केरल के कोझिकोड में सुन्नी सेंटर में नमाज पढ़ने की हाई कोर्ट ने अनुमति दे दी है। प्रशासन ने इस इलाके में 4 मस्जिद होने की बात कहते हुए इसके लिए इजाजत नहीं दी थी। आसपास के लोग भी इसका विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि नमाज के नाम पर बिना अनुमति मस्जिद बनाई जा रही है।
हाई कोर्ट ने कहा कि सिर्फ दूसरे समुदाय के कुछ लोगों के विरोध के चलते नमाज पढ़ने के लिए बनाई जा रही इमारत का उपयोग करने से नहीं रोका जा सकता है। हाई कोर्ट ने इसके साथ ही मजहबी गतिविधियों की अनुमति दे दी। केरल हाई कोर्ट के जस्टिस मुहम्मद नियास सीपी ने यह फैसला सुनाया।
उन्होंने नमाज के लिए बनाए जा रहे सुन्नी सेंटर को NOC देने के लिए भी कोझिकोड के कलेक्टर को दोबारा विचार के आदेश दिए हैं। जस्टिस नियास ने इस मामले में प्रशासन की वह दलीलें भी नकार दी जिनमें कहा गया था कि यहाँ नमाज के लिए बनाई जा रही इमारत से कानून-व्यवस्था बिगड़ने का डर है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला केरल के कोझिकोड जिले के कडलुंदी गाँव का है। यहाँ रहने वाले केटी मुजीब के पास एक इमारत है। इस इमारत में 2004 से नमाज पढ़ी जा रही है। 2014 में मुजीब ने इस इमारत की छत की मरम्मत करने के लिए ग्राम पंचायत से NOC माँगी थी। वह उसे दे दी गई थी।
इसके कुछ दिनों बाद इस इमारत के पास रहने वाले हिन्दुओं ने शिकायत की कि यहाँ अवैध निर्माण चल रहा है। इसके बाद पंचायत ने काम रोक दिया। इसके बाद यह मामला जिला प्रशासन के पास पहुँचा, उसने भी 2016 में मुजीब की इमारत में किसी भी प्रकार की नमाज या बाकी धार्मिक गतिविधि पर रोक लगा दी।
इसके खिलाफ मुजीब कोर्ट पहुँच गया। हाई कोर्ट ने प्रशासन के आदेश पर रोक लगाई और अंतरिम तौर पर मुजीब को राहत देते हुए नमाज आयोजित करने की अनुमति दे दी। हालाँकि, कोर्ट ने मुजीब को आदेश दिया कि इस दौरान लाउडस्पीकर का उपयोग नहीं होना चाहिए और ना ही यहाँ जुमे की नमाज पढ़ी जानी चाहिए।
इस मामले में कोर्ट ने जिला कलेक्टर से इस मामले में पुलिस और प्रशासन से रिपोर्ट लेकर फैसला लेने को कहा। कोझिकोड कलेक्टर ने भी आगे इस मामले में स्थानीय हिन्दुओं के विरोध के चलते NOC जारी करने से मना कर दिया। इसके बाद मुजीब फिर कोर्ट पहुँच गया।
मामले की सुनवाई के दौरान स्थानीय हिन्दुओं की तरफ से हाई कोर्ट को बताया गया कि मुजीब इस इमारत को एक मस्जिद के जैसे चला रहा है और इसकी कोई भी अनुमति नहीं ली गई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यहाँ संदिग्ध लोगों का आना जाना होता है। उन्होंने मुजीब पर कोर्ट के पुराने आदेश का गलत इस्तेमाल करने का आरोप भी लगाया।
इस मामले में स्थानीय पुलिस अधिकारी और तहसीलदार द्वारा कलेक्टर को भेजी गई रिपोर्ट में भी कहा गया कि इस नई इमारत के 1 किलोमीटर के दायरे में पहले से 4 मस्जिद हैं और नई कि आवश्यकता नहीं है। इस रिपोर्ट में बताया गया कि स्थानीय हिन्दू इसका विरोध कर रहे है।
सुन्नी सेंटर को मस्जिद में बदलने का विरोध इसके बाद जिले के ADM की रिपोर्ट में भी किया गया। इसके बाद कलेक्टर ने NOC देने से इनकार कर दिया। इस मामले में कोर्ट को गाँव के सचिव ने भी कमोबेश यही बात बताई। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि जिस इमारत पर विवाद है, वह एक परिवार के रहने के लिए है ना कि नमाज का हॉल बनाने के लिए।
क्या कहा हाई कोर्ट ने अपने फैसले में?
हाई कोर्ट में जस्टिस नियास ने हिन्दू पक्ष और मुजीब की दलीलों को सुनने के बाद NOC पर लगाई गई रोक को रद्द कर दिया। जस्टिस नियास ने कहा, “जिला प्रशासन के अधिकारियों की रिपोर्ट से पता चलता है कि उन्हें दूसरे समुदाय (हिन्दुओं) द्वारा की गई आपत्तियों के कारण कानून और व्यवस्था की स्थिति की आशंका है। केवल इसीलिए कि एक समुदाय दूसरे समुदाय द्वारा मजहबी स्थल की स्थापना का विरोध करता है, यह नहीं माना जा सकता कि इससे शांति भंग होगी।”
जस्टिस नियास ने आगे कहा,”एक लोकतांत्रिक देश में जहाँ नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने और उसे मानने का मौलिक अधिकार है, किसी भी समुदाय द्वारा मजहबी स्थल की स्थापना को केवल अन्य समूहों के विरोध के कारण रोका नहीं किया जाना चाहिए।”
जस्टिस नियास ने इस मामले में जिला कलेक्टर से कहा है कि वह NOC पर दोबारा विचार करें और कोर्ट के फैसले के हिसाब से फैसला करें। जस्टिस नियास ने इसी के साथ मुजीब को अपने हॉल को नमाज के लिए उपयोग करने की इजाजत दे दी।