Thursday, November 7, 2024
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J&K: अब तक 6600 लोगों को ​डोमिसाइल सर्टिफिकेट, ज्यादातर दलित और गोरखा

इस प्रक्रिया के तहत ​वाल्मीकि और गोरखा समुदाय के जिन लोगों को फायदा हुआ है वे पश्चिमी पाकिस्तान से आए हैं। कुछ 1947 में देश के विभाजन के बाद यहॉं आए थे तो कुछ 1957 में पंजाब से सफाई के कार्य के लिए लाकर बसाए गए थे।

जम्मू-कश्मीर में बीते एक हफ्ते से डोमिसाइल सर्टिफिकेट बॉंटा जा रहा है। अब तक करीब 6600 लोगों को प्रमाण-पत्र दिया जा चुका है। इस प्रक्रिया को 15 दिनों में पूरा किया जाना है।

आर्टिकल 370 के समाप्ति के बाद केंद्र शासित प्रदेश में वर्षों से रह रहे लोगों को स्थायी निवास का प्रमाण-पत्र देने का रास्ता खुला था। जम्मू-कश्मीर नागरिक सेवा अधिनियम, 2010 के नियमों के तहत डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी किया जा रहा है।

अब तक जिन लोगों को स्थायी निवास का प्रमाण-पत्र दिया गया है उनमें ज्यादातर वाल्मीकि, रिटायर्ड गोरखा सैनिक और केंद्र शासित प्रदेश में सालों से तैनात सरकारी कर्मचारी हैं। जम्मू के अतिरिक्त उपायुक्त (राजस्व) विजय कुमार शर्मा ने बताया कि लगभग 700 निवास प्रमाण-पत्र कश्मीर के लिए जारी किए गए हैं।

अब तक करीब 33,000 लोगों ने डोमिसाइल सर्टिफिकेट के लिए अप्लाई किया है। हर दिन लगभग 200 लोग निवास प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन कर रहे है।

जम्मू में बाहु के तहसीलदार डॉ. रोहित शर्मा ने बताया कि उनके क्षेत्र में करीब 3500 लोगों ने डोमिसाइल के लिए आवेदन किया था। इनमें से करीब 2500 ऐसे लोगों को सर्टिफिकेट दिया गया है जो गोरखा हैं। अन्य लोग दलित समुदाय से हैं।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया को 68 वर्षीय प्रेम बहादुर ने बताया कि उनके पिता हरक सिंह ने जम्मू-कश्मीर में तब के शासक महाराजा हरि सिंह की सेना में नौकरी की थी। इसके बाद उनके भाई ओमप्रकाश और उन्होंने गोरखा राइफल्स ज्वाइन की। डोमिसाइल ​सर्टिफिकेट मिलने पर प्रसन्नता जताते हुए उन्होंने कहा कि अब वे शांति से मर सकेंगे।

गौरतलब है कि यह प्रक्रिया शुरू होने के बाद नवीन चौधरी जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी बनने वाले दूसरे प्रांत के पहले शख्स हैं। आईएएस नवीन चौधरी मूल रूप से बिहार के दरभंगा के रहने वाले हैं।

हालॉंकि केंद्र शासित पदेश की पार्टियॉं इसका विरोध कर रही हैं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और अलगाववादी अमलगाम हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों ने इसे जनसांख्यिकी में बदलाव की साजिश करार दिया है। साथ ही उनका कहना है कि आरएसएस के इशारे पर सरकार ऐसा कर रही है।

इस प्रक्रिया के तहत ​वाल्मीकि और गोरखा समुदाय के जिन लोगों को फायदा हुआ है वे पश्चिमी पाकिस्तान से आए हैं। कुछ 1947 में देश के विभाजन के बाद यहॉं आए थे तो कुछ 1957 में पंजाब से सफाई के कार्य के लिए लाकर बसाए गए थे।

नए नियमों के मुताबिक जो लोग 15 साल से जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं या 7 साल तक यहॉं पढ़ाई की है, वे स्थायी निवासी बन सकते हैं। केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों के अधिकारी, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारी और बैंक कर्मचारी जिन्होंने 10 साल तक जम्मू-कश्मीर में काम किया है वो भी स्थायी निवासी बन सकते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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