Sunday, December 22, 2024
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हिंदू भी माइनॉरिटी, राज्य दे सकते हैं दर्जा: सुप्रीम कोर्ट को मोदी सरकार ने बताया, अश्विनी उपाध्याय ने अल्पसंख्यक मंत्रालय पर उठाए सवाल

केंद्र ने कहा कि जिस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर ईसाई, सिख, मुस्लिम, बौद्ध पारसी और जैन को माइनॉरिटी का तमगा मिला है वैसे ही राज्य भाषायी या फिर संख्या के आधार पर हिंदुओं को माइनॉरिटी श्रेणी में रखने के लिए स्वतंत्र हैं।

केंद्र की मोदी सरकार ने कुछ राज्यों में हिंदुओं को माइनॉरिटी का दर्जा देने की माँग करने वाली याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कोर्ट को बताया कि राज्य अपने हिसाब से हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकते हैं। केंद्र ने कहा कि जिस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर ईसाई, सिख, मुस्लिम, बौद्ध पारसी और जैन को माइनॉरिटी का तमगा मिला है वैसे ही राज्य भाषायी या फिर संख्या के आधार पर हिंदुओं को अल्पसंख्यक श्रेणी में रखने के लिए स्वतंत्र हैं।

केंद्र सरकार ने वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2020 में दायर याचिका पर जवाब देते हुए महाराष्ट्र और कर्नाटक का उदाहरण दिया। सरकार ने ध्यान दिलाया कि जैसे कि महाराष्ट्र ने 2016 में यहूदियों के लिए धार्मिक और कर्नाटक ने उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी कोंकणी और गुजराती को भाषायी आधार पर अल्पसंख्यक घोषित किया है, अन्य राज्यों को भी ये करने की पूरी छूट है।

बता दें कि वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि जम्मू कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मणिपुर, और पंजाब में हिंदू, यहूदी और बहाई अल्पसंख्यक हैं। फिर भी राज्यों की बहुसंख्यक आबादी को इन राज्यों में अल्पसंख्यक होने के फायदे दिए जाते हैं और जो सच में अल्पसंख्यक हैं उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है। उनके शैक्षणिक संस्थान स्थापित नहीं हो पाते।

इसी याचिका का जवाब देते हुए केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जिन धर्म के अनुयायियों की बात की है वह उक्त राज्यों में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं और राज्य उन्हें अल्पसंख्यकों की श्रेणी में रखने पर विचार कर सकता है। याचिका में एक जगह जहाँ चुनौती दी गई थी कि धारा 2 (एफ) केंद्र को अकूत ताकत देती है उस दावे को केंद्र ने अस्वीकार किया है। अब इस मामले पर आज सुनवाई होगी।

उल्लेखनीय है कि हिंदुओं के लिए याचिका डालने वाले अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी थी। उनकी याचिका में उल्लेख है कि ये धारा केंद्र को अकूत शक्ति प्रदान करती है जो स्पष्ट तौर पर मनमाना और अतार्किक है।

अल्पसंख्यक आयोग और मंत्रालय के अस्तित्व पर सवाल

गौरतलब है कि आज इस मामले पर सुनवाई होने से पहले अश्विनी उपाध्याय ने अपने ट्विटर पर एक वीडियो डाली है। इसमें वह अल्पसंख्यक आयोग और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के अस्तित्व पर सवाल पूछ रहे हैं। उनका कहना है कि संविधान में कहीं पर भी अल्पसंख्यक आयोग और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय का जिक्र नहीं है। इसमें राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का जिक्र है जो कि सबके लिए है तो सवाल है कि अगर एक आयोग है जो सबके लिए तो फिर अलग से किसी आयोग की क्या आवश्यकता है वो भी धार्मिक बिंदु पर। हमारे पास सामाजिक न्याय मंत्रालय है तो फिर अलग से मजहब के आधार पर मंत्रालय की क्या जरूरत है। 

वह पूछते हैं कि जब देश के संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है कि देश के सभी नागरिक समान हैं, सबको कानून का संरक्षण मिला है। आर्टिकल 15 कहता है जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, मजहब के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। आर्टिकल 16 कहता है कि देश के सभी नागरिकों को बराबर मौका मिलेगा। आर्टिकल 19 कहता है कि देश के नागरिकों को कहीं पर भी जाने, कहीं पर भी बसने का अधिकार है। आर्टिकल 21 कहता है कि सभी नागरिक सम्मान के साथ जी सकते हैं। आर्टिकल 25 सभी को समान धार्मिक अधिकार मिला हुआ है। आर्टिकल 26 कहता है कि अपना धार्मिक स्थान बनाने का उसे मैनेज करने का अधिकार सबको है। आर्टिकल 27 कहता है कि न आप धर्म के नाम पर टैक्स वसूलेंगे न धर्म के नाम पर टैक्स खर्चेंगे। फिर ये अल्पसंख्यक आयोग/मंत्रालय की क्या जरूरत। ये मंत्रालय और आयोग तो पाकिस्तान के लिए बनना चाहिए वहाँ ऐसे कोई आर्टिकल नहीं हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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