उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में माफियाओं और अपराधियों की बंदूकों से चली गोली का मूलतः एक उद्देश्य होता है, जनता में भय स्थापित करना। लोगों को इस बात का आभास कराना कि उनके अपराध की तस्वीर क्या है? लेकिन लोगों के बीच डर पैदा करने की इस प्रक्रिया को एक और आयाम दिया श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे अपराधियों ने। उनकी गोलियाँ सिर्फ डर पैदा करने के लिए नहीं चली, बल्कि उन्हीं डरे हुए लोगों की जान लेने के लिए भी चली। इस तरह की मानसिकता का सबसे नया उदाहरण है ‘विकास दुबे’।
दोनों ही अपराधियों में कई बातें एक जैसी हैं, दोनों के जीवन का शुरूआती जीवन हो या अंत, एनकाउंटर के अलावा ऐसी तमाम बातें हैं जब दोनों एक जैसे ही नज़र आते हैं। दोनों अपराधियों को गिरफ्तार करने की ज़िम्मेदारी एसटीएफ के पास थी क्योंकि नेताओं से लेकर अधिकारियों तक, सभी जानते थे कि इन मामलों में चूक की गुंजाईश नहीं होती। जहाँ प्रशासन की तरफ से छोटी गलती भी होती तो उसका नतीजा बुरे से बुरा होता।
सोशल मीडिया पर विकास दुबे के साक्षात्कार का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है। भारत समाचार द्वारा साझा किए गए वीडियो में उसने साफ़-साफ़ बताया है कि कैसे वह राजनीति में आया, साल 2006 के इस वीडियो में उसने यह भी बताया कि कौन उसे राजनीति में लेकर आया। फिर विकास दुबे ने पूर्व उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष स्वर्गीय हरिकिशन श्रीवास्तव का नाम लिया और बताया कि राजनीति में लाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। इसके ठीक पहले विकास दुबे ने यह भी बताया कि वह अच्छा छात्र था, उसने स्नातक तक पढ़ाई की है।
#VikasDubey का 2006 का इंटरव्यू वारयरल, 2001 में बीजेपी नेता की हत्या से सुर्खियों में आया, राजनीति दलों को फायदे के लिए किया इस्तेमाल, चुनाव में सभी राजनीति दलों से मेल मुलाकत की, 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद से फरार है विकास दूबे, पुलिस विकास दूबे का नहीं लगा पाई है पता। pic.twitter.com/CbXTcFbGKl
— भारत समाचार (@bstvlive) July 6, 2020
ठीक इसी तरह श्रीप्रकाश शुक्ला भी पढ़ाई में बेहद औसत छात्र था। बहन के साथ छेड़ खानी करने वाले लोगों की हत्या करने के ठीक बाद उसे सुरक्षा की ज़रूरत थी। लेकिन सुरक्षा के बदले उसे संरक्षण मिला, उत्तर प्रदेश के दूसरे कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी का संरक्षण। भले श्रीप्रकाश शुक्ला राजनीति का हिस्सा नहीं बना लेकिन शुक्ला के राजनीतिक गुरु उसे राजनीतिक पड़ाव के कुछ कदम पहले तक ज़रूर ले आए। उसके बाद क्या हुआ वह इतिहास है, उत्तर प्रदेश को ऐसा अपराधी मिला जिसने किसी भी अपराध के बाद पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
विकास दुबे पर जितनी हत्याओं के आरोप लगे उसमें सबसे बड़े नाम मंत्रियों के थे। हैरानी कहिए या संयोग श्रीप्रकाश शुक्ला की हत्याओं में भी जितने अहम नाम थे, मंत्रियों के ही थे। दोनों ने दिग्गज नेताओं पर गोलियाँ चलाई। विकास दुबे पर लगाए गए आरोपों के मुताबिक़ साल 2001 में उसने भाजपा नेता संतोष शुक्ला पर कानपुर देहात के शिवली थाने में अंधाधुंध गोलियाँ चलाई। 25 लोग इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे, लगभग सारे ही पुलिसकर्मी। किसी ने गवाही नहीं दी और विकास दुबे इस आरोप से बरी हुआ। हालाँकि, इस घटनाक्रम के पीछे कहानियाँ तमाम हैं लेकिन सतह पर नज़र आने वाली सबसे असल कहानी यही है।
कुछ दिन पहले का घटनाक्रम जिसमें 8 पुलिसकर्मी शहीद हुए, कितने दर्दनाक तरीक से उनके लिए जाल बिछाया गया। रास्ता रोकने के लिए जेसीबी रास्तों पर जेसीबी लगाई गई, पुलिस वालों के हथियार तक छीन लिए गए। अंत में तस्वीर साफ़ होने पर पता चला कि साथी पुलिस कर्मियों ने कार्रवाई की सूचना विकास दुबे तक पहुँचाई। जिसके चलते विकास दुबे के लिए यह सब करना आसान हो गया, ख़बरों के अनुसार जानकारी मिलते ही उसने कहा, “आने दो सभी को, सभी को कफ़न में वापस भेजूँगा।”
कहानी के पन्ने शुरू से पलटते ही यह साफ़ हो जाता है कि दोनों अपराधियों ने बंदूक का जिस कदर इस्तेमाल किया उस तरह बड़े से बड़े अपराधी भी नहीं करते। शुक्ला के हिस्से की एक कहानी भी कुछ ऐसी ही है। बात है साल 1997 की, आज से लगभग 21 साल पहले। पुलिस को सूचना मिली कि लखनऊ के जनपथ बाज़ार में श्रीप्रकाश शुक्ला अपने कुछ साथियों के मौजूद है। यह भी पता चला कि उसके पास एके 47 और पिस्टल भी है। एसएसपी सत्येन्द्र वीर सिंह, एक पेशकार दरोगा रवींद्र कुमार सिंह और गनर रणकेंद्र सिंह वहाँ पहुँचे। सामना हुआ, पकड़ने की कोशिश मुठभेड़ में तब्दील हुई।
श्रीप्रकाश शुक्ला ने भागने की कोशिश की, तभी दरोगा आर के सिंह उसके पीछे दौड़े। अगले कुछ पल जनपथ बाज़ार में केवल गोलियों की आवाज़ सुनाई दी। मुठभेड़ के दौरान आर के सिंह के सिर पर 6 गोलियाँ लगीं और सीने पर दो, मालूम चला कि उन्होंने शुक्ला को दबोचा हुआ था जिसके बाद उसके साथियों ने दरोगा पर गोलियाँ चलाई। इसके बाद श्रीप्रकाश भले छूट गया लेकिन आर के सिंह सिर में 6 गोलियाँ लगने के बावजूद 10 मिनट तक डटे रहे।
लेकिन इस घटना के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला के लिए आगे का रास्ता बहुत मुश्किल हो गया। पुलिस महकमे के कुछ अधिकारियों ने खुद जिम्मा उठाया कि मामले पर ठोस नतीजे देकर ही रहेंगे। इस अभियान को उत्तर प्रदेश पुलिस के इतिहास का सबसे खतरनाक अभियान भी माना जाता है, सबसे ज़्यादा जोखिम भरी ‘पुलिस चेज़’। तीन पुलिस अधिकारियों (तत्कालीन एसएसपी अरुण कुमार, एसपी सत्येन्द्र वीर सिंह और एएसपी राजेश पाण्डेय) ने अभियान पूरा किया। मौके पर सैकड़ों गोलियाँ चलीं, पुलिस ने शुक्ला को गाज़ियाबाद में चारों तरफ से घेरा और छलनी कर दिया।
कुल मिला कर ऐसी घटनाएँ और ऐसे किरदार एक स्पष्ट संदेश देते हैं कि अपराधी बनते नहीं है, बनाए जाते हैं। अच्छी भली नक्काशी के बाद तैयार किए जाते हैं, जिसमें अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक सभी का कुछ फ़ीसदी योगदान होता है। विकास दुबे की गिरफ्तार को आत्मसमर्पण कहा जाए या गिरफ्तारी, यह अभी अस्पष्ट है लेकिन हर बड़ी घटना अपने पीछे तमाम सवाल छोड़ती है। कालांतर में इन अपराधियों ने सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था को बड़े पैमाने पर बदला है, फिर आने वाले कल में कैसे तय होगा कि ऐसे अपराधी जन्म नहीं लेंगे? फिर कोई महकमे के भीतर का व्यक्ति इनकी मदद नहीं करेगा और पुलिस वालों की जान नहीं जाएगी?