पिछले दिनों जस्टिस मुरलीधर का दिल्ली से पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में तबादला कर दिया गया था। इसमें कुछ भी नया नहीं था और पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया था। इसके बावजूद लिबरल गैंग और प्रोपेगेंडा पोर्टलों ने इस तरह का माहौल बनाने की कोशिश की जिससे संदेश जाए कि भाजपा नेताओं के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई से दूर रखने के लिए उनका रातोंरात तबादला कर दिया गया।
इन दुष्प्रचारों को खुद जस्टिस मुरलीधर ने भी खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि 17 फरवरी को ही उन्हें तबादले की सूचना मिल गई थी। चीफ जस्टिस एसए बोबडे से उन्हें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में उनके स्थानांतरण के लिए कॉलेजियम की सिफारिश की सूचना मिली थी। बकौल जस्टिस मुरलीधर, उन्होंने इसे स्वीकार कर कहा था कि कोई दिक्कत नहीं है।
ये बात उन्होंने गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से आयोजित विदाई समारोह में कही। जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि वह अपने तबादले को लेकर पैदा हुए भ्रम को साफ कर देना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें 17 फरवरी को ही तबादले के बारे में सूचित कर दिया गया था। सीजेआई की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने 12 फरवरी की बैठक में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में उनके तबादले की अनुशंसा की थी।
न्यायमूर्ति मुरलीधर ने कहा, मुझे 17 फरवरी को इसके बारे में सूचित किया गया था और इससे कोई समस्या नहीं थी. कॉलेजियम द्वारा तबादले की सिफारिश को लेकर CJI एसए बोबडे से मुझे 17 फरवरी को एक संदेश प्राप्त हुआ था.#NewsState https://t.co/F58rh3ap2k
— News State (@NewsStateHindi) March 6, 2020
जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने जब कॉलेजियम की राय के बारे में मुझे बताया तो मैंने भी इस पर अपनी सहमति दे दी थी। उन्होंने यह भी कहा कि जब मुझसे मेरे तबादले के बारे में पूछा गया तो मैंने कहा कि मुझे पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट जाने में कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने कहा मैंने सीजेआई को साफ किया कि मुझे प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं है।
जस्टिस मुरलीधर ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि हमें सच के साथ डटकर खड़े रहना चाहिए। मुरलीधर ने आगे कहा कि सच को जब जीतना होगा वह जीत जाएगा, लेकिन हमें सच के साथ बिना किसी संशय के साथ खड़े रहना चाहिए।
गौरतलब है कि 26 फरवरी की रात जस्टिस मुरलीधर के तबादले का आदेश जारी होने पर विवाद खड़ा हो गया था। आदेश से पहले उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने दिल्ली दंगों पर पुलिस को कड़ी फटकार लगाई थी। पीठ ने उस याचिका पर सुनवाई की थी जो बीजेपी नेता कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के खिलाफ दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि इनके भड़काऊ भाषणों के कारण ही दंगे भड़के। सुनवाई के दौरान अदालत में कपिल मिश्रा के बयान का विडियो भी चलाया गया था।