साल 2005 में हुए मऊ दंगों में मुख्तार अंसारी की भूमिका पर हाल में चश्मदीदों ने ऑपइंडिया से बात करते हुए कुछ खुलासे किए थे। किसी ने बताया था कि मुख्तार के राज में इस्लामी कट्टरपंथी ‘हिंदुओं की चटनी’ बनाने की धमकी देते थे, तो किसी ने बताया था कि माफिया के राज में डीएम हिंदुओं के घरों को जलने को छोड़ देते थे पर पुलिस नहीं भेजते थे।
आइए आज ऑपइंडिया पत्रकार राहुल पांडे और इन चश्मदीदों के बीच हुई बातचीत की कुछ और अहम बातें आपको बतातें हैं। इनसे पता चलता है कि मुख्तार के दौर में पुलिस से लेकर पत्रकारों का क्या हश्र होता था।
पुलिस पकड़ती थी सूअर
दंगों के चश्मदीदों में एक छोटेलाल ने हमसे बातचीत में मऊ दंगों को सुनियोजित दंगा बताया था। उन्होंने बताया था कि कैसे मुख्तार अंसारी उस समय खुली जिप्सी में हथियार लेकर घूम रहा था और कोई रोकने वाला नहीं था। कैमरे के सामने एक आदमी की हत्या हुई थी मगर उसे दिखाने वाला कोई नहीं था। इन्हीं छोटेलाल ने हमें दंगों से पहले का भी एक वाकया बताया। उन्होंने खुलासा किया कि मुख्तार के डर से पुलिस वाले पानी में कूदकर सूअर पकड़ते थे।
उन्होंने कहा मुख्तार अंसारी के समय में कोतवाल से सूअर दौड़ा-दौड़ा कर पकड़वाया जाता था। ईद आते ही हर जगह सुअरों को पकड़कर बंद करवा दिया जाता था तो तीन दिन न सूअर दिखते थे न उनके बच्चे। छोटेलाल के अनुसार, ‘ईद के दिन में ओवरब्रिज के पास कोतवाल के साथ खड़ा था। मैंने अपनी आँख से देखा है कि छोटा सूअर का बच्चा दौड़ा तो होमगार्ड चिल्लाया- ‘साहब सूअर।’ इतना कहते ही वो उसे पकड़ने के लिए पानी में घुस गए। वो सूअर मस्जिद की तरफ नहीं जा रहा था।”
छोटेलाल बताते हैं कि ये वाकया दंगों से पहले का है। वो इसका जिक्र करते हुए कहते हैं कि उस समय पुलिस सुअर पकड़ने के लिए दौड़ जाती थी लेकिन अपराधी पकड़ने के लिए नहीं। यही वजह थी कि जब पुलिसकर्मी पानी से निकले तो उन्हें छोटेलाल को देखकर शर्म आई कि अपराधी को उन्होंने पकड़ा नहीं और सुअर पकड़ते उन्हें देख लिया गया।
पत्रकारों पर भी बरसा था मुख्तार का कहर..
— Rahul Pandey (@STVRahul) May 1, 2023
बंधक बनी थी वो मीडिया जिसके कुछ वामपंथी मुख्तार को बताते हैं रोबिन हुड।। pic.twitter.com/AmcQS1qpAM
पत्रकार की पिटाई, 24 घंटे बंधक बनाए रखा
इसी तरह गणेश सिंह ने मऊ दंगों से पहले की बात करते हुए बताया कि इस दंगे से पहले भी ठेकेदारों पर, पत्रकारों पर खुलेआम हमले होते थे। उसने एसीबीडब्ल्यू डाक बंगले में अटैक करवाया और जब पत्रकारों ने उसे कवर करना चाहा तो राइफल के बट से कूट-कूटकर उनसे फोटोज डिलीट करवाई। पत्रकार का नाम द्वारिका गुप्ता था जिन्होंने साहस दिखाते हुए राइफल के बट को पकड़ लिया था।
गणेश सिंह के मुताबिक उन्हें छुड़वाने के लिए तत्कालीन सांसद चंददेव राजवैद्य और सपा के ही जिला पंचायत अध्यक्ष राजभवन थे। ये दोनों मुख्तार अंसारी के सामने होटल में हाथ जोड़कर मुख्तार से बोल रहे थे कि द्वारिका भाई को छोड़ दो। लेकिन उसने उन्हें 24 घंटे नहीं छोड़ा। इस दौरान कोतवाल, एसपी ऑफिसर सब मूकदर्शक बने रहे। बाद में उन्हें पीटकर छोड़ा गया।
गरीबों के बच्चों की शादी नहीं गुर्गों के बच्चों की शादी
चश्मदीद गणेश यह भी बताते हैं कि मुख्तार अंसारी की छवि जो रॉबिनहुड के तौर पर पेश की गई है वो बिलकुल गलत है। उन्होंने कहा कि ये जो फैलाया जाता है कि मुख्तार ने गरीबों के बच्चों की शादी करवाई वो सरासर झूठ है। अगर कभी ऐसा हुआ है तो उसने अपने गुर्गों के बच्चों की शादी करवाई होगी। गणेश के मुताबिक मुख्तार ने किसी पर परोपकार नहीं किया है। उसका काम केवल लूटपाट मचाना था।
मऊ दंगों में मुख्तार की भूमिका पर चश्मदीदों ने राहुल पांडे को क्या बताया…इसे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।