Friday, November 15, 2024
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‘मुँह दबाना, कपड़े उतारना, रेप करना अकेले आदमी के लिए असंभव’- जैसे फैसले देने वाली जज का कार्यकाल 1 साल और बढ़ा

न्यायमूर्ति गणेदीवाला को स्थायी न्यायाधीश बनाने के प्रस्ताव को 20 जनवरी को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने एक बैठक में मंजूरी दे दी थी। कॉलेजियम की सिफारिश थी कि उन्हें (न्यायमूर्ति गणेदीवाला को) दो साल के लिए अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर एक नया कार्यकाल दिया जाए।

बच्चों के यौन उत्पीड़न मामलों में दो विवादास्पद फैसले सुनाने वाली बॉम्बे हाईकोर्ट की जज पुष्पा गणेदीवाला का कार्यकाल अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर एक साल और बढ़ गया है। जस्टिस पुष्पा का नया कार्यकाल 13 फरवरी से प्रभावी हो गया है। बता दें, एडिशनल जस्टिस के रूप में उनका कार्यकाल शुक्रवार को समाप्त होना था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति नितिन जामदार ने उन्हें आज पद की शपथ दिलाई। अगर जस्टिस गणेदीवाला की सेवा को विस्तार नहीं दिया जाता तो उन्हें फरवरी में जिला न्यायपालिका में वापस जाना पड़ता। बॉम्बे हाईकोर्ट आने से पहले 2019 तक वे यहीं थी।

बहरहाल, न्यायमूर्ति गणेदीवाला को स्थायी न्यायाधीश बनाने के प्रस्ताव को 20 जनवरी को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने एक बैठक में मंजूरी दे दी थी। कॉलेजियम की सिफारिश थी कि उन्हें (न्यायमूर्ति गणेदीवाला को) दो साल के लिए अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर एक नया कार्यकाल दिया जाए।

हालाँकि, गणेदीवाला द्वारा हाल ही दिए गए विवादास्पद फैसले पर हुए बवाल को देखते हुए सरकार ने शुक्रवार को एक अधिसूचना जारी कर कहा कि उन्हें एक साल के लिए अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर एक नया कार्यकाल दिया गया है। बता दें, आमतौर पर किसी स्थायी न्यायाधीश पद पर पदोन्नत किए जाने से पहले अतिरिक्त न्यायाधीश को दो साल के लिए नियुक्त किया जाता है।

गौरतलब है कि जस्टिस गनेडीवाल की हाल ही में POCSO एक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसस) के दो मामलों को लेकर दिए फैसलों की वजह से काफी आलोचना हुई थी। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने अपने एक फैसले में कहा था कि ‘स्किन टू स्किन’ स्पर्श हुए बिना या कपड़ों के ऊपर से नाबालिग पीड़िता को ‘स्पर्श करना’ पॉक्सो कानून (POCSO Act) या यौन अपराधों पर बाल संरक्षण कानून के तहत यौन हमला नहीं माना जा सकता।

हालाँकि, चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अगुवाई वाली देश की शीर्ष कोर्ट ने इस फैसले पर 27 जनवरी को रोक लगा दी थी। क्योंकि यह समाज में गलत उदाहरण स्थापित करेगा।

इसके बाद एक और मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की एकल पीठ ने यह फैसला दिया था कि किसी लड़की का हाथ पकड़ना और आरोपित का पैंट की जिप खोलना प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज ऐक्ट, 2012 (POCSO) के तहत यौन हमले की श्रेणी में नहीं आता।

जस्टिस पुष्पा ने एक रेप के मामले में यह फैसला सुनाया था। दरअसल, इस मामले में निचली अदालत ने 26 साल के आरोपित को रेप का दोषी पाया था, लेकिन जस्टिस पुष्पा ने उसे बरी कर दिया। जस्टिस पुष्पा ने तर्क दिया, “बिना हाथापाई किए युवती का मुँह दबाना, कपड़े उतारना और फिर रेप करना एक अकेले आदमी के लिए बेहद असंभव लगता है।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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