मध्य प्रदेश के ओरछा में श्रीराम राजा मंदिर को आयकर विभाग ने नोटिस जारी किया है। आयकर विभाग ने वित्तीय वर्ष 2015-16 के दौरान 1,22,55,572 रुपए की नकद जमा राशि का स्पष्टीकरण माँगा है। नोटिस में कहा गया है कि वित्तीय लेन-देन करने के बावजूद मंदिर ने निर्धारण वर्ष 2016-17 के लिए आईटी रिटर्न दाखिल नहीं किया था। ‘सुदर्शन न्यूज’ ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर 18 अप्रैल, 2023 को यह नोटिस साझा किया।
श्रीरामराजा मंदिर को मोहम्मद इरफान ने भेजा नोटिस, कहा- 1 करोड़ 22 लाख का हिसाब दो
— Sudarshan News (@SudarshanNewsTV) April 17, 2023
ओरछा का श्री राम राजा मंदिर शासकीय है और आयकर से मुक्त है लेकिन आयकर विभाग का अधिकारी मोहम्मद इरफान ये मानने को तैयार नहीं है. pic.twitter.com/jVfibzH0fP
इसके साथ लिखा, “श्रीरामराजा मंदिर को मोहम्मद इरफान ने नोटिस भेजा है। इसमें कहा गया है कि 1 करोड़ 22 लाख का हिसाब दो। ओरछा का श्रीराम राजा मंदिर शासकीय है और आयकर से मुक्त है, लेकिन आयकर विभाग का अधिकारी मोहम्मद इरफान ये मानने को तैयार नहीं है।”
इस्कॉन (Iscon) के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने भी आज अपने ट्विटर हैंडल पर इस नोटिस को शेयर किया। उन्होंने लिखा, “आयकर विभाग के अधिकारी मोहम्मद इरफान ने ओरछा के श्रीराम मंदिर को मिले 1 करोड़ 22 लाख रुपए के दान को आय बताकर उस पर टैक्स देने के लिए नोटिस भेजा है। हालाँकि, यह मंदिर सरकारी है और इनकम टैक्स के दायरे में नहीं आता, लेकिन वह अपने पद का दुरुपयोग कर रहा है।”
Income Tax officer Mohammad Irfan sends notice to Shri Ram Temple in Orchha declaring donations of Rs 1 crore 22 lakh received by the temple as income & demanding tax on it. Although this Temple is government owned & free from income tax but he is using his post to harras them. pic.twitter.com/1DkXeqGEbR
— Radharamn Das राधारमण दास (@RadharamnDas) April 18, 2023
इस बात पर चर्चा हो रही है कि क्या मंदिर को टैक्स चुकाने के लिए कहा जाना चाहिए या नहीं, इस मामले में कानून स्पष्ट है। सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि कानून में देवी और देवताओं का प्रतिनिधित्व कैसे किया जाता है। कानून के अनुसार, देवी-देवता एक सामान्य व्यक्ति की तरह ही वादी हैं। उन्हें न्यायिक संस्थाएँ कहा जाता है। कानून दो प्रकार के व्यक्तियों को पहचानता है, एक मनुष्य और दूसरा कृत्रिम रूप से बनाए गए व्यक्ति (न्यायिक व्यक्ति), जिन्हें कानूनी व्यक्ति भी कहा जाता है।
कृत्रिम रूप से बनाए गए व्यक्ति के मामले में पहचान का उपयोग कंपनियों, ट्रस्टों, समाज, निजी व्यवसायों और कंपनियों के लिए किया जाता है। उल्लेखनीय है कि अदालतों ने पूरे पशु साम्राज्य को ‘लीगल इंटिटी’ के रूप में घोषित किया है। यदि हम उत्तराखंड उच्च न्यायालय के जुलाई 2018 के फैसले को देखें, तो उसने पूरे पशु साम्राज्य को इस तथ्य के आधार पर एक लीगल इंटिटी के रूप में घोषित किया है कि उन सभी के पास एक जीवित व्यक्ति के समान अधिकारों और कर्तव्यों के साथ एक अलग व्यक्तित्व है।
विशेष रूप से जब हिंदू देवी-देवताओं की बात आती है, तो एक व्यक्ति के रूप में उन्हें मान्यता अंग्रेजों के समय से चली आ रही है। 1887 में देवी-देवताओं को एक मित्र, शेबैत और प्रबंधक के माध्यम से व्यक्तियों के रूप में मान्यता दी गई थी और यह उल्लेख किया गया था कि उनके पास भी अधिकार हैं। उस समय की प्रिवी काउंसिल ने डाकोर मंदिर (Dakor Temple) मामले में फैसला सुनाया था, “हिंदू देवी-देवताओं की मूर्ति एक न्यायिक विषय है और जिस पवित्र विचार को वह मूर्त रूप देती है उसे एक कानूनी व्यक्ति का दर्जा दिया जाता है।”
देवताओं को ही नहीं, बल्कि नदियों को भी अधिकार मिलने वाले व्यक्ति के रूप में माना गया है। सुप्रीम कोर्ट में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बनाम सोमनाथ दास और अन्य के 2000 के मामले में कहा गया था, “न्यायिक व्यक्ति शब्द ही एक व्यक्ति के कानून में होने की मान्यता को दर्शाता है जो अन्यथा नहीं है। दूसरे शब्दों में, यह एक व्यक्तिगत प्राकृतिक व्यक्ति नहीं है, बल्कि एक कृत्रिम रूप से बनाया गया व्यक्ति है, जिसे कानून के रूप में मान्यता दी जानी है। देवताओं, कॉर्पोरेशन, नदियों और जानवरों सभी को अदालतों द्वारा न्यायिक व्यक्तियों (Juristic Persons) के रूप में माना गया है।
भगवान कृष्ण, भगवान अयप्पा और राम लला से संबंधित मामलों में हिंदू देवताओं को अदालत में एक प्रबंधक/शबैत/अभिभावक द्वारा प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति के रूप में मान्यता दी गई है। हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि सभी मूर्तियों को एक व्यक्ति के रूप में माना जा सकता है। केवल वे मूर्तियाँ जिन्हें सार्वजनिक रूप से स्थापित किया गया है, या प्राण प्रतिष्ठा की गई है वे एक न्यायिक इकाई के रूप में अधिकार प्राप्त करती हैं। गैर-इकाई और इकाई के बीच के अंतर का उल्लेख सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 1969 के फैसले में किया था। अदालत ने कहा था, “सभी मूर्तियाँ ‘न्यायिक व्यक्ति’ होने के योग्य नहीं होंगी, यह केवल तभी होगा, जब इसे जनता के लिए सार्वजनिक स्थान पर स्थापित किया जाता है।”
धर्म के साथ बदलती है परिभाषा
हिंदू देवताओं को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में मान्यता दी गई है, जिसके पास संपत्ति हो सकती है, अधिकार और दायित्व हो सकते हैं। लेकिन यह कानून अन्य धर्मों के लिए समान नहीं है। सिख धर्म में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को एक जीवित गुरु माना जाता है और इस प्रकार कानून ग्रंथ साहिब को एक न्यायिक इकाई के रूप में देखता है। हालाँकि, प्रत्येक ग्रंथ साहिब एक न्यायिक व्यक्ति नहीं हो सकता, जब तक कि वह एक गुरुद्वारे में अपनी स्थापना के माध्यम से एक न्यायिक भूमिका नहीं लेता है। सर्वोच्च न्यायालय के 2000 के फैसले में देखा गया, “ईसाई और इस्लाम मजहब के मामले में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इस प्रकार, इन दोनों धर्मों का कोई न्यायिक अस्तित्व नहीं है। इस्लाम के मामले में, केयरटेकर नमाज करने वाली जगह का संचालन करते हैं और चर्चों के मामले में वे संगठन, जो ट्रस्ट या समाज के रूप में पंजीकृत हैं, बिल्डिंग्स की देखभाल करते हैं।”
ध्यान दें कि भारत में अधिकांश मंदिर वार्षिक इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करते हैं। आवश्यक हो तो टैक्स का भुगतान भी करते हैं। कैश डिपॉजिट के बारे में स्पष्टीकरण माँगने के लिए आईटी विभाग द्वारा जारी किया गया नोटिस एक नियमित नोटिस हो सकता है, जिसे विभाग समय-समय पर व्यक्तियों को भेजता है। नोटिस में इस बात का जिक्र नहीं था कि विभाग ने बताई गई राशि पर टैक्स माँगा है। जैसा कि मंदिर प्रशासन ने कथित तौर पर आईटी रिटर्न में लेनदेन को शामिल नहीं किया था। नोटिस में केवल स्पष्टीकरण माँगा गया है कि इसे आय के रूप में क्यों माना जाना चाहिए।