Friday, October 18, 2024
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‘बहू ने एक बार भी नहीं कहा ‘कीर्ति चक्र’ छूकर भी देख लीजिए’: बलिदानी कैप्टन के पिता बोले – पैसों को लेकर नहीं है कोई मतभेद, रोती हुईं माँ ने कहा – अब जीना नहीं चाहती

"हमने कहा कि आपकी इच्छा है तो हम रक्षा अलंकरण समारोह में नहीं जाएँगे। मैंने अपनी पत्नी से सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से सम्मान लेने के दौरान हाथ लगाने के लिए कहा और उन्होंने ऐसा ही किया, फिर झिझक के साथ हाथ हटा लिया।"

सियाचिन में बलिदान हुए कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत भारत सरकार ने ‘कीर्ति चक्र’ से नवाजा, जिसे उनकी पत्नी स्मृति सिंह और माँ मंजू देवी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों प्राप्त किया। अब परिवार में सास-बहू में थी ठन गई है, माता-पिता ने मीडिया के सामने आकर बहू स्मृति पर कई आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि ‘कीर्ति चक्र’ स्मृति लेकर चली गईं, उन्हें कुछ नहीं मिला। बलिदानी कैप्टन की माँ ने ‘बहुऍं भाग जाती हैं’ कह कर बताया कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं।

अब ‘News 18’ से बात करते हुए वीरगति को प्राप्त कैप्टन अंशुमान सिंह की माँ ने कहा कि ‘कीर्ति चक्र’ लेकर बहू अपने मायके गुरदासपुर चली गई हैं। दिवंगत अंशुमान सिंह के पिता खुद सेना से रिटायर हैं। उन्होंने कहा कि उनके बेटे ने जीवन के अंतिम पड़ाव पर बलिदान को गले लगाया, अंतिम यात्रा में लोग उनका नाम लिख कर पुष्पवर्षा कर रहे थे – इसे वो आज भी अपने दिलों में सँजो कर रखे हुए हैं, CM योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिलने समय उन्हें अपनापन महसूस हुआ।

उन्होंने राज्य व केंद्र सरकारों द्वारा किए गए सहयोग को लेकर कृतज्ञता जताई, लेकिन साथ ही कहा कि यूपी सरकार ने जो 50 लाख रुपए दिए थे उसमें से 35 लाख रुपए बहू और 15 लाख रुपए उन्हें मिले थे। उन्होंने आगे बताया कि राज्य सरकार ने सड़क के नामकरण का आश्वासन दिया था, जिसके लिए राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने सर्कुलर जारी कर दिया है। उन्होंने ये भी बताया कि परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिए जाए की प्रक्रिया भी मुख्यमंत्री ने आगे बढ़ा दी है।

बीमा के पैसों को लेकर उन्होंने बताया कि वो भी 50:50 डिस्ट्रीब्यूट हुआ है। साथ ही उन्होंने कहा कि पैसे को लेकर उनका कोई मतभेद नहीं है। उन्होंने ‘दर्द’ की बात करते हुए कहा, “जिस दिन राष्ट्रपति भवन में मेरी पत्नी जा रही थीं, वहाँ जो पेपर दिया गया उसे उन्होंने हाथ से पकड़ा। मेरी बहू ने कहा होगा, जिसके बाद CO साहब ने कहा कि ये अच्छा नहीं लगा। हमने कहा कि आपकी इच्छा है तो हम रक्षा अलंकरण समारोह में नहीं जाएँगे। मैंने अपनी पत्नी से सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से सम्मान लेने के दौरान हाथ लगाने के लिए कहा और उन्होंने ऐसा ही किया, फिर झिझक के साथ हाथ हटा लिया।”

बलिदानी कैप्टन के पिता ने कहा कि वहाँ से लौटने के बाद लखनऊ में अंशुमान सिंह की मूर्ति के पास ‘कीर्ति चक्र’ लगाए जाने का निवेदन दिया, जिस पर उन्होंने विचार करने का आश्वासन दिया। उन्होंने बताया कि ‘भारत मंडपम’ में डिनर के दौरान बहू के पास ‘कीर्ति चक्र’ था, लेकिन उन्होंने एक बार भी नहीं का कि पापा आप इसे एक बार हाथ में ले लीजिए। उन्होंने कहा कि वो खुद एक फौजी हैं, वो इसे महसूस करते। उन्होंने कहा कि पैसे को लेकर कुछ नहीं है।

उन्होंने ये माँग भी की कि पत्नी के साथ-साथ माता-पिता को भी एक रेप्लिका मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें फ़ख्र है कि उनका बेटा कायर नहीं वीर था। वहीं अंशुमान सिंह की माँ ने कहा कि उनका बेटा वहाँ होते साँस ले रहे होते कम से कम तो उन्हें बहुत अच्छा लगता। उन्होंने कहा कि आज भी वो दिन-रात 19 जुलाई, 2023 का दर्द लेकर बैठी हुई हैं। उन्होंने बताया कि ‘कीर्ति चक्र’ के रिहर्सल के दौरान उनकी बहू ने मुद्दा बनाया, वो उनके लिए बहू नहीं बेटे की तरह ही है। उन्होंने कहा कि उनके 2 और बच्चे हैं, वो चाहेंगी कि वो फौज में जाएँ, उन्हें अब भी डर नहीं लगता है।

उन्होंने कहा, “माँ के लिए हर बच्चा बराबर होता है, ये बच्चे पर निर्भर करता है कि वो इसका दिल जीतता है। हर माँ अच्छी होती है, लेकिन वो बेटा ऐसा था जिसे सम्मान मिला।” पिता ने बताया कि ये उनकी जानकारी में नहीं था कि उनके बेटे और स्मृति 8 साल के रिश्ते में थे। उन्होंने ये भी बताया कि उन्होंने शादी का समर्थन किया था। उन्होंने बताया कि अपनी बहू को वो अंशुमान कह कर ही बुलाती थीं, वो उनकी बेटी ही हैं अभी भी।

इससे पाहे अंशुमान सिंह के पिता ने NOK (नेक्स्ट ऑफ किन) वाले सेना के नियम में बदलाव की माँग की थी। राहुल गाँधी ने भी परिवार से मुलाकात की थी। भारतीय सेना में ट्रेंड है कि विवाह के बाद जवान द्वारा सामान्यतः अपनी पत्नी को शत-प्रतिशत नॉमिनी बना दिया जाता है। कुछ जवान ऐसे भी आते हैं जो 70:30 का फॉर्मूला रखते हैं, यानी 70% नॉमिनी पत्नी होती हैं और 30% माता-पिता। नियम के तहत तो 50:50 फॉर्मूले की व्यवस्था भी है, लेकिन कुछ ही जवान इसे चुनते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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