कोरोना वैश्विक महामारी का खतरा जितना वैश्विक है, इसे मात देने वाले लोगों की कहानियॉं भी उतनी ही जीवट है। आनंदी झा ने तो 104 साल की उम्र में इस संक्रमण को मात दी है।
कहते भी हैं- मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। महाराष्ट्र के ठाणे में रहने वाले आनंदी झा ने 11 दिनों में कोरोना संक्रमण को परास्त कर इसे एक बार फिर चरितार्थ किया है। वे पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं। वे देश में कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में इस संक्रमण के बाद स्वस्थ होने वाले सबसे बुजुर्ग इंसान हैं।
भारत में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में डॉक्टरों का साफ तौर पर कहना है कि अगर आपकी इम्युनिटी पावर अच्छी हो, तो कोई भी बीमारी आपको नुकसान नहीं पहुँचा सकती है। इसी का उदाहरण पेश किया है आनंदी झा ने। कोरोना वायरस हर उम्र के लोगों को अपनी जद में ले रहा है, लेकिन पहले से बीमार लोगों और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा अपनी चपेट में ले रहा है। मगर जिंदादिल आनंदी झा ने इस महामारी को मात देकर लोगों के सामने एक सकारात्मक संदेश प्रस्तुत किया है।
आनंदी झा मूल रूप से बिहार के मुंगेर जिला को बटसार गाँव के रहने वाले हैं। फिलहाल वो अपने बच्चों के साथ महाराष्ट्र के ठाणे के कल्याण में रह रहे हैं। 26 जुलाई को उनका कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आया। इसके बाद उन्हें ठाणे के मेदान्ता कोविड 19 हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।
आनंदी झा के नाती ललित झा ने बताया कि भर्ती होने के पहले दिन से ही उनमें महामारी से लड़ने की इच्छाशक्ति नजर आ रही थी। दवा और जीने की इच्छाशक्ति की वजह से शुरुआती दिनों में ही उनके सेहत में सुधार दिखने लगा था और आखिरकार 11 दिनों के अंदर उन्होंने कोरोना को मात दे दी।
इसके बाद 4 जुलाई को अपने बेटे मुकेश के साथ स्वस्थ होकर घर लौट आए। घर आने पर परिवार और मुहल्ले के लोगों ने फूल-माला आदि पहनाकर उनका स्वागत किया।
यह पूछने पर कि उन्हें कोरोना संक्रमण कैसे हुआ, ललित झा ने ऑपइंडिया को बताया कि आनंदी झा अपने छोटे बेटे मुकेश, जिनकी उम्र 48 साल है, से संक्रमित हुए थे। फिलहाल दोनों स्वस्थ हैं।
हैरानी की बात यह भी है कि इस उम्र में भी आनंदी झा को शारीरिक तौर पर कोई परेशानी नहीं है। उन्हें डायबिटीज और ब्लड प्रेशर जैसी कोई बीमारी भी नहीं है। ललित झा के मुताबिक इस बात को लेकर आनंदी झा का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने भी आश्चर्य जताया। आनंदी झा आज भी अपना सारा काम खुद ही करते हैं।
आनंदी झा के आठ बच्चे हैं- चार पुत्र और चार पुत्री। सभी बच्चों का विवाह मधुबनी जिला में हुआ है। सभी संपन्न हैं। साधारण किसान के तौर पर जीवन व्यतीत करने वाले आनंदी झा ने काफी संघर्ष से बच्चों का पालन-पोषण किया। उन्हें काबिल बनाया। उनका जीवन गरीबी में गुजरा है, लेकिन अब उन्हें किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं है। सभी बच्चे काफी अच्छे जगहों पर हैं। छोटा पुत्र बिल्डर है और बाकी तीनों पुत्र एक टेक्सटाइल केमिकल प्रोडक्ट का फैक्ट्री संचालित कर रहे हैं, जो कि अच्छा-खासा चल रहा है।
आनंदी झा ने अपना पूरा जीवन अपने गाँव बटसार की ही माटी-पानी में व्यतीत किया। मगर अब उम्र अधिक होने की वजह से बच्चे उन्हें ठाणे ले आए हैं।
ललित झा बताते हैं कि आनंदी झा गाँव में किसानी करने के साथ ही पहलवानी भी किया करते थे। गाँव में रहने के दौरान वो गाय भी पाला करते थे। उन्होंने 8 साल की उम्र से ही भाँग खाना शुरू कर दिया था। 88 साल की उम्र में इस लत से भी छुटकारा पा लिया।
ललित झा बताते हैं कि उनका खान पान तो ऐसा कि आज भी वो एक स्वस्थ नौजवान से अधिक अच्छी तरह से भोजन कर लेते हैं। मछली इतना पसंद है कि आज भी वे किलो भर खा लेते हैं। इसके अलावा उन्हें मिठाई और दूध भी खासा प्रिय है। इस उम्र में भी वो सब कुछ खाते हैं।
अपनी इस लड़ाई के जरिए आनंदी झा ने बताया है कि जीने की इच्छा हो, दिनचर्या स्वस्थ हो और खान-पान संतुलित हो तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर किसी भी बीमारी को हराया जा सकता है।