विभिन्न राज्यों के श्रमिकों के अपने घर पहुँचने का सिलसिला शुरू हो चुका है। सोमवार (मई 4, 2020) को कई श्रमिक स्पेशल ट्रेनें अपने शेड्यूल से चल रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के बाद भारतीय रेलवे ने सभी राज्यों में फँसे श्रमिकों और छात्रों को उनके गृह राज्य में वापस भेजने के लिए स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की है। लेकिन मुंबई में श्रमिकों मेडिकल सर्टिफिकेट के नाम पर 200 रुपए चार्ज करने की खबर आई है।
इस बीच मुंबई मिरर ने जानकारी दी कि महाराष्ट्र के मुंबई में श्रमिकों से यात्रा किराया वसूलने के साथ ही उनके मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए 200 रुपए चार्ज किए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के बोंडा के रहने वाले श्रमिक फकरुद्दीन शेख ने बताया कि 4 घंटे तक टेस्ट का इंतजार करने के बाद उनसे 200 रुपए भुगतान करने के लिए कहा गया। चूँकि उनके पास पैसे नहीं थे, इसलिए उन्हें बिना टेस्ट के ही वापस लौटना पड़ा। फकरुद्दीन शेख 9 महीने पहले रोजगार के सिलसिले में मुंबई आए थे।
In Mumbai Udhav govt is charging
— Priya Kulkarni (@priyaakulkarni2) May 4, 2020
RS 200 to check a body temperature of migrant workers and give them a certificate to they can leave. They are standing for hours@Dev_Fadnavis @KiritSomaiya pic.twitter.com/AUWn2ktbo9
हिन्दुस्तान ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया कि मलाड ईस्ट के रहने वाले 35 वर्षीय अजय राम ने कहा कि उन सभी वर्करों से मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए 200 रुपए लिए गए।
एक तरफ जहाँ मुंबई में श्रमिकों से मेडिकल सर्टिफिकेट के पैसे वसूलने का मामला सामने आ रहा है, वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने केंद्र से अनुरोध किया है कि वह कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान ट्रेन से अपने गृह स्थान की यात्रा करने वाले प्रवासी कामगारों से किराया न लें। बता दें कि सीएम ठाकरे ने रविवार (मई 3, 2020) देर रात केंद्र को भेजे गए एक पत्र में कहा कि राज्य के विभिन्न केंद्रों में 40 दिनों तक करीब पाँच लाख प्रवासी कामगारों को खाना और रहने की जगह दी गई और अब उन्होंने मौजूदा हालात को देखते हुए अपने घर जाने की इच्छा व्यक्त की है।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा, “इन लोगों के पास बीते कुछ हफ्तों से आय का कोई स्रोत नहीं है। इसलिए मानवीय आधार पर केंद्र को उनसे यात्रा का किराया नहीं लेना चाहिए।”
उल्लेखनीय है कि श्रमिकों के लिए रेलवे किराया मुफ्त है। उनसे कोई किराया नहीं लिया जा रहा है। रेलवे द्वारा जारी गाइडलाइन्स के अनुसार, जिस स्टेशन से ट्रेन चलेगी, वहाँ की राज्य सरकार की तरफ से यात्रियों को खाने के पैकेट और पानी मुहैया कराया जाएगा। यदि यात्रा 12 घंटे से अधिक के लिए होगी तो एक समय का खाना रेलवे की ओर से दिया जाएगा।
रेलवे द्वारा किए गए ट्वीट में भी स्पष्ट रुप से लिखा है कि किसी को टिकट ख़रीदने के लिए स्टेशन आने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वही लोग यात्रा कर सकेंगे, जिन्हें राज्य सरकारों ने चुना है। साथ ही उनका पूरा किराया और भोजन-पानी के लिए भी राज्य सरकारें ही ख़र्च कर रही हैं। टिकट बिक्री चालू ही नहीं है तो मजदूरों से किराया वसूले जाने की बात कहाँ से आई? रेलवे ने उन यात्रियों को स्टेशन आने से भी मना किया है, जिन्हें राज्य सरकारें नहीं ला रही हैं। बता दें कि इससे पहले कॉन्ग्रेस ने भी इस पर राजनीति करते हुए कहा था पार्टी उन श्रमिकों का रेलवे किराया वहन करेगी। वो किराया, जो पहले से ही मुफ्त है।