कर्नाटक हाईकोर्ट (धारवाड़ बेंच) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. कृष्ण भट 4 अगस्त 2022 को सेवानिवृत्त हो गए। अपने फेयवेल स्पीच में जस्टिस भट ने न्यायपालिका से जुड़ी कई बातों को साथी जजों एवं वकीलों के साथ साझा किया।
जस्टिस भट ने कहा कि ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’ के लिए खतरा एक मिथक के अलावा कुछ नहीं है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक न्यायाधीश द्वारा स्वतंत्र रहकर महसूस की जा सकती है। यह ‘वैरागी’ न्यायाधीश (भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ई.एस. वेंकटरमैया के बधाई शब्दों में) ही एक स्वतंत्र न्यायपालिका बनाता है।
इस दौरान न्यायमूर्ति भट ने 1998 से एक जिला न्यायाधीश के रूप में अपने 22 वर्षों के अनुभव को साझा किया। इस दौरान वे वे तीन प्रमुख पदों- रजिस्ट्रार (सतर्कता), रजिस्ट्रार (न्यायिक) और उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार-जनरल के रूप में काम किया। इसके बाद वे साल 2020 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हो गए।
एक घटना को याद करता हुए जस्टिस भट ने कहा, “मुझे एक घटना याद है, जिसमें हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र एक जिला जज के खिलाफ कार्रवाई के लिए कहा था, क्योंकि वह व्यक्तिगत रूप से हवाई अड्डे पर पहुँच कर स्वागत नहीं किया था। यह रिकॉर्ड का हिस्सा है।”
"I have known of an instance of HC Judge addressing a letter to the Chief Justice of High Court calling for action against a District Judge all because he was not received at the Airport personally by him and it is part of the record" Justice Krishna Bhat in farewell speech pic.twitter.com/7UZ7ygygGv
— Live Law (@LiveLawIndia) August 5, 2022
उन्होंने कहा, “यदि देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के उत्तराधिकारी न्यायिक अधिकारियों (जेओ) को अपने आवास पर वादियों को पर्चियाँ देने के प्रयास में बुलाते हैं और सुरक्षा के संकेत के साथ उनके पूर्ववर्तियों के नाम हटा देते हैं तो तो यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर समस्या है।”
जस्टिस भट ने कहा, “न्यायिक अधिकारी तब तक स्वतंत्र रहेंगे जब तक वे ‘प्रोटोकॉल’ के नाम पर ज्यादती करने से बचते हैं और संभावित ‘फोन कॉल’ और ‘स्लिप पास’ और अपरिहार्य संभावित प्रतिशोध की परवाह किए बिना निडर और स्वतंत्र तरीके से प्रशासन का कार्य करते हैं।” उन्होंने कहा कि प्रोटोकॉल के नाम पर ‘घोर आज्ञाकारिता’ और ‘महंगी वस्तुओं को उपहार में देना’ शामिल है।
उन्होंने कहा, “पहली बार में यह बेतुका और कठोर लग सकता है। न्यायाधीशों, न्यायिक अधिकारियों और लोकायुक्त/उप-लोकायुक्त जैसे अन्य उच्च अधिकारियों को नार्को-विश्लेषण परीक्षण के लिए खुद को पेश करना चाहिए, साथ ही संबंधित पदाधिकारी द्वारा नामित व्यक्तियों पर समान परीक्षण का समान दायित्व होना चाहिए, यदि पदाधिकारी को लगता है कि शिकायत झूठी और प्रेरित है।”
उन्होंने आगे कहा, “इसी तरह यदि न्यायाधीश संदिग्ध कंपनी के डेस्टिनेशन हॉलिडे के में घूमते पाए जाते हैं तो न्यायाधीश के रूप में उनकी स्वतंत्रता के बारे में सवाल उठना लाजिमी है।” उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, “यह मेरी जानकारी में आया है कि एक प्रधान जिला न्यायाधीश ने निजी यात्रा पर आए नई दिल्ली के एक गणमान्य व्यक्ति की पत्नी को देने के लिए एक महंगी साड़ी खरीदी की, और गणमान्य युगल इसे लिए बिना चले गए।”