कृषि कानून के ख़िलाफ़ सिंघु बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान किसी की कोई बात सुनने को तैयार नहीं हैं। हाल में उन्होंने महिला मीडिया कर्मियों को प्रदर्शनस्थल से जाने को कह दिया था और अब सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी पर अविश्वास प्रकट किया है।
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी पंजाब के दयाल सिंह ने बताया, “सुप्रीम कोर्ट ने जो कमेटी बनाई है उसमें हम यकीन नहीं रखते। अगर सरकार बातचीत करके काले कानून वापस लेती है तो ठीक, नहीं तो हम ये मोर्चा नहीं छोड़ेंगे।”
कृषि कानूनों के खिलाफ सिंघु बॉर्डर पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी पंजाब के दयाल सिंह ने बताया, “सुप्रीम कोर्ट ने जो कमेटी बनाई है उसमें हम यकीन नहीं रखते। अगर सरकार बातचीत करके काले कानून वापस लेती है तो ठीक, नहीं तो हम ये मोर्चा नहीं छोड़ेंगे।” pic.twitter.com/0VTUbAKWh7
— ANI_HindiNews (@AHindinews) December 18, 2020
इससे पूर्व खबर आई थी कि सिंघु बॉर्डर के प्रदर्शनकारी ठंड से निपटने के लिए इंतजाम करने लगे हैं। उनका कहना है कि वह लंबे समय तक रुकने की तैयारी कर रहे हैं।
ये कैसे किसान हैं ? जिनको न सरकार पर यकीन है, न कोर्ट पर यकीन हैं, रोड जाम करेंगे, आम लोग को तकलीफ देंगे।इस से लगता हैं इनका किसान से कोई लेना देना नही, इनका एजेंडा कुछ और ही है।
— Manoj Kumar (@ManojKu00264210) December 18, 2020
बता दें कि सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन में बैठे किसानों की ऐसी बातें सुनकर कई लोग हैरानी जताने लगे हैं। सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देकर पूछा जा रहा है, “ये कैसे किसान हैं? जिनको न सरकार पर यकीन है, न कोर्ट पर यकीन हैं। ये रोड जाम करेंगे, आम लोग को तकलीफ देंगे। इसे देख कर लगता है इनका किसानों से कोई लेना देना नही, इनका एजेंडा कुछ और ही है।”
एक यूजर कहना है कि इन लोगों को पता चल गया है कि इन्होंने गलत कदम उठा लिया है और इसीलिए इन्हें कदम पीछे करने में शर्म आ रही है।
क्यूंकि इन्हे पता है ये लोग ग़लत हैं पर अब ग़लत कदम ले लिया है पीछे करने मे शर्म आ रही है 🤨🤨
— दीपादेसी (@DEEPA65676917) December 18, 2020
उल्लेखनीय है कि कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के मसले पर इससे पूर्व बुधवार को देश की सर्वोच्च अदालत में सुनवाई हुई थी। इसी सुनवाई में कोर्ट ने किसान आंदोलन के मसले पर कमेटी बनाने को कहा था। जिसमें किसान संगठन, केंद्र सरकार, राज्य सरकार के प्रतिनिधि, अधिकारी और अन्य संबंधित लोगों के शामिल होने की बात कही गई थी। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों को नोटिस भेजा था और हर संगठन की लिस्ट माँगी थी।