बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ इसलिए कि लड़का और लड़की अलग धर्म से हैं किसी रिश्ते को लव जिहाद नहीं कहा जा सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने आरोपित मुस्लिम महिला और उसके परिवार को अग्रिम जमानत दे दी। इस मामले में पीड़ित हिंदू व्यक्ति का आरोप था कि उसे लव जिहाद में फँसाकर धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया। यही नहीं, जबरन खतना कराने का भी आरोप लगाया था।
गत 26 फरवरी 2023 को हुई सुनवाई में जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और अभय वाघवासे की खंडपीठ ने लव जिहाद के तर्क को खारिज करते हुए कहा है कि पीड़ित ने एफआईआर में कहा था कि उसके और आरोपित महिला के बीच संबंध था। साथ ही कई मौकों के बाद भी दोनों ने संबंध समाप्त नहीं किए। ऐसे में सिर्फ इसलिए कि लड़का और लड़की अलग-अलग धर्मों से हैं। यह लव जिहाद का मामला नहीं हो सकता। बल्कि यह एक-दूसरे के लिए पूरी तरह से प्रेम का मामला हो सकता है।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले को लव-जिहाद का रंग देने की कोशिश की गई है। जब प्यार को स्वीकार कर लिया जाता है तो किसी को सिर्फ दूसरे के धर्म में परिवर्तित करने के लिए फँसाए जाने की संभावना कम होती है।
क्या था मामला…
पीड़ित ने आरोप लगाते हुए कहा था कि वह साल 2018 से मुस्लिम महिला के साथ संबंध में था। वह अनुसूचित जाति समुदाय का है। लेकिन उसने इस बारे में महिला को नहीं बताया था। कुछ समय तक रिश्ते में रहने के बाद महिला उस पर इस्लाम कबूल कर शादी करने का दवाब बनाने लगी। इसके बाद पीड़ित ने महिला के माता-पिता को अपनी जाति के बारे में बता दिया। इस पर महिला के परिवार वालों ने उसकी जाति को लेकर कोई आपत्ति नहीं की।
हालाँकि इसके बाद पीड़ित व्यक्ति ने दिसंबर 2022 में महिला और उसके परिवार वालों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। पीड़ित का आरोप था कि महिला और उसके परिवार ने उसे धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया। साथ ही, जबरन उसका खतना करा दिया गया था। इसके अलावा जाति को लेकर भी उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया था।