दिल्ली में 24 और 25 फरवरी के दरमियान हुए हिंदू विरोधी दंगों में कट्टरपंथी उन्मादी भीड़ द्वारा 53 लोगों की हत्या कर दी गई थी। वहीं सैकड़ों लोग घायल भी हुए थे। यह घटना राष्ट्र की स्मृति में एक गहरा जख्म है। जिसको लोग चाह कर भी भुला नहीं सकते है। दिल्ली दंगों के दौरान वजीराबाद जाने वाली मेन रोड दिल्ली दंगे का मुख्य केंद्र था। जोकि हिंदू बहुल इलाके यमुना विहार और मजहबी इलाके चाँद बाग को बाँटता है।
यही वह जगह थी जहाँ मजहबी भीड़ द्वारा कांस्टेबल रतनलाल की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा इसी जगह पर एक और घटना घटी थी। जिसमें सप्तऋषि इस्पात और एलाय प्राइवेट लिमिटेड की बिल्डिंग से हो रहें हमले का जवाब मोहन नर्सिंग होम से दिया जा रहा था। जोकि हिंदू बहुल इलाके यमुना विहार में है। इस दौरान हिंदुओं और समुदाय विशेष के बीच हुए इस हमले में शाहिद नाम के एक व्यक्ति की पेट में गोली लगने की वजह से मौत हो गई थी।
उस वक्त खासतौर से वामपंथी मीडिया को प्रोपेगेंडा चलाने का एक मुद्दा मिल गया था। जिसमें मीडिया ने इस बात को प्रदर्शित किया कि किस तरह दंगों के दौरान हिंदुओं द्वारा निर्दोष लोगों का कत्ल किया जा रहा है। मीडिया इस एक घटना को आगे कर दिल्ली दंगों में हिंदुओ को दोषी ठहराने में जुटी थी। मीडिया ने लोगों के भावनाओं से खेलने के लिए सप्तऋषि भवन से उतारे गए शाहिद के शरीर को भी टेलीविजन पर दिखाया था। इसके साथ ही टीवी पर न्यूज़ एंकर्स यह भी बता रहें थे की किस तरह शाहिद को मारते समय हिंदू “गोली मारो सालो को” के नारे भी लगा रहे थे। जिसके जरिए यह माहौल बनाया गया कि मोहन नर्सिंग होम की छत से हिन्दू गोली चला रहे हैं।
हालाँकि, चार्जशीट के सामने आने के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि मीडिया जिस घटना की दलीले दे रही थी सच्चाई उससे बिलकुल विपरीत है। मीडिया ने जिस परिजयोना के तहत लोगों को गुमराह करने की कोशिश की, वह बात भी चार्जशीट आने के बाद विफल हो गई। चार्जशीट में घटना की हर कड़ी को स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया गया है। जैसे कि मोहन नर्सिंग होम की छत, सप्तऋषि इस्पात और एलाय प्राइवेट लिमिटेड की छत पर असल में हुआ क्या था? कैसे मुख्य वज़ीराबाद सड़क को मजहबी भीड़ द्वारा युद्ध क्षेत्र में बदल दिया गया था? इसके साथ ही शाहिद को लगी गोली के बारे में भी जिक्र किया गया है। जिसे हमें जानने की जरूरत है।
कैसे मेन वज़ीराबाद रोड पर दंगों को भड़काया गया: क्रोनोलॉजी
दिसंबर में मजहबी भीड़ द्वारा सीएए विरोधी दंगों की शुरुआत हुई थी। 24 दिसंबर को मेन वज़ीराबाद की सड़क दंगों की शुरुआती दौर के अहम हिस्सों में से एक बन गई थी। इसी जगह पर मजहबी भीड़ ने हिंसक रूप धारण कर इलाके में गश्त कर रही पुलिस पार्टी पर हमला करना शुरू कर दिया था। उसी दौरान इस हमले में पुलिसकर्मी रतन लाल की हत्या कर दी गई थी।
23 फरवरी को भीम आर्मी ने चाँद बाग से राजघाट तक मार्च निकालने का आह्वान किया था। भीम आर्मी की तरफ से निकाला गया यह मार्च एक अवैध मार्च था जिसे उस वक्त पुलिस ने रोक दिया था। जिसको लेकर एक समुदाय विशेष का ही गवाह (जिसका नाम गुप्त रखा गया है) ने पुलिस को बयान दिया था कि भीम आर्मी द्वारा बुलाए गए मार्च के लिए कई मजहबी, दलित और छात्र इकट्ठा हुए थे। जिसे पुलिस ने रोक दिया था। पुलिस ने बाद में वज़ीराबाद सड़क को भी सील कर दिया था। इस दौरान जाफराबाद के एक और विरोध स्थल पर हिंसा भड़कने की एक अफवाह फैली थी।
यह वह स्थान था जहाँ 23 तारीख को जेसीसी सदस्यों और अन्य लोगों के साथ मजहबी महिलाओं, विशेष रूप से पिंजरा तोड़ के सदस्यों ने मेट्रो रोड को ब्लॉक कर हिंसा को भड़काने का काम किया था। गौरतलब है कि चार्जशीट में, यहाँ यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि यह समुदाय विशेष के एंटी-सीएए लोग थे। जिन्होंने उन लोगों पर पत्थरबाजी और हमला करना शुरू कर किया था, जो सीएए विरोधियों द्वारा जाम किए गए रोड को खुलवाने की माँग कर रहे थे। यह बड़े पैमाने पर OpIndia द्वारा रिपोर्ट किया गया था।
इसके साथ ही सीएए विरोधियों ने 23 और 24 तारीख की रात को एक गुप्त बैठक आयोजित की थी। जहाँ दंगाइयों को 24 फरवरी के दंगों के लिए तैयार रहने के लिए कहा गया था। जिसमें उनको लाठी, पत्थर, ईंट, लोहे की रॉड जैसे अन्य हथियार लाने के निर्देश दिए गए थे। दिलचस्प बात यह है कि 24 फरवरी को हुए दंगों से 15 दिन पहले भी एक गुप्त बैठक हुई थी। उस बैठक में, अमेरिका के प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के दौरान दंगों को अंजाम देने की योजना बनाई गई थी। जिससे बाहरी मीडिया के सामने ज्यादा पब्लिसिटी पाने का मौका मिल जाए।
दायर चार्जशीट के अनुसार 24 तारीख को पुलिस कॉन्सटेबल रतन लाल की हत्या की गई थी। वहीं हिंसक भीड़ ने पुलिसवालों को भी घेर लिया था। इस घटना में सबसे पहले महिलाओं ने पुलिसवालों पर पथराव और हमले की शुरुआत की थी। फिर उस हमले में भीड़ में से पुरुष भी निकल कर शामिल हो गए थे। इस भयावह घटना में मजहबी भीड़ द्वारा कॉन्स्टेबल रतनलाल को मौत के घाट उतार दिया गया। इसके अलावा लगभग 40 अन्य पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए।
चार्जशीट के अनुसार, यह घटना 24 फरवरी 2020 को दोपहर 1:00 बजे हुई थी। उस दिन का दंगा डीएस बिंद्रा (जो मीडिया द्वारा एक मसीहा के रूप में गढ़ा गया था, जिसने शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों के लिए खाने का इंतजाम किया था) सफूरा जरगर, जेसीसी के सदस्य, पिंजरा तोड़ के सदस्य और स्थानीय कट्टरपंथी दंगाइयों जैसे अराजक तत्वों द्वारा रची गई एक बड़ी गहरी साजिश का एक हिस्सा था।
रतन लाल हत्याकांड में दायर चार्जशीट में 24 फरवरी की दोपहर 1 बजे तक हुई घटनाओं के बारे में बात की गई है, जबकि एक अन्य 68 नंबर चार्जशीट में रतन लाल की हत्या के बाद हुई घटनाओं के बारे में बताया गया है।
चार्जशीट नंबर: 68
चार्जशीट नंबर- 68 शाहिद की मौत से संबंधित है, जोकि पेट में गोली लगने से घायल हो गया था। 24 फरवरी को, अल्लाह मेहर के 25 वर्षीय बेटे शाहिद की पेट में गोली लगने से मौत हो गई थी। जब वह सप्तऋषि इस्पात और एलाय प्राइवेट लिमिटेड की छत पर हमले के समय मौजूद था। यह इमारत 25 फूटा चाँद बाग, मेन वजीराबाद रोड के पास एक सर्विस रोड पर स्थित है, जो चाँद बाग मजार के ठीक बगल में है।
यह घटना दोपहर लगभग 3 बजे हुई थी। इससे पहले रतन लाल की हत्या 1 बजे एक मजहबी भीड़ द्वारा की गई थी। चार्जशीट में यह भी शामिल है कि कैसे हिंदू मोहन नर्सिंग होम से पथराव कर रहे थे, जो कि यमुना विहार (हिंदू बहुल) में है। वहीं दूसरी ओर कट्टरपंथी दंगाई सप्तऋषि इस्पात और एलाय प्राइवेट लिमिटेड की इमारत से पथराव कर रहे थे, जो चाँद बाग में है। इन दोनों क्षेत्रों को मेन वजीराबाद रोड बाँटता है।
हालाँकि, इस गूगल मैप में मोहन नर्सिंग होम को देखा जा सकता है जबकि सप्तऋषि इस्पात और एलॉय प्राइवेट लिमिटेड मेंशन नहीं है। लेकिन चूँकि हमें पता है कि यह इसलिए मैप के ज़रिए समझाने की कोशिश की गई है।
रतन लाल की हत्या के ठीक बाद का मामला
चार्जशीट के अनुसार, 23 फरवरी को प्रदर्शनकारी अचानक 25 फूटा रोड के पास सर्विस रोड से मुख्य वज़ीराबाद रोड पर शिफ्ट हो गए। इससे ट्रैफिक जाम हो गया। इसके साथ ही प्रदर्शनकारियों ने पूरी सड़क को ब्लॉक कर दिया था। 24 फरवरी को सुबह से ही इस्लामिक मॉब द्वारा भड़काऊ और सांप्रदायिक नारे लगाए जा रहे थे और एहतियात के तौर पर इलाके में अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात किया गया था।
इस दिन, वज़ीराबाद रोड पर असामान्य संख्या में प्रदर्शनकारी एकत्रित होने लगे। बता दें रतन लाल हत्याकांड में दायर चार्जशीट में विशेष रूप से 23 की रात को हुए एक गुप्त बैठक आयोजित करने का उल्लेख किया गया था। जिसमें दंगाइयों को 24 तारीख को अधिक से अधिक लोगों को इकट्ठा करने और हथियारों को साथ लाने का निर्देश दिया गया था।
दोपहर 1 बजे मजहबी भीड़ ने पथराव और गोली चलाना शुरू कर दिया था। जिसकी वजह से रतन लाल की मौत हो गई और डीसीपी और एसीपी सहित कई अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस घटना के बाद 3 बजे के आसपास हिंदुओं ने भी मजहबी भीड़ के द्वारा किए जा रहें हमले पर जवाबी कार्रवाई करते हुए पथराव शुरू कर दिया। जिसके बाद कट्टरपंथी पीछे हट गए थे।
इन सभी घटनाओं को देखते हुए यह बात स्पष्ट रूप से साबित होती है कि हिंदुओं ने मजहबी भीड़ द्वारा किए जा रहें हिंसा पर प्रतिक्रिया देते हुए जवाबी कार्रवाई की थी। जबकि कट्टरपंथी पक्ष ने पथराव, गोली चलाने, लोहे की छड़ों और लाठी का उपयोग कर रतन लाल की हत्या की थी और कई अन्य अधिकारियों को घायल किया था।
चार्जशीट में आगे कहा गया है कि मजहब विशेष के दंगाई चाँद बाग इलाके में केंद्रित थे, जबकि हिंदू यमुना विहार तक सीमित थे। दोपहर 3 बजे, हिंदुओं और समुदाय विशेष वालों ने इमारतों की छत पर कब्जा कर लिया, जो मुख्य वजीराबाद सड़क पर स्थित अस्पताल के पास था। दोनों पक्ष आपस में पथराव करने लगे और यहाँ तक कि एक-दूसरे पर गोलियों की बौछार भी की।
यहाँ यह बात ध्यान देने लायक है कि वर्तमान चार्जशीट में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह दंगा विस्तृत रूप से एंटी-सीएए मॉब द्वारा योजनाबद्ध तरीके से किया गया था। जिसमें दंगाई, बिचौलिए और षड्यंत्रकारी मौजूद थे। इसके अलावा, चार्जशीट में यह भी कहा गया है कि जब उन्होंने भारतीय झंडे को फहराया था, उन झंडों के पीछे भारत का अपमान किया जा रहा था और सांप्रदायिक नारे लगाए जा रहे थे।
उस समय, मजहबी दंगाइयों ने जबरन सप्तऋषि इस्पात और एलाय प्राइवेट लिमिटेड की इमारतों में प्रवेश किया था।
चार्जशीट के मुताबिक़ मजहबी दंगाइयों ने इलाके में रहने वाले मज़दूरों और परिवारों को डराया-धमकाया। इसके अलावा उन पर दबाव बना कर घर खाली कराया और घरों पर कब्ज़ा किया। इसके बाद दंगाई लकड़ी का पटरा लगा कर इमारत के ऊपर तक पहुँचे। जिससे उन्हें वज़ीराबाद के मुख्य मार्ग पर निगरानी रखना आसान हो। इसके बाद उन्होंने इमारत से ही पत्थर और गोलियाँ तक चलाना शुरू कर दिया और ऐसा उन्होंने केवल पुलिस के साथ नहीं बल्कि हिंदुओं के साथ भी किया। उस इमारत की छत पर 25 साल की शाहिद की मृत्यु हुई थी। इस हिस्से को देख कर यह साफ़ हो जाता है कि शाहिद उन दंगाइयों में से एक था जिसने कट्टरपंथियों की तरफ से सप्तऋषि बिल्डिंग पर कब्ज़ा किया, फिर पुलिस वालों और हिंदुओं पर पत्थर और गोलियाँ चलाया।
सप्तऋषि इस्पात एवं अलॉय प्राइवेट लिमिटेड की इमारत में रहने वालों मज़दूरों का बयान भी इस घटनाक्रम की पुष्टि करता है।
जिन मज़दूरों को अपने पूरे परिवार के साथ घर खाली करने की धमकी मिली थी उनकी कहानी भी लगभग ऐसी ही थी। दिन के 3 बजे लगभग 30 मजहबी दंगाई इमारत में दाखिल हुए और मौके पर मौजूद हर इंसान को जगह खाली करने के लिए कहा। इसके बाद वह एक लकड़ी की सीढ़ी से छत तक पहुँचे। मज़दूरों ने अपने घरों को खाली करते हुए देखा कि कई लोग बोरियों में पत्थर और ईंट भर कर ले छत पर ले जा रहे थे। इतना ही नहीं कुछ दंगाइयों के पास भारी मात्रा में आग लगाने के उपकरण भी मौजूद थे। जब मजहबी दंगाई सप्तर्षि इस्पात एवं अलॉय प्राइवेट लिमिटेड की छत पर पहुँचे, इसके बाद विरोध में हिन्दू भी मोहन नर्सिंग होम की छत पर पहुँच गए।
दंगे के दौरान हुए शाहिद आलम के मौत का मामला
चार्जशीट में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जो स्पष्ट रूप से शाहिद आलम की मृत्यु का कारण बनीं। इसमें कहा गया है कि वह 24 फरवरी को दोपहर करीब 3:00 बजे सप्तऋषि इस्पात और एलॉय प्राइवेट लिमिटेड की छत पर था। दंगों के समय शाहिद के साथ, कई अन्य लोग बिल्डिंग की छत पर मौजूद थे और वहीं से पुलिस और हिंदुओं पर पथराव कर रहे थे। यह समय ऐसा था जब पुलिस ने इस स्थिति पर नियंत्रण खो दिया था।
उल्लेखनीय है कि उस समय हिंदू भी मोहन नर्सिंग होम की छत पर पहुँच गए थे और मजहबी भीड़ द्वारा किए जा रहे हमले पर जवाबी कार्रवाई कर रहे थे। लगभग 3:30 बजे, शाहिद के पेट में गोली लग गई थी। जब वह इमारत की छत पर मौजूद था। यह बात सिर्फ चश्मदीद गवाहों ने ही नहीं बल्कि एनडीटीवी के रवीश कुमार द्वारा होस्ट किए गए प्राइम टाइम शो पर भी प्रसारित किया गया था।
किस तरह एनडीटीवी और अन्य मीडिया हाउस ने इस मौत को मुद्दा बनाकर कैसे समुदाय विशेष वालों को निर्दोष साबित किया। इसकी चर्चा हम आपसे बाद में एक लेख के माध्यम से करेंगे।
उस दौरान एनडीटीवी ने दो वीडियो को प्रसारित किया था। एक वीडियो में शहीद आलम था, जिसे गोली लगने के बाद लकड़ी की सीढ़ी से नीचे खींचा जा रहा था। वहीं दूसरी वीडियो मोहन नर्सिंग होम की छत की थी। जहाँ से हिंदुओं द्वारा पथराव और गोलीबारी की जा रही थी।
चार्जशीट में कहा गया है कि शाहिद को नीचे खींचने वाली वीडियो असली है और न केवल पोस्टमॉर्टम वीडियो बल्कि शाहिद के परिजनों द्वारा भी पुष्टि की गई है। हालाँकि, चार्जशीट में कहा गया है कि वीडियो में, सप्तऋषि भवन पर इस्लामी दंगाइयों ने मुखौटे पहने रखे थे जिस वजह से उनकी पहचान नहीं की जा सकी।
चार्जशीट में आगे, एक चौंकाने वाली घटना का भी उल्लेख किया गया है।
चार्जशीट में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि मोहन नर्सिंग होम की छत से हिंदुओं की तरफ से की गई गोलीबारी के फुटेज की भी जाँच की गई। मोहन नर्सिंग होम और सप्तऋषि भवन के बीच की दूरी लगभग 78 मीटर है। शाहिद आलम के शरीर से निकली गोली के टुकड़े एक छोटे असलहे से निकली गोली के प्रतीत होते हैं और इसलिए, पुलिस का मानना है कि यह गोली मोहन नर्सिंग होम की ओर से चलाई गई गोली नहीं हो सकती है।
आखिरकार शाहिद को अस्पताल ले जाने वाले लोग कौन थे?
एनडीटीवी ने यह तो दिखाया कि कैसे शाहिद को सीढ़ी से नीचे घसीटा गया था। लेकिन उन्होंने वास्तव में यह नहीं दिखाया कि उसके शरीर को अस्पताल कैसे ले जाया गया या इसके बाद क्या हुआ। चार्जशीट में इस पहलू को विस्तार से बताया गया है। हालाँकि, यह विस्तृत रिपोर्ट मदीना अस्पताल के एक डॉ. मंसूर खान द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार है।
मंसूर खान ने शाहिद आलम का शव मिलने पर पीसीआर को कॉल किया था। कॉल में, डॉ.मंसूर ने कहा था कि कुछ लोग अस्पताल आए और एक ऐसे व्यक्ति के शरीर को छोड़ कर चले गए जिसे बंदूक के गोली की चोट लगी थी। यह फ़ोन 24 फरवरी को किया गया था और फोन करने वाले की पहचान पुलिस ने मदीना अस्पताल के एक डॉ. मंसूर खान के रूप में की थी।
यह बात सोचने लायक है कि जिन लोगों ने सप्तऋषि भवन की छत से सीढ़ी का उपयोग करके शाहिद को नीचे खींचा था वो बस मदीना अस्पताल के बाहर ही उसे छोड़ कर भाग गए। वहीं मदीना अस्पताल तक पहुँचाने वाले लोगों ने अस्पताल वालों को भी सूचित करना जरूरी नहीं समझा, कि शाहिद को चिकित्सा की आवश्यकता है। और उसके घावों को लेकर अस्पतालवालों को सूचित कर दें।
चार्जशीट के अनुसार, यह सारे तथ्य इस ओर इशारा करते है कि दंगाइयों ने उन सभी बातों का ध्यान रखा जिससे कि उनकी पहचान छिपी रहे और सच्चाई सबके सामने न आ सकें।
एनडीटीवी द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो से यह स्पष्ट है कि, यह इस्लामी लोग ही थे जिन्होंने सप्तऋषि भवन की छत से शाहिद को नीचे खींचा था। इस प्रकार यह भी स्पष्ट है कि उन लोगों ने ही शाहिद को मदीना अस्पताल पहुँचाया होगा, जब उसे बंदूक की गोली लगी थी। पहचान न पता चले इसलिए कोई भी शाहिद को देखने अस्पताल नहीं पहुँचा। जिसके बाद अस्पतालवालों ने शाहिद के शव को डंप कर दिया। फिर बाद में उसके परिजनों ने अस्पताल पहुँच कर शव को लेकर दावा किया था।
चार्जशीट के खुलासों के बाद उठे सवाल और निष्कर्ष
पिछले सभी चार्जशीट के साथ-साथ चार्जशीट नंबर 68 से यह स्पष्ट होता है कि दंगे की शुरुआत कट्टरपंथियों द्वारा की गई थी और शाहिद की मौत हिंदुओं के कारण नहीं हुई थी।
आखिरकार कैसे शाहिद मारा गया?
23 फरवरी को, दो अलग-अलग घटनाएँ हुईं। एक वज़ीराबाद रोड पर अवैध मार्च था जिसे पुलिस ने रोक दिया। दूसरा, वह हिंसा थी जिसमें समुदाय विशेष वालों ने जाफराबाद में हिंदुओं पर पथराव करना शुरू कर दिया था। इसके बाद, दंगाइयों और षड्यंत्रकारियों के बीच एक गुप्त बैठक हुई जो अवैध मार्च का आयोजन कर रहे थे। जिन स्थानीय दंगाइयों को गिरफ्तार किया गया, उनमें सफूरा जरगर, एआईएमआईएम के डीएस बिंद्रा जैसे अन्य लोग दंगों की साजिश रचने में शामिल थे।
चार्जशीट के अनुसार, गुप्त बैठक में दंगाइयों को अगले दिन (24 फरवरी, 2020) को हथियार लाने के लिए कहा गया था और साथ ही अधिक से अधिक लोगों को अपने साथ लाने के भी लिए कहा गया था। अभियुक्तों और गवाहों के बयानों में, दंगाइयों को यह भी कहा गया था कि वे दंगों के दौरान पुलिस से मुठभेड़ करेंगे और उन्हें निपटा देंगे।
24 तारीख को लगभग 1 बजे मेन वज़ीराबाद रोड पर असामान्य रूप से कई लोगों की भीड़ जमा हो गई और दंगा शुरू हो गया था। इस्लामवादी मजहबी भीड़ ने पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया और लोहे की छड़, तेजाब की बोतल, लाठी, पत्थर, ईंट आदि से पुलिस को पीटा। इस प्रक्रिया में 40 से अधिक पुलिस अधिकारी घायल हो गए और रतन लाल की उसी भीड़ ने हत्या कर दी।
दोपहर 3 बजे, हिंदुओं ने जवाबी कार्रवाई करने का फैसला किया। वे यमुना विहार (हिंदू बहुल) में एकत्र हुए और उस वक्त सारे कट्टरपंथी चाँद बाग में इकट्ठा थे। वज़ीराबाद रोड दो क्षेत्रों को आपस में बाँटता है। मोहन नर्सिंग होम से बचाव में हिंदुओं ने पथराव और फायरिंग शुरू कर दी, जबकि सप्तऋषि बिल्डिंग कट्टरपंथियों के कब्जे में जहाँ मजहबी दंगाई भरे थे, जिन्होंने उस इमारत में मौजूद मजदूरों को धमकी देकर पहले ही भगा दिया था। और जबरदस्ती वहाँ पर कब्जा कर लिया था।
इस दौरान शाहिद को गोली लग गई और उसकी मौत हो गई। जिसके बाद उसे लकड़ी की सीढ़ी का इस्तेमाल करके इमारत की छत से नीचे लाया गया था। इस दृश्य को वामपंथी मीडिया ने खूब प्रसारित कर यह दावा किया था कि समुदाय विशेष के एक निर्दोष युवक को हिंदुओं ने मार दिया।
शाहिद की हत्या कैसे हुई
चार्जशीट में स्पष्ट रूप से एक बात का उल्लेख किया गया है कि मोहन नर्सिंग होम और सप्तऋषि भवन के बीच की दूरी लगभग 78 मीटर है। इसके अलावा, चार्जशीट में कहा गया है कि शाहिद के शरीर से मिले बुलेट के टुकड़े से पता चलता है कि गोली एक छोटे हथियार से चलाई गई थी, इसलिए दूरी के कारण मोहन नर्सिंग होम से चली गोली (शाहिद के शरीर में मिली गोली) नहीं हो सकती है।
अभी भी यह सवाल उठता है कि आखिर शाहिद को किसने मारा
इस दंगे के दौरान लोग एक दूसरे पर पथराव और गोलियाँ चला रहे थे। जिसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि ये सिर्फ ‘दूसरे पक्ष’ को ही लगेंगे। जबकि दोनों भवनों के बीच की दूरी लगभग 78 मीटर है। फिर भी शाहिद को गोली जिससे यह साबित होता है कि शाहिद खुद दंगाई था और वहीं मौजूद था। और जो सप्तऋषि भवन की छत के ऊपर से पुलिस और हिंदुओं पर पथराव कर रहा था। अब चूँकि दूरी ज़्यादा है तो उसे गोली हिंदू पक्ष (मोहन नर्सिंग होम) से नहीं लग सकती थी। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि खुद कट्टरपंथियों द्वारा दागी गई गोलियाँ लगने से शाहिद की मौत हुई है।
इस मामले में दाखिल चार्जशीट में भी अब तक के सभी आरोपित समुदाय विशेष से हैं जैसे कि मोहम्मद फिरोज, चाँद मोहम्मद, रईस खान, एमडी जुनैद, इरशाद और अकिल अहमद।
शाहिद के शरीर को एक अस्पताल के सामने गुमनाम रूप से क्यों फेंक दिया गया था और यह क्या दर्शाता है?
मदीना अस्पताल के डॉ. मंसूर खान ने अपने बयान में कहा है कि शाहिद के शव को अस्पताल के सामने गुमनाम तरीके से फेंक दिया गया था। जिसके बहुत बाद में उसका परिवार शाहिद के शव का दावा करने आया था। जिसको लेकर पुलिस ने चार्जशीट में निष्कर्ष निकाला है कि दंगाइयों द्वारा यह अपने पहचान को छिपाने के लिए एक साजिश के तहत किया गया था।
एनडीटीवी के क्लिप से भी यह स्पष्ट होता है कि यह समुदाय विशेष का पक्ष ही था जिसने शव को नीचे खींचा था, वही शाहिद को अस्पताल ले गए थे। लेकिन उसके बाद अपने ही लोग शाहिद के शरीर को छोड़ कर क्यों भाग गए थे? यदि हिंदुओं ने वास्तव में शाहिद को मार दिया था, तो क्या यह शाहिद के परिवार (उनके भाई भी उनके साथ छत पर थे) वालों पर निर्भर नहीं करता कि वो पुलिस को बुलाए और शिकायत दर्ज कराएँ?
क्या उनके परिवारवालों को यह सुनिश्चित नहीं करना चाहिए था कि वे शाहिद को अस्पताल में भर्ती कराएँ और उसके शरीर पर लगे घाव का इलाज कराएँ? क्या यह मायने नहीं रखता कि उसके परिवार और दोस्त शाहिद के साथ हॉस्पिटल में रुके? क्या उन्हें पुलिस को अपना बयान दर्ज नहीं करना चाहिए था कि कैसे हिंदुओं ने शाहिद को मारा था?
किसी ने भी घटना के बाद शाहिद को लेकर कोई कदम नहीं उठाया। समुदाय विशेष के लोग केवल मदीना अस्पताल के सामने शाहिद के शरीर को छोड़ कर भाग गए और बहुत बाद में केवल परिवार के लोग शाहिद के शव पर दावा करने के लिए अस्पताल पहुँचे।
कट्टरपंथियों का यह व्यवहार यह साबित करता है कि वे पहले से जानते थे कि शाहिद को वास्तव में अपनी तरफ से हुए हमले के दौरान इस्तेमाल की गई गोलियाँ लगी थी। जिसके बाद उसकी मौत हो गई। फिलहाल, चार्जशीट में यह बात इतनी स्पष्ट रूप से नहीं बताई गई है। हालाँकि, तथ्यों के जरिए इस ओर इशारा जरूर किया गया है।
यदि वास्तव में ऐसा था, तो आखिरकार मीडिया ने एक नकली कहानी क्यों चलाई? जब शाहिद को छत से नीचे खिंचा जा रहा था तब खासतौर पर वहाँ वामपंथी मीडिया मौजूद था। क्या उन्हें पता नहीं चला कि बाद में शाहिद का शरीर कहाँ गया? उन्होंने समुदाय विशेष वालों द्वारा शाहिद के शरीर को मदीना हॉस्पिटल के बाहर छोड़कर भागने पर सवाल क्यों नहीं उठाया? क्या वामपंथी मीडिया और कट्टरपंथी दंगाइयों के बीच हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए पहले से कोई साँठगाँठ थी?
ऐसे कई सवाल है, जिनका जवाब देना अब भी बाकी है।
मोहन नर्सिंग होम की छत पर हिंदू क्या कर रहे थे?
चार्जशीट में इस बात से कहीं भी मना नहीं किया गया कि हिंदू समुदाय के लोग मोहन नर्सिंग होम की छत पर नहीं थे और वहाँ से कट्टरपंथियों पर पत्थर नहीं फेंक रहे थे। ये बातें साफ हैं कि हिंदुओं ने उस भीड़ पर प्रतिकार किया था जो उस दिन इलाके में उन्मादी हो रखी थी। इतना ही नहीं आरोप पत्र में यह भी लिखा है कि हिंदुओं ने 3 बजे के बाद जवाबी कार्रवाई करनी शुरू की यानी कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या के घंटो बाद हिंदुओं ने जवाब दिया। जिससे भारी तादाद में इकट्ठी भीड़ को पीछे हटना पड़ा। यहाँ ये भी गौर करने वाली बात है कि हिंदुओं ने जिस भीड़ को जवाबी कार्रवाई से पीछे धकेला वो पुलिस पर हमले कर रही थी। यानी अगर हिन्दुओं ने वहाँ प्रतिकार नहीं किया होता तो वह भीड़ न सिर्फ़ हिंदुओं पर हमला करती बल्कि कई और पुलिस अधिकारियों को भी निशाना बनाती।
इस पूरे दंगे का आरोप हिंदुओं पर मढ़ना न्याय पर आघात और सच्चाई से मुँह मोड़ने जैसा है। जिसे कुछ वामपंथी और एजेण्डाबाज पत्रकार अपना हिंदू विरोधी एजेंडा चलाने और इस्लामिक कट्टरपंथियों को बचाने के लिहाज से जानबूझकर कर चला रहे हैं। इस्लामिक मॉब द्वारा सावधानीपूर्वक पूरी तैयारी के साथ खूनी हिंसा की योजना बनाई गई थी। जिसे ग्राउंड रिपोर्ट के साथ-साथ चार्जशीट के माध्यम से विशेष रूप से ऑपइंडिया द्वारा एक्सेस किए रिपोर्ट में विस्तृत तरीके से बताया गया है। हिंदुओं द्वारा ‘हिंदू विरोधी दंगों’ की शुरुआत करने का कोई भी आरोप एक झूठ का पुलिंदा है। खासतौर से वामपंथी मीडिया ने सिर्फ अपना फेक नैरेटिव गढ़ने के लिए उस वक्त मोहन नर्सिंग होम की आड़ में दंगाइयों को बचाने के लिए हिंदुओं को निशाना बनाया था।
नोट: दिल्ली हिन्दू विरोधी दंगों में दाखिल चार्जशीट पर आधारित ऑपइंडिया की इस विस्तृत रिपोर्ट का अनुवाद ऋचा सोनी ने किया है।