Friday, March 29, 2024
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राजस्थान में अस्पताल छोड़ सड़क पर डाॅक्टर, महिला चिकित्सक ने गोलगप्पे का लगाया ठेलाः ‘राइट टू हेल्थ’ बिल वापस लेने की माँग

राइट टू हेल्थ बिल या स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक 2022 के अंतर्गत किसी भी स्थिति में कोई भी अस्पताल मरीज के इलाज के लिए मना न करने का प्रावधान है। डॉक्टर अब इसी कारण विरोध कर रहे हैं कि अगर वह मरीजों का इलाज मुफ्त में करेंगे तो अस्पताल का खर्चा कैसे वहन होगा।

राजस्थान में डॉक्टरों की भीड़ सड़क पर है। वह सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह विरोध अशोक गहलोत सरकार द्वारा पास किए गए ‘राइट टू हेल्थ’ (Right to Health) बिल को लेकर हो रहा है। सरकार का कहना है कि इस बिल से जनता को स्वास्थ्य सेवाएँ हासिल करने का कानूनी अधिकार मिलेगा। वहीं, डॉक्टरों का कहना है कि सरकार वाहवाही लूटने के लिए जबरदस्ती अपनी योजनाएँ हॉस्पिटल पर थोप रही है।

दरअसल, राजस्थान सरकार ने सितंबर 2022 में यह बिल विधानसभा में पेश किया था। इसके बाद इस बिल को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे। विधानसभा में भी भाजपा ने हंगामा किया था। विवाद बढ़ता देख अशोक गहलोत सरकार ने इस बिल को सलेक्शन कमेटी के पास भेजा था। इसके बाद अब चालू बजट सत्र में इस बिल को एक बार फिर पेश किया गया। हालाँकि तमाम विरोध और हंगामें के बीच मंगलवार (21 मार्च 2023) को यह बिल विधानसभा में पारित हो गया।

इस बिल के पेश होने के पहले से ही डॉक्टर्स विरोध कर रहे थे और अब बिल पास होने के बाद डॉक्टर्स एक बार फिर सड़क पर उतर आए हैं। शुरुआत में इस बिल का विरोध निजी हॉस्पिटल के डॉक्टर ही कर रहे थे। लेकिन बाद में सरकारी डॉक्टर भी विरोध कर रहे हैं। यही नहीं, डॉक्टर्स अपने घरों पर भी मरीजों को परामर्श नहीं दे रहे हैं। एक महिला चिकित्सक अनिता चौधरी ने तो गोलगप्पे का ठेला लगाकर ये विरोध शुरू किया है। उनका कहना है कि गाड़ी चलाने के लिए उन्हें कुछ तो करना पड़ेगा।

राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में सोमवार (27 मार्च 2023) को सैकड़ों डॉक्टरों ने राजस्थान की राजधानी जयपुर की सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया। इस विरोध को मुंबई से लेकर दिल्ली और भोपाल तक में समर्थन मिल रहा है।

डॉक्टरों ने जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज के बाहर से पैदल मार्च निकाला है। वहीं, बिल के विरोध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी देशव्यापी बंद का ऐलान किया था। इस बंद के कारण मेडिकल सर्विस काफी हद तक ठप पड़ गई। बंद का सबसे बड़ा असर राजधानी जयपुर में ही देखने को मिला। जहाँ डॉक्टर्स की हड़ताल के चलते मरीजों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है। राजस्थान सरकार के इस विवादित बिल को लेकर जारी विरोध को शुरू हुए एक हफ्ते से अधिक का समय हो चुका है। इसके बाद भी सरकार और डॉक्टरों के बीच बात नहीं बन पाई है।

बिल वापस हो, सीएम गहलोत से ही करेंगे बात…

इस बिल का विरोध कर रहे डॉक्टर और सरकार के बीच रविवार (26 मार्च 2023) को बातचीत हुई। बातचीत करने के लिए सरकार की ओर से मुख्य सचिव उषा शर्मा, अतिरिक्त मुख्य सचिव अखिल अरोड़ा, प्रमुख सचिव टी रविकांत और जयपुर कलेक्टर मौजूद थे। लेकिन डॉक्टर्स ने दो टूक कह दिया कि वह बिल वापसी से कम कुछ और नहीं चाहते। डॉक्टरों का यह भी कहना है कि वह मुख्यमंत्री के अलावा किसी और से बात नहीं करना चाहते, क्योंकि बिल वापसी का अधिकार उन्हीं के पास है।

29 मार्च को और खराब हो सकते हैं हालात…

सरकारी हॉस्पिटल के मेडिकल ऑफिसरों का संगठन अखिल राजस्थान सेवारत चिकित्सक संघ भी इस बिल का विरोध कर रहा है। संगठन के प्रदेशाध्यक्ष अजय चौधरी ने कहा है कि आगामी 29 मार्च को सभी डॉक्टर सामूहिक अवकाश में रहेंगे। यदि 29 मार्च को सभी डॉक्टर्स अवकाश में चले गए तो राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाएगी और मरीजों को समस्याओं से दो-चार होना पड़ेगा।

क्या है राइट टू हेल्थ बिल?

राइट टू हेल्थ बिल या स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक 2022 के अंतर्गत किसी भी स्थिति में कोई भी अस्पताल मरीज के इलाज के लिए मना नहीं कर सकता। इमरजेंसी की स्थिति में यदि इलाज का खर्च मरीज नहीं दे पा रहा है तो ऐसी स्थिति में उसके इलाज का खर्च सरकार उठाएगी। गंभीर बीमारी की स्थिति में मरीज किसी भी हॉस्पिटल में भर्ती हो सकता है। इस स्थिति में उसके इलाज का खर्च सरकार वहन करेगी।

इसके अलावा यदि किसी दुर्घटना में घायल व्यक्ति को कोई हॉस्पिटल पहुँचाता है तो ऐसे व्यक्ति को 5000 रुपए की प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान किया गया है। राइट टू हेल्थ का उल्लंघन करने या इलाज से मना करने वाले हॉस्पिटल पर 10 से 20 हजार तक का जुर्माना लगाया जाएगा। पहली बार उल्लंघन पर यह जुर्माना 10 हजार होगा। इसके बाद 20 हजार तक का जुर्माना देना होगा।

क्यों हो रहा है विरोध…

इस बिल के विरोध की सबसे बड़ी वजह ‘इमरजेंसी‘ शब्द को बताया जा रहा है। दरअसल, बिल में इमरजेंसी के समय हॉस्पिटल को मुफ्त इलाज करने के लिए कहा गया है। ऐसे में प्राइवेट हॉस्पिटल के डॉक्टरों का कहना है कि बिल में इमरजेंसी को सही तरीके से नहीं बताया गया है। यदि सभी मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताएँगे तो हॉस्पिटल को मुफ्त में इलाज करना पड़ेगा। ऐसे में हॉस्पिटल अपना खर्च कैसे चलाएगा?

इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि यदि किसी दाँत के डॉक्टर के पास कोई गंभीर बीमारी वाला मरीज पहुँच गया तो वह उसका इलाज कैसे करेगा। इसी तरह महिलाओं की डिलीवरी वाले हॉस्पिटल में यदि सर्पदंश का मरीज आ गया तो उसका इलाज कैसे होगा। यही नहीं, डॉक्टर्स का कहना है कि यदि मरीज इमरजेंसी हालत में हॉस्पिटल आया और उसकी मौत हो गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?

बिल में यह भी कहा गया है कि यदि कोई मरीज बेहद गंभीर हालत में है और उसे किसी अन्य हॉस्पिटल में रेफर करना है तो इसके लिए एंबुलेंस की व्यवस्था अनिवार्य होगी। इसको लेकर डॉक्टरों का कहना है कि एंबुलेंस देने में कोई समस्या नहीं है। लेकिन इसका खर्च कौन वहन करेगा? मरीज या सरकार कोई भी दे। इस बारे में बिल में स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कहा गया।

राइट टू हेल्थ बिल के तहत प्राइवेट हॉस्पिटल को सरकारी योजनाओं के अनुसार सभी बीमारियों का इलाज फ्री में करना होगा। ऐसे में इन डॉक्टरों का आरोप है कि सरकार अपनी वाहवाही लूटने के लिए सरकारी योजनाओं को निजी अस्पतालों पर थोप रही है। सरकार को यदि अपनी योजना चलानी है तो सरकारी अस्पतालों में चलाए, प्राइवेट अस्पतालों को बिना वजह परेशान किया जा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि सरकारी योजनाओं में इलाज के लिए जो राशि निर्धारित की गई है वह लागत मूल्य की अपेक्षा कम है। ऐसे में हॉस्पिटल अपना खर्च कैसे निकालेंगे?

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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