँ बताना जरूरी है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों की जाँच कर रही दिल्ली पुलिस ने जुलाई 2020 में दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि उसे ‘कार्रवाई योग्य सबूत’ नहीं मिला है, जिससे पता चले कि इन नेताओं द्वारा इन दंगों में कोई भूमिका निभाई गई है।
दिल्ली दंगों के लिए बीजेपी नेता कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर पर गलत आरोप
दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के पारित होने के बाद शुरू हुआ दिल्ली में सीएए विरोधी प्रदर्शन हिंसक हो गया। 24 फरवरी 2020 को राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर भीड़ ने जमकर उत्पात मचाया था। उसके बाद वामपंथी मीडिया और लिबरल्स ने यह दावा करते हुए भाजपा नेता अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा को फँसाने की कोशिश की कि इनके ‘भड़काऊ’ बयान के बाद ही दंगे भड़के।
दिलचस्प बात यह है कि वामपंथी मीडिया ने यह स्वीकार करने से पूरी तरह से इनकार कर दिया कि चार्जशीट में साफ तौर पर उल्लेख किया गया है कि कैसे मुस्लिम नेताओं और वामपंथियों ने 5 दिसंबर 2019 तक हिंसा की योजना बनाना शुरू कर दिया था और हिंदू विरोधी दंगों तक मुस्लिम भीड़ द्वारा हिंसा की घटनाओं को लगातार अंजाम दिया जा रहा था।