Friday, November 15, 2024
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कल ताजमहल को वक्फ संपत्ति बताएँगे, फिर पूरे हिंदुस्तान को: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने वक्फ बोर्ड को जमकर लताड़ा, बुरहानपुर के किले एवं महलों पर कर दिया था दावा

विभिन्न राज्यों के वक्फ़ बोर्डों के पास इस समय करीब 8.7 लाख संपत्तियाँ हैं। इन संपत्तियों का क्षेत्रफल करीब 9.4 लाख एकड़ है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले केंद्र सरकार ने राज्य में वक्फ बोर्डों की इस शक्ति के दुरुपयोग का संज्ञान लिया था। वक्फ बोर्डों द्वारा किसी भी संपत्ति पर दावा करने पर अधिकांश राज्यों में इन संपत्ति के सर्वे में देरी होती थी।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मंगलवार (6 अगस्त) को राज्य वक्फ बोर्ड के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें बुरहानपुर किले पर मालिकाना हक बताया था। वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि शाह शुजा का मकबरा, नादिर शाह का मकबरा, बीबी साहब की मस्जिद और बुरहानपुर किले में स्थित महल वक्फ की संपत्ति है। कोर्ट ने कहा कि कल पूरे भारत को वक्फ संपत्ति घोषित करके उस दावा कर देंगे।

दरअसल, साल 2013 में वक्फ बोर्ड ने इन पर अपना स्वामित्व जताते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से इन स्थलों को खाली करने के लिए कहा। इस पर ASI ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की। इसमें कहा गया कि बुरहानपुर के एमागिर्द गाँव में लगभग 4.448 हेक्टेयर में फैली यह संपत्ति पहले से ही प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत संरक्षित है।

ASI ने कहा कि संरक्षित स्मारकों के रूप में इनका दर्जा हटाए बिना इन संपत्तियों को वक्फ संपत्ति के रूप में पुनर्वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर, वक्फ बोर्ड ने तर्क दिया कि उसने उचित नियम के तहत इन संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित किया था। इसलिए ASI को परिसर हटाने का उसके पास अधिकार है। बोर्ड ने कहा कि ASI को वक्फ ट्रिब्यूनल में जाना चाहिए थी।

न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की पीठ ने 26 जुलाई के अपने आकलन का उल्लेख किया कि ये 1913 और 1925 में प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत अधिसूचित किए गए हैं। इसमें कहा गया है कि यह दिखाने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है कि इन संपत्तियों को इससे कभी भी अलग नहीं किया गया था, जैसा कि प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 की धारा 11 में प्रावधान है।

इसमें कहा गया है कि वक्फ बोर्ड ने वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 5(2) के तहत जारी अधिसूचना के आधार पर अपना स्वामित्व दावा पेश किया था। हालाँकि, बोर्ड पूरी अधिसूचना अदालत को सौंपने में विफल रहा। हालाँकि किसी भी पक्ष ने अधिसूचना को चुनौती नहीं दी। न्यायालय ने कर्नाटक वक्फ बोर्ड बनाम भारत सरकार (2004) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी हवाला दिया।

कोर्ट ने कहा कि प्राचीन संरक्षित स्मारकों के स्वामित्व और रखरखाव सिर्फ भारत सरकार के पास है। किसी संपत्ति को अगर एक बार संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया जाए तो उसे वक्फ अधिनियम 1995 की तिथि पर वक्फ संपत्ति नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि भले ही किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने वाली अधिसूचना जारी की गई हो, लेकिन यह प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत जारी अधिसूचनाओं को रद्द नहीं करेगी।

उच्च न्यायालय ने कहा, “किसी संपत्ति के संबंध में जारी की गई गलत अधिसूचना, जो वक्फ अधिनियम के लागू होने की तिथि पर मौजूदा वक्फ संपत्ति नहीं है, उसे वक्फ संपत्ति नहीं बनाती है, जिससे वक्फ बोर्ड को प्राचीन और संरक्षित स्मारकों से केंद्र सरकार से बेदखल करने की माँग करने का अधिकार क्षेत्र मिल जाता है।”

न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया ने आगे टिप्पणी की, “ताजमहल को वक्फ संपत्ति क्यों नहीं माना जाए? कल आप कह सकते हैं कि पूरा भारत वक्फ संपत्ति है। यह इस तरह से नहीं चलेगा कि आप अधिसूचना जारी करेंगे और संपत्ति आपकी हो जाएगी।” अदालत ने फैसला सुनाया कि मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड के सीईओ ने स्मारक की वक्फ संपत्ति पर विचार करके और एएसआई को इसे हटाने का आदेश देकर महत्वपूर्ण अवैधता की है।

बताते चलें कि एनडीए सरकार वक्फ अधिनियम, 1995 में 40 से अधिक संशोधन लाने की तैयारी कर रही है। मुस्लिमों के बोहरा और आगाखानी फिरकों को विशेष मान्यता से लेकर किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने की शक्तियों पर अंकुश लगाना। केंद्रीय वक्फ परिषद में सरकार गैर-मुस्लिम को भी सदस्य नियुक्त करने पर विचार कर सकती है।

प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार, वक्फ़ बोर्डों द्वारा संपत्तियों पर किए गए या किए जाने वाले दावों का सत्यापन अनिवार्य किया जाएगा। वक्फ़ बोर्ड की विवादित संपत्तियों के लिए भी सत्यापन करना अनिवार्य होगा। इससे विभिन्न राज्यों के वक्फ बोर्डों द्वारा जमीनों एवं अन्य संपत्तियों को किए जाने वाले दावों पर अंकुश लगेगी। इससे विवादों को रोकने में भी मदद मिलेगी।

वक्फ के पास 9.4 लाख एकड़ संपत्ति

सूत्रों ने बताया कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों, महिलाओं और शिया एवं बोहरा जैसे विभिन्न फिरकों की ओर से मौजूदा कानून में बदलाव की माँग की गई थी। संशोधन लाने की तैयारी 2024 के लोकसभा चुनावों से काफी पहले ही शुरू हो गई थी। सूत्र ने यह भी कहा कि ओमान, सऊदी अरब जैसे किसी भी इस्लामी देश में इस तरह की इकाई को इतने अधिकार नहीं दिए गए हैं।

मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न राज्यों के वक्फ़ बोर्डों के पास इस समय करीब 8.7 लाख संपत्तियाँ हैं। इन संपत्तियों का क्षेत्रफल करीब 9.4 लाख एकड़ है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले केंद्र सरकार ने राज्य में वक्फ बोर्डों की इस शक्ति के दुरुपयोग का संज्ञान लिया था। वक्फ बोर्डों द्वारा किसी भी संपत्ति पर दावा करने पर अधिकांश राज्यों में इन संपत्ति के सर्वे में देरी होती थी।

इसके बाद केंद्र सरकार ने वक्फ संपत्तियों की निगरानी में जिला मजिस्ट्रेटों को शामिल करने की संभावना पर भी विचार किया था। वक्फ बोर्ड के किसी भी फैसले के खिलाफ अपील सिर्फ कोर्ट के पास हो सकती है। ऐसी अपीलों पर फैसले के लिए कोई समय-सीमा नहीं होती है। कोर्ट का निर्णय अंतिम होता है। वहीं हाईकोर्ट में PIL के अलावा अपील का कोई प्रावधान नहीं है।

कॉन्ग्रेस ने वक्फ को दिए असीमित अधिकार

यहाँ बताना जरूरी है कि साल 1954 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के समय वक्फ अधिनियम पारित किया गया। इसके बाद इसका केंद्रीकरण हुआ। वक्फ एक्ट 1954 वक्फ की संपत्तियों के रखरखाव का काम करता था। इसके बाद से इसमें कई बार संशोधन हुआ। साल 2013 में कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने बेसिक वक्फ़ एक्ट में संशोधन करके वक्फ बोर्डों को और अधिकार दिए थे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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