देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों का आंदोलन आज 22वें दिन भी जारी है। किसान केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की माँग पर डटे हैं। कानूनों के विरोध में दिल्ली सीमा पर डटे किसानों को हटाने से संबंधित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई हो रही है। कोर्ट ने ‘कानून की वैधता’ पर फिलहाल सुनवाई करने से मना कर दिया है।
तीन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ का कहना है कि यह फिलहाल ‘कानूनों की वैधता’ तय नहीं करेगी। चीफ जस्टिस ने सबसे पहले पूछा कि हरीश साल्वे किसकी ओर से पेश हो रहे हैं और भारतीय किसान यूनियन की ओर से कौन पेश हो रहा है?
CJI ने कहा कि दुष्यंत तिवारी को छोड़कर कल (पीआईएल में किसानों के विरोध में) दिखाई देने वाले सभी अधिवक्ता आज नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि वो साल्वे, परिहार और अन्य याचिकाकर्ताओं (किसानों के विरोध में जनहित याचिका) पर सुनवाई करेंगे।
बृहस्पतिवार (दिसंबर 17, 2020) को दूसरे दिन की सुनवाई शुरू करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहली और एकमात्र चीज़ जो आज हम तय करेंगे, वह है किसानों का विरोध और नागरिकों के मौलिक अधिकार। कोर्ट ने कहा कि ‘कानून की वैधता’ का सवाल इंतजार कर सकता है।
CJI : We will not decide the validity of the laws today. The first and the only thing we will decide today is regarding the farmers protest and the fundamental right of citizens to move. The question of validity of laws can wait.
— Live Law (@LiveLawIndia) December 17, 2020
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “एक विरोध तब तक संवैधानिक है जब तक कि यह सार्वजनिक संपत्ति या किसी के जीवन को नुकसान नहीं करता। केंद्र और किसानों से बात करनी होगी, हम एक निष्पक्ष और स्वतंत्र समिति के बारे में सोच रहे हैं, जिसके समक्ष दोनों पक्ष अपनी कहानी का पक्ष दे सकते हैं।”
सबसे पहले हरीश साल्वे ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस प्रदर्शन के कारण दिल्लीवासी प्रभावित हुए हैं, ट्राँसपोर्ट पर प्रभाव के कारण सामान का मूल्य बढ़ रहा है और अगर सड़कें बंद रहती हैं तो दिल्ली वालों को काफी समस्या का सामना करना होगा।
हरीश साल्वे ने कहा कि प्रदर्शन के अधिकार का मतलब यह नहीं कि शहर ही बंद कर दिया जाए। इस पर चीफ जस्टिस की ओर से कहा गया कि हम इस मामले में देखेंगे कि किसी एक विषय की वजह से दूसरे के जीवन पर असर नहीं पड़ा चाहिए। उन्होंने कहा कि एक के मौलिक अधिकार से दूसरों के मौलिक अधिकारों को बैलेन्स किया जाना चाहिए। साल्वे ने यह भी कहा कि यह सही समय है जब इस अदालत को ‘विरोध के अधिकार’ के संदर्भ में घोषणा करनी चाहिए।
अदालत में प्रदर्शनकारियों द्वारा सड़क जाम करने केविषय पर भी बहस हुई। CJI ने सवाल किया कि क्या किसीने ये कहा कि वो दिल्ली की सभी सड़कें बंद कर देंगे। इस पर अटोर्नी जर्नल ने जवाब में कहा कि टिकरी, सिंघु ब्लाक कर दी गई हैं।
CJI : Has anyone said they will block all roads of Delhi?
— Live Law (@LiveLawIndia) December 17, 2020
SG : Tikri border, Singhu border have been blocked. #FarmersProtest #SupremeCourt
साल्वे ने कहा कि कोरोना काल में लोगों की जिंदगी खतरे में डाली जा रही हैं और भीड़ की हरकतों के लिए उन संगठनों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, जिनके कहने से यह सब किया जा रहा है। इसके लिए हरीश साल्वे ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले का उदाहरण दिया जिसमें सार्वजानिक नुकसान पहुँचाने के लिए शिवसेना पर जुर्माना लगाया गया।
Salve :Unions who are organizing large crowds should be held responsible for the acts of crowds.
— Live Law (@LiveLawIndia) December 17, 2020
He refers to the Bombay High Court judgment imposing fines on Shiv Sena for public damages.#FarmersProtest #SupremeCourt
इस विषय पर CJI और वकील हरीश साल्वे की बहस –
CJI: क्या आप जानते हैं कि शिवसेना के खिलाफ बॉम्बे HC के फैसले का क्या हुआ?
साल्वे: मुझे लगता है कि इस अदालत ने हस्तक्षेप नहीं किया।
CJI: क्या जुर्माना वसूला गया?
साल्वे: मुझे पता है कि जुर्माना नहीं वसूला गया है।
इस पर अदालत ने कहा कि क्या आपको लगता है कि विरोध से पहले नुकसान की भरपाई करवाई जानी चाहिए? कोर्ट के सवाल के जवाब में हरीश साल्वे ने कहा, “मैंने ऐसा नहीं कहा लेकिन उन्हें पहचान लिया जाना चाहिए।”
CJI : Do you know what happened with the Bombay HC judgment against Shiv Sena?
— Live Law (@LiveLawIndia) December 17, 2020
Salve : I think this court did not interfere.
CJI : Was the fine recovered?
Salve : I know that the fine has not been recovered.
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन ये कैसे हो इस पर चर्चा की जा सकती है। अदालत ने कहा कि हम प्रदर्शन के अधिकार में कटौती नहीं कर सकते हैं और प्रदर्शन का अंत होना जरूरी है। अदालत ने कहा कि हम किसान संगठनों से पूछेंगे कि विरोध करने की प्रकृति को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है जो यह सुनिश्चित करेगा कि दूसरों के अधिकार प्रभावित नहीं हों?
CJI : Nobody can have a quarrel with your arguments. We recognize that the farmers have a right to protest. But we are on the mode of protesting. We will ask the Union what can be done to alter the nature of protesting which will ensure that rights of others are not affected.
— Live Law (@LiveLawIndia) December 17, 2020
पीठ ने कहा कि हम प्रदर्शन के विरोध में नहीं हैं लेकिन बातचीत भी होनी चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें नहीं लगता कि किसान आपकी बात मानेंगे, अभी तक आपकी चर्चा सफल नहीं हुई है, इसलिए कमेटी का गठन आवश्यक है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अपील की है कि 21 दिनों से सड़कें बंद हैं, जो खुलनी चाहि। वहाँ लोग बिना मास्क के बैठे हैं, ऐसे में कोरोना का खतरा है।
Salve now makes submissions.
— Live Law (@LiveLawIndia) December 17, 2020
‘The petitioner is a citizen residing in Delhi’.
CJI : How is he affected?
Salve : Everybody living in city are affected directly or indirectly.#FarmersProtest
CJI ने इसके बाद कॉन्ग्रेस नेता पी चिदंबरम की ओर रुख किया, जो कि पंजाब सरकार की ओर से पेश हुए हैं। चिदंबरम ने घटना का राजनीतिकरण करते हुए कहा कि राज्य को अदालत के इस सुझाव पर कोई आपत्ति नहीं है कि लोगों का एक समूह किसानों और केंद्र सरकार के बीच बातचीत को सुविधाजनक बना सकता है। चिदंबरम ने कहा कि किसान अहंकारी सरकार से लड़ रहे और उन्हें दिल्ली आने से रोका गया।
पी चिदंबरम को जवाब देते हुए CJI ने कहा कि अगर इतनी बड़ी संख्या में लोग दिल्ली आ गए, तो उन्हें नियंत्रित कैसे किया जाएगा? अदालत की ओर से कहा गया है कि इतनी बड़ी भीड़ की जिम्मेदारी कौन लेगा, कोर्ट ये काम नहीं कर सकता है।
CJI : It is not for the court to predict if the mob will turn violent. It depends on intelligence reports based on which the police acts. Whether the mob should be allowed to enter arrest must be left to the authorities to decide and not for the court to decide.
— Live Law (@LiveLawIndia) December 17, 2020
सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन को लेकर सुनवाई आज भी टल गई है। अदालत में किसी किसान संगठन के ना होने के कारण कमेटी पर फैसला नहीं हो पाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो किसानों से बात करके ही अपना फैसला सुनाएँगे और अब इस मामले की सुनवाई दूसरी बेंच करेगी।