दिल्ली के मंगोलपुरी में पिछले दिनों हुई रिंकू शर्मा की निर्मम हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। हर किसी के जहन में ये सवाल रह गए कि क्या हिंदुस्तान में हिंदू होने का हासिल आज भी इतना बर्बर है? रिंकू की आखिरी समय की तस्वीरें, उनके साथ हुई वीभत्सता, परिजनों के आँसू, हिंदुओं के सवाल हर किसी को रह-रहकर परेशान कर रहे हैं।
ऐसे में एक तथाकथित सेकुलर गुट है जो पूरी तरह से इस मुद्दे पर चुप्पी बनाए हुए हैं और दूसरी ओर वो मीडिया गिरोह है जो इतना सब होने के बावजूद इस घटना की निंदा करना तो दूर अब भी अपना प्रोपगेंडा फैलाने से बाज नहीं आ रहा है।
दि प्रिंट की खबर में रिंकू शर्मा को दिखाया गया दोषी
दि प्रिंट की बेशर्मी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक तरफ जब पूरा देश रिंकू के हत्यारों को सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए एकजुट होकर सामने आया, तब इस मीडिया पोर्टल ने माहौल को बैलेंस करने के लिए अपनी रिपोर्ट में तथ्य लिखने के नाम पर पाठकों को आरोपित परिवार का पक्ष पढ़ाकर एक नई थ्योरी दे दी।
इसमें बताया गया कि रिंकू की हत्या जिस चाकू से हुई वो चाकू वो खुद लेकर आया था और उसी ने लड़ाई शुरू की थी। इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में आरोपित नसरुद्दीन के परिजनों का हवाला देकर कहा गया कि रिंकू ने उस दिन शराब भी पी रखी थी और विवाद तब शुरू हुआ जब वह जाहिद को जबरदस्ती शराब पिलाने लगा।
इसमें यह भी कहा गया कि रिंकू ने और उसके दोस्तों ने जाहिद को पार्टी में बुलाया था और शराब पीकर उससे मारपीट भी की थी। ऐसे में जब उन लोगों को ये पता चला कि उनके भतीजे के साथ ये हो रहा है तो वो बातचीत करने गए। वहाँ विवाद हुआ और रिंकू ने सिलेंडर मारने के लिए उठा लिया। इस रिपोर्ट की मानें तो पहले रिंकू की ओर से ही चाकू लाकर दूसरे पक्ष पर मारा गया था।
अब इस खबर को लिखने का तरीका देखिए, इसकी हेडलाइन पढ़िए और सोचिए एक 26 साल के हिंदू लड़के की असमय हुई निर्मम हत्या पर मीडिया संस्थान की संवेदनाएँ कहाँ है?
एक ओर एक नौजवान इतनी बेरहमी से मार दिया जाता है। उसके माँ-बाप के आँसू देख कर दूर प्रदेश में बैठे लोग सिहर जाते हैं। हिंदू संगठनों में वाजिब बात पर रोष उमड़ता है। छोटा भाई सिसकी भरते-भरते शांत नहीं हो पाता… फिर भी दि प्रिंट अपनी खबर में ये बता पाता है कि गलती आरोपितों की नहीं थी बल्कि रिंकू शर्मा की थी।
इस रिपोर्ट का उद्देश्य कहीं से भी पाठकों को निष्पक्ष रिपोर्ट दिखाना नहीं है। क्योंकि यदि ऐसा होता तो शीर्षक में जानबूझकर इस बात को शामिल नहीं किया जाता कि रिंकू शर्मा ही पूरी विवाद की जड़ था और उसी ने लड़ाई शुरू की थी।
दि प्रिंट की इस रिपोर्ट में उठाए गए ओछे एंगल का हमारे सेकुलर समाज में क्या मायने होंगे इस पर बात करने का कोई फायदा नहीं है। जाहिर है कि इसे उसने अपने उन्हीं पाठकों के लिए लिखा जो खोज रहे थे कि पूरे मामले में कहीं से रिंकू की गलती निकल आए तो वो भी मुद्दे पर वोकल होकर शांति बनाए रखने की अपील कर सकें और बताएँ कि गलती दोनों पक्षों की थी।
लेकिन अफसोस! यह प्रोपगेंडा ज्यादा काम नहीं कर सकता। आरोपितों के ख़िलाफ़ सबूत किसी काल कोठरी में रखें संदूक में बंद नहीं है, वो खुलेआम सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर तैर रहे हैं। हर किसी के सामने वो सीसीटीवी फुटेज भी है जिसमें 15-20 लड़के बकायदा हाथ में हथियार लेकर रिंकू के घर की ओर बढ़ रहे थे और वो वीडियो भी है जिसमें महिला से गाली गलौच और पुरूषों से मारपीट हो रही थी।
ये वीडियो यकीनन इतना तो स्पष्ट कर ही रही है कि यदि किसी को मारने की साजिश पहले से नहीं थी, मन में बदले की भावना नहीं थी, तो अचानक इतनी भीड़ कहाँ से इकट्ठा हो गई और कैसे उन सबके पास हथियार आ गए।
आज जो पीड़ा रिंकू शर्मा का परिवार झेल रहा है, उसे देख ऐसी निर्मम हत्या मामले में कोई भी एंगल रखकर आरोपितों के कृत्य को जस्टिफाई करना किसी प्रकार से प्रेस की नैतिकता का हिस्सा नहीं हो सकता। लेकिन मीडिया फिर भी झूठ फैला कर माहौल बैलेंस करने में लगा है।
रिंकू के जाने के बाद भी जारी है हनुमान चालीसा का पाठ
आज रिंकू की हत्या को लगभग एक हफ्ता हो गया है। लेकिन इलाके के लोगों की स्मृतियों से रिंकू का चेहरा थोड़ा बहुत भी धुँधला नहीं हुआ। सब रिंकू को याद कर रहे हैं और उन्हीं की हर जगह चर्चा है। कुछ लोग बताते हैं कि रिंकू ने अस्पताल जाते-जाते भी जय श्रीराम के नारे लगाए थे और अस्पातल पहुँचकर भी उनका जोश राम नाम लेने के लिए उतना ही बरकरार था। हालाँकि, वहाँ (अस्पताल) खड़े मुस्लिम परिवार के हत्यारोपितों में से दो ज़ाहिद और ताजुद्दीन ने रिंकू के दोस्तों पर हमला किया था और ज़ाहिद ने सबूत मिटाने के लिए पहले पीठ में धँसी चाकू निकालकर भागने की कोशिश की, जब फँसा हुआ चाकू नहीं निकला तो अंदर ही और घुमा दिया था।
दूसरी ओर जिन्हें आपत्ति थी कि राम मंदिर शिलान्यास के बाद से रिंकू शर्मा के कारण इलाके में हर मंगलवार को हनुमान चालीसा होने लगी, उन लोगों को जवाब देते हुए इलाके में उस परंपरा को रिंकू के जाने के एक हफ्ते बाद भी विधि विधान से निभाया गया।
ऑपइंडिया की मन्नू शर्मा से बात और मीडिया के झूठों का खुलासा
कल ऑपइंडिया के सीनियर एडिटर जब रिंकू शर्मा की मौत पर मीडिया में फैलाए जा रही बातों की सच्चाई जानने पहुँचे तो वहाँ हनुमान चालीसा का कार्यक्रम चालू था। हमारे सीनियर एडिटर उस जगह गए तो मन्नू शर्मा से बात करने थे। लेकिन उन्होंने वहाँ पाया कि कल से पहले तक जो आयोजन हनुमान भक्ति में आयोजित किया जाता था, कल उसी आयोजन का मकसद कहीं न कहीं रिंकू को याद करना भी था। वह उस कार्यक्रम में शामिल हुए और बाद में मन्नू शर्मा से मीडिया में फैले झूठों पर बात की।
जब उन्होंने मन्नू से पूछा कि आखिर जो बातें बर्थडे पार्टी और शराब आदि को लेकर मीडिया में कही जा रही हैं, उसकी सच्चाई क्या है? इस सवाल को सुन मन्नू ने कहा कि ये सब पूरी तरह फर्जी बातें हैं। रिंकू शर्मा ने न तो शराब पी थी, न पिलाई थी और न ही उनका जाहिद (आरोपितों में से एक) से झगड़ा था। जाहिद किसी और के साथ पार्टी में आया था और उसका झगड़ा भी किसी और से था। रिंकू शर्मा से कोई बात नहीं हुई थी।
मन्नू बताते हैं कि जो लोग ये कह रहे हैं कि उनके भैया की ओर से हमले हुए तो इस बात की सच्चाई ये है कि दूसरे पक्ष के सब लोग पहले लाठी डंडे लेकर घर में आए थे और उन्होंने ही गेट खोला था। इसके बाद उन सबने अपनी करनी की वीडियो नहीं बनाई और जब उनके भैया ने सिलेंडर बचाव में उठाया तो उसे कैमरे में कैद कर लिया।
बकौल मन्नू, वह लोग पूरे परिवार को तबाह करना चाहते थे लेकिन उनके भैया ने हिम्मत दिखाई और अकेले बलिदान हो गए। मन्नू के अनुसार, पुलिस पूरे मामले में उन्हें कॉपरेट कर रही है। वह चाहते हैं कि जितने बचे हुए आरोपित हैं सब पकड़े जाएँ। उनका या उनके संगठन का मकसद कहीं से भी तक प्रशासन के विरुद्ध कोई कार्य करने का नहीं है।
गौरतलब है कि एक ओर रिंकू शर्मा और उनका परिवार रह रहकर जहाँ केवल इंसाफ माँग रहा है। वहीं द प्रिंट आरोपितों के कुकर्म पर नया एंगल देकर सफाई पेश कर रहा है और दैनिक भास्कर बता रहा है कि हिंदू संगठनों के लोग रिंकू के घर की चौखट पर माथा टेककर बदला लेने की बात कर रहे हैं जबकि मन्नू शर्मा का कहना है कि उनका ऐसा कोई उद्देश्य नहीं है।
यहाँ तक की डर कर मुस्लिमों के भाग जाने की बात भी सही नहीं है। रिंकू शर्मा की गली में उनके घर से महज 20 मीटर की दूरी पर स्थित हत्यारों के परिवार के अलावा और कोई नहीं भागा है। जो रिंकू शर्मा की हत्या में शामिल थे वही और उनका परिवार फरार है। जबकि गली के लगभग सभी लोगों का कहना है इन्हें फरार नहीं बल्कि जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिए।
एक बात और इस मामले में जो सबसे शर्मनाक निकल कर सामने आ रही है, वो ये कि सीसीटीवी फुटेज के रूप से जितने भी सबूत मिले हैं वो प्राइवेट सीसीटीवी से लिए हुए बताए जा रहे हैं। रिंकू शर्मा के भाई ने भी इस बात को बताया है। उनके अनुसार जो कैमरे केजरीवाल सरकार द्वारा लगवाए गए थे, उनसे आरोपितों के विरुद्द कोई सबूत नहीं मिले है। घटना वाले दिन के बाद से उनके खराब होने की बात सामने आई है।
ठीक ऐसी ही बात दिल्ली दंगों के समय भी नजर आई थी जहाँ दंगा प्रभावित क्षेत्रों में ठीक उसी दिन से CCTV के ख़राब हो जाने का दावा किया गया था। फिलहाल, क्राइम ब्रांच इस पूरे मामले पर सघनता से जाँच कर रही है। पाँच- नसीरुद्दीन, मेहताब, ज़ाहिद, इस्लामुद्दीन, ताजुद्दीन जैसे आरोपित गिरफ्तार हैं। बाकी की भी जल्द से जल्द गिरफ़्तारी की माँग की जा रही है।