जस्टिस रवींद्र भट्ट भीमा-कोरेगाँव हिंसा के आरोपित गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई से ख़ुद को अलग करने वाले सुप्रीम कोर्ट (SC) के पाँचवे जज बन गए हैं। गुरुवार (3 अक्टूबर) को तीन जजों की बेंच को नवलखा की याचिका पर सुनवाई करनी थी, लेकिन जैसे ही यह मामला सुनवाई के लिए बेंच के सामने आया, जस्टिस रवींद्र भट्ट ने ख़ुद को अलग करने की घोषणा कर दी।
ख़बर के अनुसार, गौतम नवलखा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर ख़ुद के ख़िलाफ़ दर्ज FIR को निरस्त करने की माँग की थी। दरअसल, पुणे पुलिस ने पिछले साल नक्सलियों से सम्पर्क और भीमा-कोरेगाँव और एल्गार परिषद् के मामलों में नवलखा के ख़िलाफ़ FIR दर्ज की थी, जिसे उसने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए रद्द करने की माँग की थी। 13 सितंबर 2019 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने नवलखा की याचिका ख़ारिज कर दी थी, इसके बाद नवलखा ने 30 सितंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया।
इस मामले में नवलखा के अलावा वरवरा राव, अरुण फरेरा, वर्णन गोन्साल्विज और सुधा भारद्वाज भी आरोपित हैं। पुणे पुलिस ने 31 दिसंबर, 2017 को एल्गार परिषद के बाद एक दिसंबर को भीमा-कोरेगाँव में हुई कथित हिंसा के मामले में जनवरी, 2018 को FIR दर्ज की थी।
इससे पहले, चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया रंजन गोगोई और फिर जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ के सदस्य जस्टिस बीआर गवई ने नवलखा की याचिका पर सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लिया था। पीठ को जब नवलखा के वकील ने यह बताया कि बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा उन्हें दिए गए तीन सप्ताह के संरक्षण की अवधि शुक्रवार (4 अक्टूबर) को समाप्त हो रही है तो पीठ ने कहा कि इस मामले में शुक्रवार को नई पीठ विचार करेगी। इस मामले में महाराष्ट्र सरकार ने कैविएट दाखिल कर रखी है ताकि उसका पक्ष सुने बगैर कोई आदेश पारित न किया जाए।
दरअसल, हितों के टकराव की स्थिति में या फिर वैसे मामले में जब जज बतौर वकील उस पार्टी की तरफ से कोर्ट में पेश हुए हों और बाद में जज बन गए हों, तो वो ऐसा करते हैं। इसके कई उदाहरण देखने को मिल चुके हैं। हाल ही में, जस्टिस यू यू ललित ने अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था क्योंकि वह बाबरी मस्जिद का ढाँचा गिराने के आरोपित की तरफ से बतौर वकील कोर्ट में पेश हुए थे।