जया सुकिन नामक वकील ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल (KK Venugopal) को पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन ढींगरा और अधिवक्ता अमन लेखी, राम कुमार के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति माँगी है। तीनों ने उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या के बाद नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की गई टिप्पणियों को लेकर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय न्यायपालिका पर सवाल उठाए थे।
BREAKING: Advocate Jaya Sukin writes to AG KK Venugopal for consent to initiate criminal contempt proceedings against Justice (retd) SN Dhingra, Senior Advocates Aman Lekhi and Rama Kumar for the statements on #SupremeCourt’s oral observations in #NupurSharma’s case.
— LawBeat (@LawBeatInd) July 5, 2022
लॉ बीट के अनुसार, वकील जया सुकिन ने पत्र में दावा किया है कि न्यायमूर्ति ढींगरा और दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा की गई टिप्पणी का उद्देश्य न केवल सर्वोच्च न्यायालय की अखंडता पर संदेह करना था, बल्कि देश की सर्वोच्च न्यायपालिका की छवि धूमिल करना था। पत्र में यह भी कहा गया है कि न्यायपालिका के खिलाफ असंसदीय और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल अदालतों की अवमानना के दायरे में आता है।
According to the letter, the statements, has caused irreparable injuries to Indian Judiciary and the Nation by un parliament statements and derogatory remarks and hence falls within the scope of the Contempt of Courts Act, 1971. #SupremeCourt #NupurSharma
— LawBeat (@LawBeatInd) July 5, 2022
यह मामला तृणमूल कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता साकेत गोखले द्वारा जस्टिस कांत और परदीवाला की विवादास्पद टिप्पणियों पर सवाल उठाने के लिए ऑपइंडिया और इसकी संपादक नूपुर शर्मा को गलत तरीके से फँसाने के लिए एजी से सहमति माँगने के कुछ दिनों बाद आया है। ऑपइंडिया ने अपने एक लेख में कहा था कि जजों के बयान से इस्लामवादियों का हौसला बढ़ा है।
इस तरह टिप्पणी करनी है तो राजनेता बन जाना चाहिए: एसएन ढींगरा
हाल ही में एक न्यूज चैनल से बातचीत में रिटायर्ड जस्टिस एसएन ढींगरा ने कहा था कि अगर इस तरह जजों को टिप्पणी देनी है तो उन्हें राजनेता बन जाना चाहिए। वे लोग जज क्यों है? ढींगरा ने सवाल उठाया कि आखिर सुप्रीम कोर्ट के जजों ने अपनी कही बातों को लिखित आदेश में क्यों नहीं शामिल किया।
उन्होंने कहा था, “मेरे ख्याल से ये टिप्पणी बेहद गैर-जिम्मेदाराना है। उनका कोई अधिकार नहीं है कि वो इस तरह की टिप्पणी करें, जिससे जो व्यक्ति न्याय माँगने आया है, उसका पूरा करियर चौपट हो जाए या जो निचली अदालते हैं वो पक्षपाती हो जाएँ। सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर को सुना तक नहीं और आरोप लगाकर अपना फैसला सुना दिया। मामले में न सुनवाई हुई, न कोई गवाही, न कोई जाँच हुई और न नूपूर को अवसर दिया गया कि वो अपनी सफाई पेश कर सकें। इस तरह सुप्रीम कोर्ट का टिप्पणी पेश करना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि गैर कानूनी और अनुचित भी। ऐसी टिप्पणी सर्वोच्च न्यायालय को करने का कोई अधिकार नहीं है।”
उन्होंने ये भी बताया था कि अगर अब सुप्रीम कोर्ट के जज को ये पूछा जाए कि नूपूर शर्मा का बयान कैसे भड़काने वाला है, इस पर वह आकर कोर्ट को बताएँ, तो उन्हें पेश होकर ये बात बतानी पड़ेगी। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस ढींगरा ने ये भी कहा था कि अगर वो ट्रायल कोर्ट के जस्टिस होते तो वो सबसे पहले इन्हीं जजों को बुलाते और कहते, “आप आकर गवाही दीजिए और बताइए कैसे नूपूर शर्मा ने गलत बयान दिया और उसे आप किस तरह से देखते हैं। टीवी मीडिया और चंद लोगों के कहने पर आपने अपनी राय बना ली। आपने खुद क्या और कैसे महसूस किया, इसे बताएँ।”
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जज जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने उदयपुर हत्याकांड के लिए नूपुर शर्मा को ‘जिम्मेदार’ ठहराया था। 1 जुलाई 2022 को मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था, “नूपुर शर्मा के बयान भड़काने वाले थे। देश में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए केवल यह महिला ही जिम्मेदार है। इसके लिए उन्हें देश से माफी माँगनी चाहिए।”