नागपुर में ₹227 करोड़ की एक जमीन को लेकर गोदरेज प्रॉपर्टीज और अग्रवाल परिवार के बीच चल रहे विवाद के बीच मुस्लिम पर्सनल लॉ फिर चर्चा में आ गया है। इस मामले में सामने आया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ एक विधवा को जमीन बेचने या उसे ट्रांसफर करने का अधिकार नहीं देता है। अब इस इस्लामी कानून का सहारा लेकर विधवा के वारिस करोड़ों रुपए बनाने का जुगाड़ लगा रहे हैं।
क्या है गोदरेज से जुड़ा जमीन विवाद और मुस्लिम पर्सनल लॉ का रोल
यह पूरा मामला 1988 का है। महाराष्ट्र के नागपुर के बेसा इलाके के घोगली गाँव में अब्दुल वहाब नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति के पास 58 एकड़ भूमि थी। अब्दुल वहाब की मौत के बाद यह भूमि उसकी विधवा खैरुन्निसा ने अग्रवाल परिवार को बेच दिया। इस जमीन को कितने में बेचा गया, इसकी जानकारी नहीं आई है। बेची गई इस जमीन में खैरुन्निसा के 8 बच्चों का हिस्सा भी शामिल था।
जमीन की बिक्री के समय मधुकर पुरोहित नाम के एक आदमी को अब्दुल वहाब के बच्चों का देखरेख करने वाला नियुक्त किया गया था। पुरोहित ने ही बच्चों की तरफ से जमीन की बिक्री के कागजों पर हस्ताक्षर किया था। आगे चलकर वर्ष 2022 में इसी जमीन को अग्रवाल परिवार ने गोदरेज प्रॉपर्टीज को ₹227 करोड़ में बेच दी।
हालाँकि, इस जमीन के सौदे पर अब्दुल वहाब के एक बेटे अब्दुल बशीर ने प्रश्न खड़े करते हुए मुकदमा दायर कर दिया। अब्दुल बशीर ने दावा किया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ कहता है कि शौहर की मौत के बाद उसकी विधवा उसके बच्चों की देखरेख के लिए वैध अभिभावक नहीं हो सकती। इसीलिए वह बच्चों का हिस्सा नहीं बेच सकती। ऐसे में जमीन की बिक्री अवैध है।
इस मामले में नागपुर के एक सिविल जज ने निर्णय दिया कि मुस्लिम कानून के अंतर्गत उठाए गए इस प्रश्न को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के अंतर्गत पिता की मौत के बाद उसके बच्चों का सम्पत्ति में हिस्सा लेने का अधिकार तुरंत बन जाता है। इस जमीन को तभी बाँटा जा सकता है, जब कोई वारिस यह चाहे। इसके लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल की जा सकती है।
इस मामले में कोर्ट ने कहा कि यह मुकदमा इसलिए भी जायज है, क्योंकि इस पर अधिकार रखने वाले लोग कभी इससे बाहर हुए ही नहीं। ऐसे में 34 वर्षों के बाद दायर किया गया मामला कोर्ट के अंदर सुना जा सकता है। अब ऐसे में आगे और मामलों की सुनवाई की जा सकेगी।
गोदरेज को जमीन मिलने में एक और रोड़ा
इस मामले में अक्टूबर 2022 में एक और मुकदमा किया गया। यह मुकदमा अब्दुल वहाब के बेटे अब्दुल जब्बार की तरफ से मुनव्वरा बेगम ने दायर किया। अब्दुल जब्बार मानसिक रूप से स्थिर नहीं है। इस मामले में कहा गया कि जब्बार की अम्मी ने बिना कोई वैध अभिभावक नियुक्त किए उसका हिस्सा बेच दिया। ऐसे में उनके मानसिक स्वास्थ्य कानून का भी उल्लंघन किया है।
मामला इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि अब्दुल वहाब की विधवा से जमीन खरीदने वाले अग्रवाल परिवार को इस जमीन से मोटा मुनाफा हुआ है। उन्होंने यह जमीन गोदरेज को ₹227 करोड़ में बेची है, जो कि उन्होंने 1988 में काफी कम दामों में खरीदी होगी। वहीं, साल 1988 में अब्दुल वहाब के वारिसों को छोटी-मोटी रकम मिली होगी।
मुस्लिम पर्सनल लॉ में कमियाँ और इसका दुरूपयोग
जहाँ एक ओर कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर मामले का निपटारा कर रहा है, वहीं इससे मुस्लिम पर्सनल लॉ की कमियाँ भी जाहिर हो रही हैं। यह मामला दिखाता कि धार्मिक कानून के जरिए कैसे एक विधवा महिला के अधिकारों को छीना जा रहा है। मुस्लिम महिला को उसके अधिकारों वंचित करने वाले ऐसे कई मामले सामने आ सकते हैं।
अब्दुल वहाब के वारिसों ने इस मामले में जहाँ दशकों तक कुछ नहीं किया, वहीं अब वह इस बड़ी डील को देखकर सक्रिय हो गए हैं। वे इस बड़ी बिजनेस डील को लटकाकर मोटा पैसा बनाना चाह रहे हैं। इस मामले से यह समस्या भी सामने आई है कि जो बड़े कॉर्पोरेट विकास के लिए जमीनें खरीदते हैं, वे बाद में जाकर कानूनी पचड़ों में फँस जाते हैं।
समस्या यह है कि भारत में अभी भी यूनिफॉर्म सिविल कोड नहीं है जो विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे मामलों में समान रूप से प्रभावी हों। ऐसे में मजहबी कानूनों को अपनी मनमर्जी से उपयोग करने की खुली छूट कई समस्याएँ पैदा करती हैं, जैसा कि इस मामले में देखा जा रहा है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड की आवश्यकता
यदि देश में सभी लोगों पर एक समान यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता तो ऐसे मामले में कानूनी पचड़ा नहीं फँसेगा। इस मामले में विधवा के अधिकार भी सुरक्षित रहेंगे। भारत को ऐसे मामले में कानून बनाने की तरफ कदम बढ़ाने की जरूरत है, जहाँ बिजनेस डील एवं सम्पत्ति से जुड़े मामले और विधवाओं के अधिकार सुरक्षित किए जा सकें।
कानूनी पचड़े में फँसी ₹227 करोड़ की यह गोदरेज की डील दिखाती है कि भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड की आवश्यकता क्यों है। तथ्य ये है कि 2022 में एक 34 वर्ष पुरानी जमीन की बिक्री को चुनौती दी गई है, वह भी मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत।