शराब घोटाले में जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने कोर्ट में अपनी बात रखी है। ED ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अरविंद केजरीवाल से अन्य कैदियों से अलग व्यवहार इसलिए नहीं किया जा सकता कि वे राजनेता हैं। एजेंसी ने कहा कि ऐसा करना मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के अधिकार के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।
प्रवर्तन निदेशालय ने 24 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हलफनामा दायर किया। इसमें एजेंसी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की धारा 19 के तहत आवश्यक सामग्री के कब्जे पर आधारित थी, जो अपराध में उनके शामिल होने का संकेत देगी। एजेंसी ने यह भी कहा कि सबूतों को मिटाना भी उनके अपराध में शामिल होने का संकेत देता है।
इसके अलावा, ED ने कहा कि आरोपितों ने मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के सबूतों को नष्ट करने के लिए सचेत प्रयास किए। हलफनामे में कहा गया है, “सबूत नष्ट करना पीएमएलए की धारा 50 (जो खुद कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य है) के तहत इन आरोपितों के बयानों की पुष्टि है और साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में इन आरोपियों की संलिप्तता है।”
एजेंसी ने अरविंद केजरीवाल के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि उनकी गिरफ्तारी आगामी लोकसभा चुनावों के कारण हुई है। ED के हलफनामे के अनुसार, “सामग्री के आधार पर अपराध करने वाले किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, कभी भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा का उल्लंघन नहीं है।”
प्रवर्तन निदेशालय ने आगे तर्क दिया कि अगर अरविंद केजरीवाल की बात को स्वीकार कर लिया जाता है तो अपराधी राजनेताओं को इस आधार पर गिरफ्तारी से छूट मिल जाएगी कि उन्हें चुनाव में प्रचार करना आवश्यक है। ईडी के सबूतों को लेकर कहा कि शराब घोटाले की जाँच में बड़े पैमाने पर सबूतों को नष्ट करने की कोशिश की गई और इसे इसी पृष्ठभूमि को देखा जाना चाहिए।
हलफनामे में ED ने कहा, “घोटाले की अवधि में और जब 2021-22 की दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति में घोटाला और अनियमितताएँ सार्वजनिक हो गईं, तब 36 व्यक्तियों (आरोपित और इसमें शामिल अन्य व्यक्तियों) द्वारा कुल 170 से अधिक मोबाइल फोन बदले/नष्ट किए गए।”
इसमें आगे कहा गया है, “घोटाले और धन के लेन-देन के महत्वपूर्ण डिजिटल सबूतों को आरोपियों और इसमें शामिल अन्य व्यक्तियों द्वारा सक्रिय रूप से नष्ट कर दिया गया है। सबूतों के इतने सक्रिय और आपराधिक विनाश के बावजूद एजेंसी महत्वपूर्ण सबूतों को फिर से हासिल करने में सक्षम रही है, जो सीधे तौर पर प्रक्रिया में याचिकाकर्ता का खुलासा करती है।”
अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मामले को स्पष्ट करते हुए ED ने कहा, “100 करोड़ रुपए की रिश्वत राशि के लिए याचिकाकर्ता ने एक नीति बनाई, जिससे भुगतान की गई रिश्वत की वसूली की सुविधा हुई। रिश्वत देने वाले (इंडोस्पिरिट्स) ने थोक मुनाफे की आड़ में 192 करोड़ रुपए वसूले। जिस नीति ने थोक व्यापारी का मुनाफ़ा 12% तय किया, उससे दी गई रिश्वत की वसूली संभव हो गई।”
ED ने आगे कहा, “इस प्रकार वसूल की गई रिश्वत राशि को बेदाग थोक विक्रेता के लाभ के रूप में पेश किया गया। इस प्रकार याचिकाकर्ता एक नीति बनाने में सक्रिय रूप से सहायता करके अपराध की आय से जुड़ी प्रक्रिया या गतिविधि में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल था, जो थोक लाभ की आड़ में रिश्वत देने वालों द्वारा रिश्वत की वसूली को सक्षम करेगा।”
दरअसल, अरविंद केजरीवाल ने शराब घोटाले में ED द्वारा की गिरफ्तारी को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन उनकी याचिका खारिज हो गई थी। इसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट पहुँचे थे। हाई कोर्ट की जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने कहा था कि इस बात के सबूत हैं कि घोटाले में केजरीवाल की संलिप्तता थी और रिश्वत के रूप में प्राप्त धन का इस्तेमाल 2022 के गोवा विधानसभा चुनावों में प्रचार के लिए किया गया था।