लीगल राइट ऑब्ज़र्वेटरी (LRO) द्वारा दायर एक शिकायत पर संज्ञान लेते हुए आयकर विभाग ने एक्टर-सिंगर दिलजीत दोसांझ द्वारा कथित तौर पर भारत में चल रहे किसान विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित करने के लिए यूके/कनाडा से लिए गए फंड की तफ्तीश शुरू की है।
India’s Income Tax Dep’t has launched a probe into Punjabi label company Speed Records and singer Diljit Dosanjh for allegedly routing funds from the UK to sustain the ongoing farmer agitation.
— Dhairya Maheshwari (@dhairyam14) January 2, 2021
A formal complaint was filed by @LegalLro on 27 December.#FarmerProtests pic.twitter.com/4wO6mfwNq9
दोसांझ के अलावा किसानों के आंदोलन के वित्तपोषण के मद्देनजर पंजाबी म्यूजिक लेबल स्पीड रिकॉर्ड्स की भूमिका भी आयकर विभाग की जाँच के दायरे में है।
गौरतलब है कि 27 दिसंबर को लीगल राइट ऑब्ज़र्वेटरी (एलआरओ) ने विजय पटेल द्वारा साझा किए गए रिसर्च के आधार पर एक शिकायत दर्ज की थी। पटेल ने आरोप लगाया था कि स्पीड रिकॉर्ड्स नामक कंपनी चालाकी से मनी लॉन्ड्रिंग और रूटिंग गतिविधियों में शामिल रही है और किसान विरोधी आंदोलन को जारी रखने के लिए फंडिंग कर रही है। यही नहीं इस कंपनी का संबंध खालिस्तानी संगठन खालसा एड के साथ भी है।
वहीं एलआरओ ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि स्पीड रिकॉर्ड विभिन्न नामों के तहत वर्ष 2011 से 2020 तक खुद को पंजीकृत किया है। यह कंपनी एक ही पते और पदाधिकारी के साथ पंजीकृत है और इसके पदाधिकारी के रूप में काम करने वाले कर्मचारी संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त हैं। कंपनी ने भारत विरोधी गतिविधियों में भारतीयों को भी शामिल किया है जैसे कि CAA विरोधी दंगे और अब किसान आंदोलन।
LRO ने कहा, “यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस लुप्त हो रही कंपनियों के कुछ मामले और इसके पदाधिकारियों में एक विस्तृत नेटवर्क देखा गया है, जो सरकारी संस्थाओं की आँख में धूल झोंकने के विचार के साथ स्थापित किया गया है। ये कंपनियाँ भारत में राष्ट्र-विरोधी और अलगाववादी गतिविधियों को वित्त पोषण और समर्थन देने की सुविधा भी प्रदान करती है।”
बता दें कि यूके स्पीड रिकॉर्ड्स नाम की एक निष्क्रिय निजी लिमिटेड कंपनी थी, जोकि यूके के निदेशक काका सिंह मोहनवालिया उर्फ सुंदर सिंह खाख के साथ इनकॉरपोरेटेड थी। वहीं स्पीड रिकॉर्ड्स इंडिया कंपनी के मालिक रहे दिनेश औलुक ने कंपनी की स्थापना के एक महीने बाद 5 अगस्त 2013 को अपने कार्यालय से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद इस कंपनी को 9 सितंबर 2014 को डिजॉल्व कर दिया गया।
इसके अलावा संदिग्ध व्यक्तियों द्वारा लगाए गए अन्य शेल कंपनियों में भी इसी तरह की अनियमितताएँ देखी गईं। स्पीड यूके आरईएस लिमिटेड नाम की एक अन्य कंपनी को 21 जून 2013 को शामिल किया गया था। दिनेश औलुक 8 जुलाई 2013 को इस कंपनी में शामिल हुए और 20 जुलाई 2013 को केवल 12 दिनों में अपने कार्यालय से इस्तीफा दे दिया। इस कंपनी को भी 3 फरवरी 2015 भंग कर दिया गया था।
इसी तरह LRO ने शिकायत में आरोप लगाया कि स्पीड यूके रिकॉर्ड्स लिमिटेड 19 अगस्त 2013 को शामिल की गई एक अन्य कंपनी थी और 31 मार्च 2015 को भंग कर दी गई थी। इसमें लिस्टेड पदाधिकारी सुदीप सिंह खाख और डॉ. सरप्रीत सिंह मेहट थे। वहीं स्पीड रिकॉर्ड्स लिमिटेड नामक एक अन्य कंपनी को 20 जुलाई 2020 को केवल एक निदेशक डॉ.गुरप्रीत सिंह धमरत के साथ शामिल किया गया था।
LRO ने अपने शिकायत में अभिनेता-सिंगर दिलजीत दोसांझ द्वारा देश में चल रहे किसानों के आंदोलन का समर्थन करने के लिए दिए गए पैसों पर भी सवाल उठाए। इसमें आरोप लगाया गया कि फेमस एसटीडी लिमिटेड नाम की एक और कंपनी को 9 अगस्त 2016 को शामिल किया गया। इसके डायरेक्टर्स सुंदीप सिंह खख और दलजीत सिंह थे। इस कंपनी को भी 16 जनवरी 2018 को भंग कर दिया गया था।
दिलचस्प बात यह है कि दलजीत सिंह और दिलजीत दोसांझ की जन्म तिथि एक है। दोनों का जन्म जनवरी 1984 में हुआ था। हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों व्यक्ति एक ही हैं।
इसके अतिरिक्त शिकायत में यह भी कहा गया है कि दिलजीत दोसांझ को अपने सांझ फाउंडेशन के माध्यम से आयोजित संगीत कार्यक्रमों के लिए मानदेय मिलता है, जोकि भारत में काम करने के लिए एफसीआरए के तहत रजिस्टर्ड नहीं है।
उल्लेखनीय है कि दिलजीत दोसांझ मौजूदा किसानों के विरोध प्रदर्शन के मुखर समर्थक रहे हैं और उन्होंने किसानों के लिए 1 करोड़ रुपए का दान भी किया है। बता दें कि इससे पहले भी पंजाबी सिंगर दिलजीत दोसांझ, मिस पूजा और गिप्पी ग्रेवाल और दो पंजाबी फिल्म मेकर कंपनियों के परिसरों पर वर्ष 2012 में आईटी का छापा मारा था।
इसके अलावा शिकायत में पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल का भी जिक्र करते हुए कहा गया है कि सांझ फाउंडेशन के पंजीकृत कार्यालय के पते को लेकर सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया गया था, जिसमें शिकायतकर्ता के वकील ने अदालत में कहा था कि सुखबीर सिंह बादल ने कथित रूप से अपने पते को छिपाने की कोशिश करते हुए उसका एड्रेस दे दिया था। बता दें कि यही पता सांझ फाउंडेशन का पंजीकृत कार्यालय का भी है।