कश्मीर में 90 के दशक में नरसंहार को अपनी आँखों से देखने वाले और पलायन के भुक्तभोगी विनीत कौल आज भी घटना को याद कर रुआँसे हो जाते हैं। उनका कहना है कि उनके मुस्लिम पड़ोसी मौके देखकर उनकी संपत्ति पर कब्जा करना चाह रहे थे। अगर तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन उस वक्त नहीं होते थे तो न जाने क्या होता।
अमर उजाला के अनुसार, 19 जनवरी 1990 की रात को विनीत कौल अपने परिवार के साथ श्रीनगर के रैनावारी स्थित अपना चार मंजिला मकान और संपत्ति को छोड़कर अपने माता-पिता और दो बहनों के साथ एक अटैची में कपड़े लेकर वहाँ से निकल गए। तब उनकी उम्र 24 साल थी। कौल के पिता कश्मीर विश्वविद्यालय के निदेशक और इतिहासकार थे।
घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उस रात लाखों कश्मीरी पंडितों ने अपने पूर्वजों के घर और जमीनों को छोड़ अपनी जिंदगी और आबरू बचाने के लिए छुपते-छुपाते हुए घाटी से निकल गए थे। जम्मू में आकर ये लोग सड़कों पर टेंट में रहने लगे और कुछ लोगों ने कैंपों में शरण ली थी।
घाटी के अपनी संपत्ति छोड़कर लौटने के दौरान की घटना को याद करते हुए विनीत कहते हैं कि उस दौरान उनके पड़ोसी मुस्लिम परिवार ने मदद की पेशकश की थी। जब मदद के नाम पर उन्होंने 50 हजार रुपए देकर जमीन के कागजात वहीं छोड़कर जाने की बात कही तो उन्हें असलियत का पता चला कि वास्तव में वे कुछ पैसे देकर उनकी संपत्ति पर कब्जा करना चाहते थे। उन्होंने बताया कि उस दौरान कश्मीरी हिंदुओं के मकानों, स्कूलों पर संपत्तियों पर कब्जे कर लिए गए।
विनीत कौल ने कहा कि 1990 में 16 से 18 जनवरी कश्मीर की मस्जिदों से कश्मीरी पंडितों को चेतावनी दी गई। उनसे कहा गया था कि या तो कश्मीर छोड़कर भाग जाओ या इस्लाम अपनाकर मुस्लिम बन जाओ। मस्जिदों से यहाँ तक कहा गया था कि कश्मीर छोड़ने वाला परिवार अपने घर की महिलाओं को कश्मीर में ही छोड़ दें।
उन्होंने बताया कि साल 1986 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए क्रिकेट मैच से कश्मीर के हालात बदलने लगे थे। 1989 में कश्मीर में निजाम-ए-मुस्तफा (इस्लामिक शासन) की बातें होने लगीं। आतंकी कश्मीरी हिंदुओं को प्रताड़ित करने लगे थे। उसके बाद हिंदू नेताओं की हत्या और हिंदू महिलाओं से दुष्कर्म की घटनाएँ शुरू हो गईं।
कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन को याद करते हुए विनीत कहते हैं कि उनकी वजह से ही कश्मीरी पंडितों को आज रोटी मिल रहा है। उन्होंने बताया कि कश्मीर में 5-6 प्रतिशत हिंदू थे और उनमें 95 प्रतिशत कश्मीरी हिंदू सर्विस करते थे। जब कश्मीर हिंदुओं का पलायन हुआ तो उन्होंने सर्विस क्लास के लिए स्पेशल छुट्टी ऑर्डर की। इसके कारण उनकी नौकरी बची रही और कर्मचारी आज भी अपनी रोटी का जुगाड़ कर पा रहे हैं।