अहमदाबाद में नकली अदालत स्थापित कर सरकारी जमीन हड़पने का मामला सामने आया है। आरोपित मॉरिस सैमुअल क्रिश्चियन ने खुद को एक मध्यस्थ जज (अर्बिट्रेटर) के रूप में पेश किया और एक फर्जी अदालत की स्थापना की। इस अदालत में उसने नकली वकील और कर्मचारी भी रखे, ताकि यह एक वास्तविक कोर्ट जैसा दिखे। मॉरिस पर आरोप है कि उसने फर्जी दस्तावेजों और फैसलों के आधार पर अहमदाबाद के पालदी क्षेत्र की 100 एकड़ सरकारी जमीन हड़प ली।
इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई जब अहमदाबाद सिटी सिविल कोर्ट के रजिस्ट्रार हार्दिक सागर देसाई ने आरोपित मॉरिस के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। यह शिकायत कारंज पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई, जिसके आधार पर पुलिस ने मॉरिस को गिरफ्तार कर लिया। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं 170, 419, 420, 465, 467, 471 और 120B के तहत मामला दर्ज किया गया, जिनमें धोखाधड़ी, फर्जी पहचान, सरकारी अधिकारी की नकल, और साजिश रचने जैसी गंभीर आरोप हैं। इस मामले की FIR की कॉपी ऑपइंडिया के पास भी उपलब्ध है।
पुलिस के अनुसार, मॉरिस ने पालदी के निवासी बाबूजी छनाजी ठाकोर के मामले में फर्जी मध्यस्थ बनकर सरकार के खिलाफ दावा किया। बाबूजी कई वर्षों से पालदी में जमीन को लेकर सरकार के साथ विवाद में थे। इस दौरान मॉरिस ने खुद को मध्यस्थ घोषित करते हुए बाबूजी के पक्ष में फैसला सुना दिया। इस पूरे मामले में मॉरिस के पास न तो मध्यस्थता का कोई वैध अनुबंध था और न ही वह कानूनी रूप से मध्यस्थता करने का अधिकारी था। इसके बावजूद उसने फर्जी दस्तावेज तैयार कर बाबूजी के पक्ष में 200 करोड़ की जमीन के स्वामित्व का दावा किया।
मॉरिस के फैसले को अदालत में प्रस्तुत किए जाने के बाद उसकी असलियत सामने आई। जब अहमदाबाद सिटी सिविल कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई, तो न्यायाधीश जेएल चोवटिया ने पाया कि यह पूरी प्रक्रिया फर्जी है और मॉरिस ने धोखे से सरकारी जमीन हथियाने की कोशिश की है। इसके बाद न्यायाधीश ने कोर्ट के रजिस्ट्रार को मॉरिस के खिलाफ कानूनी शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया, जिससे पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया।
मॉरिस ने न सिर्फ खुद को जज के रूप में पेश किया, बल्कि उसने अदालत जैसा माहौल बनाने के लिए नकली वकील, क्लर्क और अन्य कर्मचारी भी नियुक्त किए। उसकी योजना थी कि वह फर्जी अदालतों के जरिए लोगों को झूठे फैसले दिलाकर उनसे पैसे ऐंठे। मॉरिस ने कई बार अपनी अदालत में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर निर्णय सुनाए और फिर उन फैसलों को असली अदालत में पेश किया।
पहले भी फर्जीवाड़ा कर चुका था मॉरिस
मॉरिस का यह पहला अपराध नहीं था। इससे पहले भी उस पर इसी तरह के फर्जीवाड़े के आरोप लग चुके हैं। 2015 में भी उसके खिलाफ मणिनगर पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था, और गुजरात हाईकोर्ट ने उसके खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला चलाया था। उसने बाबूजी के नाम पर 7/12 उतार में सरकार का नाम हटाकर खुद को जमीन का कब्जेदार घोषित कर दिया था, जबकि इसके लिए कोई कानूनी आधार नहीं था।
सरकारी वकील ने सिटी सिविल कोर्ट में तर्क दिया कि बाबूजी ने मॉरिस को कानूनी रूप से मध्यस्थ नियुक्त नहीं किया था और कोर्ट ने भी मॉरिस को मध्यस्थता के लिए मंजूरी नहीं दी थी। मॉरिस ने एकतरफा फैसले लिए और इन्हें लागू कराने के लिए फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया। सरकारी वकील ने सवाल उठाया कि अगर कोई मध्यस्थता अनुबंध नहीं था, तो मॉरिस ने सरकारी अधिकारियों को नोटिस कैसे भेजा और सरकार ने जवाब क्यों नहीं दिया।
कोर्ट ने बाबूजी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया और मॉरिस के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के आदेश दिए। जाँच में यह भी पता चला है कि मॉरिस ने ऐसे 10 अन्य मामलों में भी फर्जी फैसले सुनाए हैं। पुलिस अब इन सभी मामलों की भी जाँच कर रही है और इसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। बहरहाल, मॉरिस सैमुअल क्रिश्चियन का यह फर्जीवाड़ा अब पूरी तरह उजागर हो चुका है, और पुलिस उसकी गतिविधियों की गहन जाँच कर रही है ताकि इस बड़े घोटाले का पूरा सच सामने आ सके।
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