देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों, विशेषकर मेडिकल कॉलेजों में होने वाले दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों को काला गाउन और हैट पहनने की जरूरत नहीं होगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर सभी केंद्रीय अस्पतालों को निर्देश दिया है कि वे दीक्षांत समारोह में ब्रिटिश औपनिवेशिक चिह्न अपनाने के बजाय भारतीय पोशाक को अपनाएँ।
स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि काले गाउन और हैट पहनना औपनिवेशिक काल की देन है। ये भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं हैं। दीक्षांत समारोह में पहनी जाने वाली पोशाक उस राज्य की वेशभूषा और परंपराओं पर आधारित होनी चाहिए जहाँ संस्थान स्थित है। निर्देश में कहा गया कि अब इस औपनिवेशिक विरासत को बदलने की जरूरत है।
It is observed that currently as a matter of practice black robe and cap is being used during convocation by various Institutes of the Ministry. This attire originated in the middle Ages in Europe and was introduced by the British in all their colonies. The above tradition is a… pic.twitter.com/S2hBwsPGdh
— ANI (@ANI) August 23, 2024
मंत्रालय ने यह भी कहा है कि वर्तमान में मंत्रालय के विभिन्न संस्थानों द्वारा दीक्षांत समारोह के दौरान काले गाउन और टोपी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस ड्रेस का चलन मध्य युग में यूरोप में शुरू हुआ था। बाद में यह ब्रिटिश के जरिए उपनिवेश वाले देशों में फैला। यह फैसला भारत की औपनिवेशिक विरासत से दूर जाने की दिशा में एक कदम है।
इस फैसले के साथ भारत के शिक्षण संस्थान अब अपनी संस्कृति और परंपराओं को प्रदर्शित कर पाएँगे। स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों को यह भी निर्देश दिया है कि वे अपने संस्थान के दीक्षांत समारोह के लिए उपयुक्त भारतीय ड्रेस कोड तैयार करें। यह ड्रेस कोड राज्य की स्थानीय परंपराओं पर आधारित होना चाहिए।
बताते चलें कि कई सरकारी व निजी संस्थान अपने दीक्षांत समारोहों में पहले से ही पारंपरिक वस्त्रों का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। आईआईटी हैदराबाद ने साल 2011 में ही ब्रिटिश काल से चली आ रही इस परंपरा को खत्म कर दिया था। साल 2011 से वहाँ दीक्षांत समारोह में पारंपरिक पोशाक पहनी जाती है।