Monday, November 18, 2024
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‘टुकड़े-टुकड़े कर रामगोपाल मिश्रा के शव को कर देते गायब’: फायरिंग के बीच हिंदू युवक को बचाने जो अब्दुल हमीद की छत पर पहुँचा, उसने बताया बहराइच के मुस्लिमों का प्लान

रामगोपाल मिश्रा का शव अब्दुल हमीद के घर की छत से निकालकर लाने वाले शख्स का नाम किशन मिश्रा है। किशन से हमारी मुलाकात 17 अक्तूबर को हुई। इस दौरान उन्होंने हमें बताया कि अगर घटना वाले दिन पुलिस थोड़ा सा साथ दे देती तो शायद आज रामगोपाल जीवित होते।

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में रामगोपाल मिश्रा को रविवार (13 अक्टूबर 2024) को मुस्लिम भीड़ ने पुलिस की मौजूदगी में मार डाला था। यह हत्या तब हुई थी जब रामगोपाल मिश्रा माँ दुर्गा के विसर्जन यात्रा में शामिल हुए थे। आरोप है कि अब्दुल हमीद के घर में हुई उनकी हत्या के बाद मुस्लिम भीड़ शव को घर के अंदर खींच ले गई थी। वायरल हुए एक वीडियो में कुछ लोग बरसते पत्थर और गोलियों के बीच से छत से रामगोपाल की लाश को नीचे लाने की कोशिश कर रहे हैं। ऑपइंडिया ने रामगोपाल का शव लेकर बाहर लाने वाले व्यक्ति से बात की।

रामगोपाल का शव बाहर लाने वाले युवक का नाम किशन मिश्रा है। किशन रामगोपाल के चचेरे भाई हैं। दोनों एक साथ बचपन से ही खेलकूद कर बड़े हुए और एक ही साथ पढ़े-लिखे हैं। शव बाहर निकालने में किशन का सहयोग राजन मिश्रा ने किया था। किशन से हमारी मुलाकात गुरुवार (17 अक्टूबर 2024) को उनके गाँव रेहुआ में हुई। तब पूरे गाँव में पुलिस का कड़ा पहरा था। किशन खुद ही जैसे-तैसे बाहर निकल कर हमसे बात कर पाए। हमने किशन की इच्छा के मुताबिक अँधेरे में बात की।

एक तरफ से मुस्लिमों की पत्थरबाजी, दूसरी तरफ से पुलिस का लाठीचार्ज

किशन मिश्रा ने हमें बताया कि शुरुआत में हंगामा हुआ और उसी समय पुलिस ने विसर्जन जुलूस पर लाठीचार्ज कर दिया। इसी लाठीचार्ज के बाद एकजुट होकर चल रहा हिन्दू समाज तितर-बितर हो गया और मुस्लिम भीड़ ने रामगोपाल मिश्रा को घर के अंदर खींच लिया। जब किशन मिश्रा अपने चचेरे भाई को छुड़वाने के लिए वापस लौटे तो उनको 2 तरफा प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। पहले गोलियों और पत्थर बरसा रही मुस्लिम भीड़ का तो दूसरा लाठीचार्ज कर रहे पुलिस बल का।

किशन का दावा है कि वो कई बार पुलिस वालों से ये कह कर मदद माँगते रहे कि रामगोपाल को अंदर खींच लिया गया और उसे बाहर निकालने में सहयोग किया जाए। इस गुहार का कोई फर्क नहीं पड़ा। जब पुलिस से कोई सहयोग नहीं मिला तब किशन मिश्रा ने खुद ही अपने 2 सहयोगियों के साथ मुस्लिम भीड़ से रामगोपाल को बचा कर लाने का संकल्प लिया। इन 2 सहयोगियों में एक किशन के ही घर के सदस्य राजन मिश्रा थे। किशन दावा करते हैं कि अगर पुलिस ने हिन्दुओं पर ही जोर दिखाने के बजाय मदद की होती तो शायद रामगोपाल आज जीवित होते।

पड़ोसी हिन्दू का घर खुलवा कर पहुँचे अब्दुल की छत पर

किशन मिश्रा ने हमें आगे बताया कि रामगोपाल की हत्या अब्दुल हमीद के छत पर हुई थी। उसकी छत पर पहुँचना आसान नहीं था। रास्ते में लाठीचार्ज से भाग रही भीड़ थी। सामने पुलिसकर्मी खड़े थे और पीछे से मुस्लिम भीड़ पत्थर और गोलियाँ चला रही थी। ऐसे में उन्होंने सड़क मार्ग के बजाय छतों से रामगोपाल तक पहुँचने का निर्णय लिया। अब्दुल हमीद के घर के पास ही एक हिन्दू का घर था। उसे बड़ी मिन्नत करके खुलवाया गया। फिर उनकी छत से दूसरी छत होते हुए अब्दुल की छत पर किशन और राजन पहुँच गए।

किशन ने बताया कि इतने छोटे से ही रास्ते में उनको व राजन को कई बार गोलियों और पत्थरों से खुद को बचाना पड़ा। पर किशन अब्दुल हमीद की छत पर पहुँचे तब वहाँ रामगोपाल अचेत हालत में पड़े थे। जैसे ही उन्होंने राजन मिश्रा के साथ मिल कर रामगोपाल को हाथ और पैर पकड़ कर उठाया वैसे ही मुस्लिम भीड़ ने उन पर हमला कर दिया। इस हमले को अब्दुल हमीद का बेटा सरफराज लीड कर रहा था। उसने दीवाल की आड़ में छिप कर राजन और किशन के साथ रामगोपाल के अचेत शरीर को भी निशाना साध कर गोलियाँ मारी।

ईंट फेंक कर गिराई सरफराज की बंदूक

किशन मिश्रा ने बताया कि सरफराज द्वारा दागी गई पहली गोली निशाने पर नहीं लगी वर्ना शायद उनका भी शव रामगोपाल की ही तरह अब्दुल हमीद के घर में मिलता। पहली गोली चलने के बाद किशन और राजन ने रामगोपाल की अचेत देह को नीचे रखा और छत से एक ईंट लेकर सरफराज की तरफ फेंकी। यह ईंट निशाने पर लगी और सरफराज के हाथों से बंदूक छूट कर नीचे गिर गई। जब तक सरफराज संभल कर फिर से गोलियाँ बरसाने की हालत में आता तब तक किशन और राजन मिल कर रामगोपाल को बाहर निकाल चुके थे।

किशन मिश्रा के अनुसार सरफराज के साथ उसके अब्बा अब्दुल हमीद और भाई तालिब और फहीम भी हिंसा में पूरी तरह से एक्टिव थे। जब सरफराज गोली चला रहा था तब ये सब अन्य मुस्लिम भीड़ के साथ मिल कर पत्थरबाजी कर रहे थे। बकौल किशन घर के बाहर हिन्दू श्रद्धालुओं द्वारा मच रहे शोर से भी मुस्लिम भीड़ का ध्यान भंग हो रहा था वर्ना वो और राजन भी रामगोपाल की ही तरह अब्दुल हमीद और उसके साथियों के हाथों मारे जाते।

लाश को गायब करने की थी साजिश

किशन मिश्रा दावा करते हैं कि अब्दुल हमीद और उसके गिरोह द्वारा रामगोपाल के शव को गायब करने की थी तैयारी। उन्होंने बताया कि अगर वो और राजन मिल कर अब्दुल हमीद के घर से रामगोपाल का अचेत शरीर बाहर न लाते तो शायद यह केस हत्या नहीं बल्कि गुमशुदगी का चल रहा होता। बकौल किशन तब पुलिस भी यही कुतर्क देती कि रामगोपाल की हत्या नहीं हुई बल्कि वो कहीं लापता हो गया है और सभी कातिल कानून के दायरे में आने से बच जाते।

किशन मिश्रा हमें आगे बताते हैं कि अब्दुल हमीद ही नहीं बल्कि महराजगंज में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के तमाम घरों में न सिर्फ धारदार हथियारों बल्कि अवैध बंदूकों का जखीरा मौजूद है। उन्हें लगता है कि रामगोपाल की लाश को टुकड़ों-टुकड़ों में काट कर कहीं ठिकाने लगा दिया जाता। इसके बाद रामगोपाल दुनिया के लिए एक रहस्य हो जाते और घोषणा की जाती कि हिंसा में नाम आने की वजह से वो कहीं फरार हो गए जो वापस लौट कर नहीं आए।

पैदल ही अचेत देह को लेकर दौड़ते रहे लोग

किशन का दावा है कि जब वो रामगोपाल के अचेत शरीर को निकाल कर बाहर आए तब उन्हें लाख मिन्नत के बावजूद पुलिस वालों ने कोई गाड़ी अस्पताल ले जाने के लिए नहीं दी। लाठी खाया हिन्दू श्रद्धालु काफी दूर तक रामगोपाल को लेकर सड़क पर अस्पताल की तरफ दौड़ता रहा। ऑपइंडिया के पास इस मौके का वीडियो मौजूद है जिसमें एक पुलिसकर्मी भी दिख रहा। जैसे-तैसे वो रामगोपाल को अस्पताल पहुँचा पाए जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

किशन का मानना है कि अगर पुलिस ने तत्काल वाहन अपने वाहन को साथ भेजा होता तो शायद रामगोपाल की जान बच सकती थी। किशन ने हमें यह भी बताया कि पुलिसकर्मियों की इन करतूतों की शिकायत उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुँचा दी है। हमसे बात करते हुए किशन मिश्रा भावुक हो गए। उन्होंने अंत में कहा कि कातिलों ने न सिर्फ उनका चचेरा भाई बल्कि सबसे अच्छा दोस्त भी छीन लिया। किशन ने यह भी कहा कि रामगोपाल के साथ अगर उनके प्राण भी निकल जाते तो उसका कोई अफ़सोस न होता। रामगोपाल और किशन मिश्रा एक ही साथ कैटरिंग में खाना बनाने का काम करते थे।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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