गुजरात के मोरबी में हुई घटना ने सबको हिला कर रख दिया है। कहा जा रहा है कि करीबन 141 लोग इस पुल टूटने के कारण मारे गए। वहीं 200 से ज्यादा लापता हुए। ये पहली बार नहीं है जब मोरबी में इतना बड़ा संकट आया। 43 साल पहले एक ऐसी ही घटना 11 अगस्त 1979 को घटी थी। उस दौरान मच्छू डैम बुरी तरह टूट गया था और देखते ही देखते पूरा शहर पानी में डूब गया था। हजारों लोग उस घटना में मारे गए थे। हर जगह बस मलबा ही मलबा और लाशें ही लाशें थीं।
पीएम मोदी ने भी इस घटना के बारे में बात करते हुए एक बार बताया था कि 11 अगस्त 1979 को लगातार तीन दिन बारिश होने के कारण मच्छू नदी का बाँध टूट गया था और हर जगह भीषण तबाही मची थी। उन्होंने साल 2017 में भी चुनाव के दौरान इस घटना को याद दिलाया था। उन्होंने कहा था कि जब इंदिरा गाँधी मुआएना करने आईं थी तो इलाके में नाक बंद करके आई थीं। वहीं आरएसएस के कार्यकर्ता कीचड़ में घुस-घुसकर लोगों की मदद कर रहे थे।
30 अक्टूबर 2022 को मोरबी में 140 साल पुराना पुल टूटने के कारण हुए हादसे के बाद लोग एक बार फिर से 43 साल पहले की उसी घटना को याद कर रहे हैं। कहते हैं कि जब इलाके से पानी निकला तो वहाँ का नजारा दर्दनाक था। खंबों पर न केवल घर के सामान लटके थे बल्कि उनके साथ इंसानों और जानवरों के शव भी वहीं लटके थे। हर जगह सिर्फ लाश ही लाश थी। कहीं इंसानों के शव सड़ रहे थे तो कहीं जानवरों के।
जो टीमें राहत कार्य में जुटकर स्थिति सुधारने की कोशिश कर रही थीं, पता चला उन्हें भी बाद में बीमारी का शिकार होना पड़ा था। कई दिनों तक उन लोगों के शरीर में दर्द जैसी शिकायतें रहीं। वहीं वो दुर्गंध भी उनके दिमाग से उतरने का नाम नहीं ले रही थी। कहते हैं जब शवों को दाह संस्कार हुआ तो पूरा मोरबी श्मशान जैसा हो गया था।
रिपोर्ट के अनुसार, हादसे में 1439 लोग मरे थे और 12,849 जानवर। वहीं विकिपीडिया का दावा है कि इस त्रासदी में 1800 से 25000 लोगों ने अपनी जान गँवाई थी और डैम टूटने से लगभग 100 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। पुरानी तस्वीरें देख साफ अंदाजा लगता है कि कैसे मात्र 15 मिनट में पानी के बहाव ने पूरी तबाही मचाई थी। लोगों के पास संभलने का भी मौका नहीं था। बहाव इतना तीव्र था कि न मकान बचे थे और न ही मजबूत इमारतें…।