कोरोना महामारी ने उद्योग धंधों पर काफ़ी बुरा असर डाला है। लॉकडाउन में काम बंद होने की की ज्यादातर मजदूर कैसे भी करके अपने घरों की तरफ निकल लिए हैं। मज़दूरों की कमी और लिक्विडिटी की समस्या उद्योग जगत के लिए बड़ी बाधा बन गई है। ऐसे में अब उद्योग जगत ने सरकार के सामने अपनी माँगो को एक लंबी फेहरिस्त सौंपी है। हालाँकि अगर सरकार इन माँगो में से अगर कुछ पर भी अमल करती है तो मज़दूरों को बड़ा झटका लग सकता है।
केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्री सन्तोष गंगवार के साथ हुई एक बैठक में उद्योग जगत से जुड़े नियोक्ता समूहों की ओर से कई माँगे रखी गईं। ये बैठक में लॉकडाउन की समस्या और उसके बाद अर्थव्यवस्था को उबारने की चुनौती के मद्देनज़र बुलाई गई थी। जहाँ मुख्य रूप से काम की सीमा 12 घंटे करने और 2-3 साल तक श्रम कानून को स्थगित करने की माँग की है।
उद्योग जगत ने सरकार से औद्योगिक विवाद क़ानून यानि Industrial Disputes Act में रियायत दिए जाने की भी बात कही हैं। उनका सुझाव है कि क़ानून में ढील बरतते हुए लॉकडाउन की अवधि को कामबंदी के तौर पर माना जाए। ऐसा करने से मज़दूरों और कर्मचारियों के प्रति उद्योग जगत की देनदारियों पर फ़र्क़ पड़ेगा। साथ ही नियोक्ता और कर्मचारी, दोनों ही तरफ़ से सामाजिक सुरक्षा से जुड़े खर्चे में कटौती की भी सलाह दी गई है।
उद्योग जगत की परेशानियों और माँग को देखते हुए श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने कहा कि वो उद्योग जगत और नियोक्ता समूहों की बात पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे, ताकि इस संकट से निकल कर आर्थिक विकास की गति बढ़ाई जा सके।
बैठक में शामिल उद्योग जगत की सबसे बड़ी संस्था फिक्की, सीआईआई, एसोचैम, पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स और लघु उद्योग भारती समेत 12 संगठनों ने मुख्य रूप से उद्योग जगह की इन माँगों को सरकार के सामने रखा हैं:-
- जिस प्रकार अब तक मजदूरों के काम के 8 घण्टे होते थे, उन्हें अब बढ़ा कर 12 घण्टे कर दिए जाएँ।
- श्रम क़ानूनों को अगले 2 – 3 सालों तक स्थगित कर दिया जाए।
- लॉक डाउन की वजह उद्योग जगत को हुए घाटे से उभरने के लिए एक राहत पैकेज का ऐलान किया जाए।
- कर्मचारियों को दिया जाने वाला वेतन भी कंपनियों के सीएसआर यानी कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व के तहत लाया जाना चाहिए। ताकि कंपनियों को टैक्स पर छूट के रूप में इसका फायदा मिले।
- बिजली सस्ते दर पर मुहैया कराया जाएँ।
- फैले संक्रमण के चलते रेड, ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन की जगह उद्योग जगत को कंटेन्मेंट और नॉन कंटेन्मेंट ज़ोन बनाए जाएँ।
- उद्योग जगत के अनुसार नॉन कंटेन्मेंट इलाकों में सभी आर्थिक गतिविधियाँ शुरू की जानी चाहिए।
आपको बता दें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने पहले ही श्रम क़ानूनों में ढ़ील देने की दिशा में काम करते हुए छूट दे दी है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने तो इसके लिए एक अध्यादेश को भी मंज़ूरी दे दी है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बृहस्पतिवार (मई 07, 2020) को ही अगले 3 साल के लिए कारोबारों को लगभग सभी लेबर लॉ के दायरे से बाहर रखने के लिए ‘उत्तर प्रदेश टेंपररी एग्जेम्प्शन फ्रॉम सर्टेन लेबर लॉज ऑर्डिनेंस 2020’ अध्यादेश को मंजूरी दे दी है।
The Uttar Pradesh government has passed an ordinance to suspend most of the labour laws in the state, in order to attract new companies to invest in the state amid the ongoing coronavirus crisis.#IndiaFightsCOVID19 | #StayHomehttps://t.co/v7bcFX3vz2
— CNNNews18 (@CNNnews18) May 8, 2020
योगी सरकार ने कुल 38 श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया गया है और केवल 4 कानून लागू होंगे जो कि भुगतान अधिनियम, 1936 के भुगतान की धारा 5, वर्कमैन मुआवजा अधिनियम, 1932, बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 और भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996 हैं।
Madhya Pradesh brings in labour reforms amid #Covid19 crisis https://t.co/8YOWbVrz6L pic.twitter.com/PABDghy9pG
— Hindustan Times (@htTweets) May 8, 2020
वहीं मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार ने कॉटेज इंडस्ट्री यानी कुटीर उद्योग और छोटे कारोबारों को रोजगार, रजिस्ट्रेशन और जाँच से जुड़े विभिन्न जटिल लेबर नियमों से छुटकारा देने की पहल की है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश सरकार ने कंपनियों और ऑफिस में काम के घंटे बढ़ाने की छूट जैसे अहम फैसले भी लिए हैं।
शिवराज सरकार ने कॉटेज इंडस्ट्री यानी कुटीर उद्योग और छोटे कारोबारों को रोजगार, रजिस्ट्रेशन और जाँच से जुड़े विभिन्न जटिल लेबर नियमों से छुटकारा देने की पहल की है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश सरकार ने कंपनियों और ऑफिस में काम के घंटे बढ़ाने की छूट जैसे अहम फैसले भी लिए हैं।