Tuesday, November 5, 2024
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BHU छात्रों को कलंक, करणी सेना को आतंकी कहने वाले फरहान अख्तर इस्लामी मजहबी उन्माद पर मौन

बीएचयू में शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले एकाध दर्जन छात्र 'धब्बा' हैं लेकिन हजारों की संख्या में निकल कर आतंक मचाने वालों के ख़िलाफ़ एक शब्द भी लिखना 'Bigotry' है। तभी तो आंबेडकर ने कहा था- मुस्लिम कभी भी अपने मजहब से देश को ऊपर नहीं रखेंगे।

एक शांतिपूर्ण आंदोलन का स्वरूप कैसा होता है? इसका ताज़ा उदाहरण बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के ‘धर्म विज्ञान संकाय’ के उन छात्रों ने पेश किया है, जो फ़िरोज़ ख़ान की नियुक्ति का विरोध कर रहे थे। आंदोलन के दौरान न पत्थरबाजी की ख़बर आई, न ही पुलिस के साथ झड़प की। आंदोलन के तहत हनुमान चालीसा, सुन्दरकाण्ड का पाठ, साधु-संतों का सम्बोधन और भगवद्गीता पर चर्चा जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए। लेकिन, भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री का एक जाना-माना चेहरा ऐसा भी है, जो इन छात्रों को ‘धब्बा’ मानता है। अर्थात, उन्हें कलंक की संज्ञा देता है।

जिस नायक-निर्माता-निर्देशक-संगीतकार-गायक की नज़र में हनुमान चालीसा का पाठ कर शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताने वाले छात्र ‘धब्बा’ हैं। फिर, स्टेशन पर लोगों को बंधक बना कर ट्रेन परिचालन ठप्प करने वाले लोग उसकी नज़र में क्या होंगे? हजारों यात्रियों पर पत्थरबाजी करते हुए रॉड और डंडों से उन्हें नुकसान पहुँचाने वाले लोग उसकी नज़र में क्या होंगे? बीएचयू के छात्रों को ‘धब्बा’ मानने वाले इस सेलेब्रिटी की नज़र में यह सब जायज है, उसके ख़िलाफ़ बोलना पाप है और उस तरफ़ ध्यान दिलाया जाना भी कट्टरता है। आइए जानते हैं, कैसे?

जहाँ एक तरफ जावेद अख्तर पटकथा लेखक से गीतकार और फिर ट्विटर ट्रोल तक का सफर पूरा कर चुके हैं, उनके बेटे फरहान अख्तर भी उन्हीं की राह पर चलते दिख रहे हैं। डॉन और दिल चाहता है जैसी हिट फ़िल्मों का निर्देशन कर चुके फरहान अख्तर सोशल मीडिया पर वही भाषा बोल रहे हैं, जो नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर दंगा कर रहे मुस्लिमों की जबान से निकल रहा है। एक सेलेब्रिटी होने के नाते शांति की अपील करने का फ़र्ज़ छोड़ कर फरहान अख्तर ने अपने दोहरे रवैये का परिचय दिया है। आतंक फैला रही भीड़ की निंदा करना तो दूर, उसके बारे में बात करने के लिए भी वो तैयार नहीं हैं।

जावेद अख्तर, उनकी पत्नी शबाना आज़मी और उनके बेटे फरहान अख्तर अक्सर सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर अपनी राय रखते रहते हैं। इस तिकड़ी को केंद्र की मौजूदा भाजपा सरकार के ख़िलाफ़ लगातार बयान देने के लिए जाना जाता है। इसी क्रम में सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर हुआ, जिसमें कैब के विरोध के नाम पर आगजनी की गई, ट्रेनों को नुकसान पहुँचाया गया और सार्वजनिक संपत्ति को तहस-नहस कर दिया गया। ये वीडियो पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद का था। किसी ने फरहान अख्तर का ध्यान इस घटना की ओर दिलाया।

ट्विटर यूजर गीतिका ने अख्तर परिवार की तिकड़ी को टैग करते हुए लिखा कि वो अपने कौम से शांति की अपील करें। वो अपने समुदाय के लोगों से कहें कि वो सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुँचाएँ। ट्विटर यूजर ने याद दिलाया कि बाद में जब इन दंगाइयों को पकड़ कर पीटा जाएगा और उन्हें सज़ा दी जाएगी, तब यही लोग उनके पक्ष में आवाज़ उठाएँगे। गीतिका ने सलाह दी कि इनके गिरफ़्तार होने के बाद रोना चालू करने से अच्छा है कि फरहान, जावेद और शबाना अभी भी अपने क़ौम से शांति बनाए रखने की अपील करें।

फरहान अख्तर को गीतिका की ये सलाह नागवार गुजरी और उन्होंने ट्विटर यूजर को ही कट्टरवादी करार दिया। फरहान अख्तर ने लिखा कि वो फ़िल्म निर्देशक डेविड धवन को कहेंगे कि वो ‘Bigot No.1’ फ़िल्म बनाएँ और गीतिका को उसमें लें, क्योंकि वो उसमें अभिनय करने के लिए सबसे उपयुक्त पसंद रहेंगी। एक तरह से उन्होंने गीतिका को धर्मांध कट्टरपंथी साबित करने की कोशिश की। बता दें कि धवन ‘कुली नंबर 1’, ‘हीरो नंबर 1’, ‘बीवी नंबर 1’, ‘जोड़ी नंबर 1’ और ‘शादी नंबर 1’ जैसी फ़िल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं, इसीलिए फरहान ने इस ट्वीट में उनका जिक्र किया।

फरहान अख्तर ने उन दंगाइयों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। शायद अपने क़ौम के लोग ऐसा काम कर रहे थे तो उनकी निंदा तो दूर, वो उन्हें शांत रहने की सलाह भी नहीं दे सकते थे। उलटा उन्होंने गीतिका को ही लपेटे में ले लिया। कथित सेलेब्रिटीज की इस सूची में जावेद जाफरी जैसे पुराने अभिनेता और अली फजल जैसे नए-नवेले कलाकार भी शामिल हैं। इन सभी ने कैब का विरोध करते हुए दंगाई भीड़ के ख़िलाफ़ एक शब्द भी नहीं बोला, उलटा उनका अप्रत्यक्ष समर्थन किया। गीतिका ने सही लिखा था कि कल को अगर इन्हीं दंगाइयों की पुलिस पिटाई करे तो ये मानवाधिकार हनन और फासिज़्म की बातें करने लगेंगे।

फरहान अख्तर के लिए ये नया नहीं है। उनके लिए एक बस पर पत्थरबाजी करने वाली भीड़ आतंकवादी है, जबकि पूरे के पूरे स्टेशन को तबाह कर कई ट्रेनों के परिचालन को ठप्प कर हज़ारों-लाखों लोगों को परेशान करने वाली मुस्लिम भीड़ का हर कुकृत्य जायज है। इसे समझने के लिए हमें 2 साल पीछे जाना होगा, जब करणी सेना संजय लीला भंसाली की फ़िल्म ‘पद्मावत’ के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रही थी। तब ख़बर आई थी कि राजपूत संगठन करणी सेना ने एक स्कूली बस पर पत्थरबाजी की। हालाँकि, संगठन ने बाद में गुरुग्राम में हुई इस घटना में अपना हाथ होने से इनकार कर दिया था।

तब फरहान अख़्तर ने बस पर पत्थरबाजी करने वालों को आतंकवादी कहा था। उन्हों ट्वीट कर के कहा था कि बस पर हमला करना आंदोलन नहीं है बल्कि आतंकवाद है। उन्होंने लिखा था कि जिन लोगों ने ऐसा किया, वो आतंकवादी हैं। बस पर पत्थरबाजी को आतंकवाद बताने वाले फरहान अख्तर के लिए ट्रेन की खिड़कियाँ तोड़ डालने वाली भीड़ का कुकृत्य शायद इसीलिए जायज है, क्योंकि वो जुमे की नमाज के बाद किसी मस्जिद से निकलती है। उस भीड़ में शामिल बच्चे-बूढ़े और युवा कुर्ता-पायजामा पहने होते हैं और इस्लामी स्कल-कैप पहने होते हैं। वहीं अगर उनके माथे पर टीका होता तो फरहान उन्हें अब तक आतंकी करार दे चुके होते।

बस पर पत्थरबाजी करने वाले 10 लोग आतंकी हैं। बीएचयू में शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले एकाध दर्जन छात्र ‘धब्बा’ हैं लेकिन हजारों की संख्या में निकल कर आतंक मचाने वालों के ख़िलाफ़ एक शब्द भी लिखना ‘Bigotry’ है। तभी तो बाबासाहब आंबेडकर ने कहा था- “मुस्लिम कभी भी अपने मजहब से ऊपर देश को नहीं रखेंगे। वो हिन्दुओं को कभी भी अपना स्वजन नहीं मानेंगे।” फरहान अख्तर का उदाहरण उनके इस वक्तव्य की पुष्टि करता है। लेकिन हाँ, आतंक मचाने वाले इन लोगों पर जब कार्रवाई होगी, तब फरहान ज़रूर ट्वीट करेंगे।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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