मुंबई में 11 जुलाई 2006 को महज 11 मिनटों में एक के बाद एक कुल 7 धमाके हुए थे, जिसमें 209 की मौत हो गई थी, तो 700 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस केस में साल 2015 में मकोका कोर्ट ने पाँच आतंकवादियों को फाँसी की सजा और सात आतंकवादियों को उम्रकैद की सजा दी थी। इनमें से एक आतंकवादी एहतेशाम कुतबुद्दीन सिद्दीकी ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की थी कि उसे उन अधिकारियों की लिस्ट दी जाए, जिन्होंने मुंबई सीरियल ब्लास्ट केस में जाँच की थी और उसके खिलाफ सबूत जुटाए थे। इस मामले को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है और कहा है कि ऐसा करने से उन अधिकारियों की जिंदगी पर खतरा बढ़ जाएगा, जो देश के लिए काम करते हैं।
मुंबई सीरियल ब्लास्ट केस में मौत की सजा पाए एहतेशाम सिद्दीकी ने गृह मंत्रालय, आईबी और ट्रेनिंग डिपार्टमेंट (DoPT) से उन अधिकारियों के बारे में जानकारी माँगी थी, जिन्होंने उसके केस की जाँच की थी। जब इन विभागों ने आरटीआई के माध्यम से जानकारी देने से इनकार दिया, तो फिर उसने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर ये जानकारियाँ माँगी थी।
उसने दलील दी थी कि जिन अधिकारियों की नियुक्ति के 20 साल पूरे हो चुके हैं, उनकी नियुक्ति से जुड़ी फाइलों के बारे में आरटीआई से सूचना प्राप्त की जा सकती है, लेकिन न ही गृह मंत्रालय जवाब दे रहा है और न ही आईबी या नियुक्ति-ट्रेनिंग विभाग।
दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने मामले की सुनवाई की। हाई कोर्ट ने सुनवाई में पाया कि एहतेशाम सिद्दीकी उन अधिकारियो की जानकारी चाहता है, जिनकी जाँच में वो दोषी पाया गया। ऐसे में भले ही उनकी नियुक्ति के 20 साल पूरे हो चुके हों या उससे ज्यादा साल, उनकी जानकारियाँ देना खतरे से खाली नहीं है, उसमें भी तब, जब जानकारी माँगने वाला खुद आतंकवादी के तौर पर दोषी पाया गया हो और उसे मौत की सजा मिली हो। ऐसे में आरटीआई एक्ट के सेक्शन 8(1)(i) के तहत उनकी जानकारियाँ नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने ये भी पाया कि सिद्दीकी की तरफ से जो याचिका दाखिल की गई है, उसका पब्लिक से कोई लेना-देना नहीं।
दरअसल, एहतेशाम सिद्दीकी फाँसी की सजा पाए जाने के बाद से काफी एक्टिव रहा है। वो कभी वकालत की पढ़ाई के लिए कोर्ट से अनुमति माँगता है, तो कभी किसी न्यूजपेपर आर्टिकल के नाम पर खुद को बेगुनाह कहता है और सीरियल ब्लास्ट केस की फिर से जाँच की माँग करता है। इस मामले में पहले भी कोर्ट ऐसा आदेश दे चुकी है।
भयावह सीरियल ब्लास्ट से हिल गया था पूरा देश
मुंबई में चर्चगेट से निकली 7 पैसेंजर ट्रेनों में ये धमाके हुए थे। ये ट्रेनें एक ही स्टेशन से अलग-अलग दिशा में निकली थी। सारे धमाके 6 बजकर 24 मिनट से 6 बजकर 35 मिनट के बीच हुए थे। पहला धमाका चर्च गेट से उत्तर दिशा की ओर चली ट्रेन में खार रोड-सांताक्रूज के पास हुआ था, जिसमें 9 लोगों की मौत हुई थी। ये धमाका 6 बजकर 24 मिनट पर हुआ था।
दूसरा धमाका चर्च गेट से पूर्व दिशा की ओर चली लोकल ट्रेन में ठीक उसी समय 6.24 मिनट को बांद्रा-खार रोड पर हुआ था, जिसमें 22 लोगों की मौत हो गई थी। तीसरा धमाका उसके ठीक एक मिनट बाद स्लो लोकल में चर्चगेट-बोरीवली रूट पर जोगेश्वरी में हुआ था। इसमें 28 लोगों की जान गई थी।
इस सीरियल ब्लास्ट में चौथा धमाका चर्चगेट-बोरीबली रूट पर फास्ट लोकल में माहिम जंक्शन पर प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर हुआ, ये धमाका 6 बजकर 26 मिनट पर हुआ, जिसमें 42 लोगों की जान गई। पाँचवाँ धमाका चर्चगेट से उत्तर की दिशा में चली लोकल ट्रेन में मीरा रोड-भायंदर में हुआ, जो 6 बजकर 29 मिनट पर हुआ। इसमें 31 लोगों की जानें गई।
छठाँ धमाका चर्चगेट से विरार को जाने वाली फास्ट लोकल में 6.30 मिनट पर माटुंगा रोड-माहिम जंक्शन के बीच हुआ। इसमें 28 लोगों की मौत हो गई। सातवाँ धमाका चर्चगेट से विरार जा रही फास्ट लोकल में बोरीबली में हुआ, ये धमाका 6.35 मिनट पर हुआ। यहाँ 26 लोगों की जान गई। इसी जगह पर एक बम पाया गया, जिसे बाद में डिफ्यूज कर दिया गया। इस धमाके में कुल 209 लोगों की मौत हुई, तो कुल 714 लोग घायल हुए।
केस में 5 को फाँसी, 7 को उम्रकैद की सजा
साल 2006 के सीरियल ब्लास्ट केस में कुल 12 आतंकवादियों को दोषी पाया गया। इनका संबंध प्रतिबंधित संगठन सिमी से था। इस केस में पाँच आतंकियों को मकोका के तहत 30 सितंबर 2015 को मौत की सजा सुनाई गई, जिसमें फैसल शेख, आसिफ खान, कमाल अंसारी, एहतेशाम कुतुबदीन सिद्दीकी और नवीद खान के नाम हैं। वहीं, मोहम्मद साजिद अंसारी, मोहम्मद अली, डॉ तनवीर अंसारी, माजिद शफी, मुजम्मिल शेख, सोहैल शेख और जमीर शेख को उम्रकैद की सजा दी गई। इन आतंकवादियों को देश की अलग-अलग जेलों में रखा गया है।