मध्य प्रदेश के दमोह के एक स्कूल में हिन्दू छात्राओं को जबरन हिजाब पहना कर उनकी तस्वीरें बोर्ड पर डालने का मामला सामने आया था। इसके बाद उक्त ‘गंगा जमुना स्कूल’ की प्रधानाध्यापिका समेत 3 शिक्षिकाओं के इस्लाम अपना लेने की बात भी जाँच में पता चली। कायस्थ, यादव और जैन समाज से आने वाली तीनों शिक्षिकाएँ अब अपने नाम में ‘खान’ लगाती हैं और मुस्लिम बन गई हैं। भाजपा ने इस प्रकरण में टेरर फंडिंग का भी आरोप लगाया था।
अब ये तीनों शिक्षिकाएँ अपने दस्तावेजों को लेकर डीएम के दफ्तर में पहुँचीं और अपने खिलाफ लग रहे आरोपों पर सफाई दी। तबस्सुम बानो (पहले प्राची जैन), अनीता खान (पहले अनीता यदुवंशी) और अफ़सा शेख (पहले दीप्ती श्रीवास्तव) अपने-अपने पति के साथ कलक्टर के दफ्तर पहुँची थीं। उन्होंने संविधान का हवाला देते हुए दावा किया कि उन्हें किसी भी मजहब को मानने का अधिकार है। साथ ही कहा कि उनके बारे में बोलने का हक़ किसी को नहीं।
उधर स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों ने इसकी कट्टरवादी सोच का खुलासा किया है। ‘दैनिक भास्कर’ की खबर के अनुसार, बच्चों ने कहा कि नमाज न पढ़ने पर छात्रों को छड़ी से पीटा जाता था। किसी बच्चे की मौत होने की सूरत में बच्चों से दुआ पढ़ने को कहा जाता था कि वो जहन्नुम में न जाएँ। राज्य बाल आयोग के ओंकार सिंह अपनी टीम के साथ यहाँ जाँच के लिए पहुँचे थे। शिक्षिका अनीता खान ने दावा किया कि स्कुल संचालक इदरीस खान का उनके धर्म-परिवर्तन में कोई रोल नहीं है।
उनकी शादी 2013 में हुई थी और 2021 से उन्होंने पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने खुद को मानसिक तनाव में भी बताया। उन्होंने धर्मांतरण को अपना निजी मामला बताते हुए कहा कि इसे स्कूल से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। वहीं अफ़सा शेख ने धर्मांतरण के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि उनका निकाह 2000 में हुआ था और उनकी बेटी 21 साल की है। उन्होंने भी कहा कि वो किस मजहब को मानें वो उनकी मर्जी है।
वहीं पहले प्राची जैन रहीं तबस्सुम बानो ने कहा कि उनका निकाह जनवरी 2004 में हुआ था। उन्होंने अपनी मर्जी से निकाह की बात करते हुए कहा कि इसके बाद उनका नाम बदला गया और उनके ऊपर किसी का दबाव नहीं था। उन्होंने दावा किया कि स्कूल 2012 में खुला। अनीता के पति का नाम तौसीफ है। पॉलिटेक्निक में पढ़ाई के दौरान दोनों मिले। वहीं तबस्सुम की मुलाकात साबिर से मिशन स्कूल में हुई। स्कूली छात्रों ने बताया कि उन्हें हनुमान चालीसा नहीं आती, लेकिन कुरान की आयतें याद हैं।
एक छात्रा ने ये भी बताया कि हर शुक्रवार (जुमा) को स्कूल में नमाज पढ़ना अनिवार्य था। हिंदी-अंग्रेजी से ज्यादा उर्दू-अरबी सिखाया जाता था। प्रार्थना में दुआ पढ़ने को कहा जाता था। घर में डाँट सुनने पर कहा जाता था कि छिप कर ये सब पढ़ो। उधर लोगों ने अपने आक्रोश का प्रदर्शन करते हुए जिले के DEO (जिला शिक्षा पदाधिकारी) पर स्याही फेंक दी। थाने में इसकी शिकायत भी हुई है। हिन्दू कार्यकर्ताओं ने कहा कि सनातन का अपमान करने वालों को जवाब दिया गया है।