वाराणसी के ज्ञानवापी विवादित ढाँचे (मीडिया अभी भी ज्ञानवापी मस्जिद लिख रही है) के सर्वे मामले में बुधवार (11 मई 2022) को फैसला आने की उम्मीद है। वहीं इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (IICF: Indo-Islamic Cultural Foundation) ने ज्ञानवापी विवादित ढाँचे में वीडियोग्राफी मामले में सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है।
वाराणसी जिला एवं सत्र न्यायालय में ज्ञानवापी विवादित ढाँचे के सर्वे के संबंध में सुनवाई जारी है। इस मामले में बुधवार को एक बार फिर दोपहर 2 बजे से सुनवाई होनी है। उम्मीद है कि कोर्ट कमिश्नर के मुद्दे पर आज फैसला आ जाएगा।
क्या बोले जज?
यह उम्मीद इसलिए भी जगी है क्योंकि मंगलवार को सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि जरूरत पड़ी तो कोर्ट खुद मौके पर जाएगा और कमीशन की कार्रवाई करवाएगा। अदालत में सुनवाई के दौरान जज की इस टिप्पणी पर दोनों पक्षों ने खुशी जताई। दोनों पक्षों का कहना है कि जज की मौजूदगी में सर्वे होगा तो इस पर कोई आपत्ति नहीं होगी।
कमिश्नर बदलने पर हुई बहस
इससे पहले कोर्ट कमिश्नर को बदलने के सवाल पर अदालत में दोनों पक्षों में खूब बहस हुई। हिंदू पक्ष ने दलील दी कि सर्वे का काम शुरू हो चुका है। जबकि मुस्लिम पक्ष की दलील है कि दोबारा सर्वे का काम कराया जाए। वहीं हिंदू पक्ष का कहना है कि मौजूदा कोर्ट कमिश्नर से ही सर्वे पूरा कराया जाए। जबकि मुस्लिम पक्ष ने कहा कि कोर्ट कमिश्नर पर सवाल उठे हैं, उन्हें बदला जाए।
वकीलों के अनुसार मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने मंगलवार को होने वाले सर्वेक्षण पर रोक लगाने के अनुरोध को तब तक के लिए खारिज करने की माँग की थी, जब तक कोर्ट कमिश्नर बदलने की माँग वाली याचिका पर फैसला नहीं हो जाता लेकिन न्यायाधीश ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। जिसके बाद आयुक्त की कार्यवाही दूसरे दिन फिर से शुरू हो गई।
इधर इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने कहा कि ज्ञानवापी विवादित ढाँचे में की जा रही वीडियोग्राफी पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का स्पष्ट उल्लंघन है। इनका कहना है कि एक धार्मिक स्थान का ढाँचा उसी तरह का रहेगा, जैसा कि 15 अगस्त 1947 को था। इस संबंध में आईआईसीएफ अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।
आईआईसीएफ के सचिव अतहर हुसैन ने कहा कि वो अयोध्या के फैसले को लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएँगे। उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि के अलावा भारत में किसी भी पूजा स्थल की स्थिति को चुनौती देने वाली कोई भी अदालत सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर, 2019 के फैसले का उल्लंघन करती है।
बता दें कि आईआईसीएफ एक ट्रस्ट है, जो बाबरी मस्जिद भूमि के बदले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मस्जिद के निर्माण के लिए आवंटित अयोध्या में 5 एकड़ जमीन का मालिक है। पूजा स्थल अधिनियम, 1991 में यह निर्धारित किया गया था कि कोई भी धार्मिक स्थान उसी स्वरूप को बनाए रखेगा, जैसा वह आजादी के समय था। अयोध्या में राम जन्मभूमि मुद्दे को अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया था।
क्या है विवाद?
गौरतलब है कि बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी विवादित ढाँचा 1991 से वाराणसी की स्थानीय अदालत में लंबित है। श्रृंगार गौरी मामला हालाँकि महज 7 महीने पुराना है। 18 अगस्त 2021 को वाराणसी की पाँच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में प्रतिदिन दर्शन करने की माँग समेत अन्य माँगों को लेकर वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में मुकदमा दायर किया था।
अदालत ने याचिका को स्वीकार करते हुए न केवल मौके पर स्थिति जानने के लिए वकीलों का एक आयोग गठित करने का आदेश दिया था, बल्कि वकीलों का एक कमीशन भी नियुक्त किया था। इतना ही नहीं विपक्ष को नोटिस जारी किया गया, लेकिन विवादित स्थल का निरीक्षण नहीं हो सका था।