अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई ख़त्म हो चुकी है, फैसला आना बाकी है। इसके बाद एक खबर यह भी आई कि मस्जिद का हिमायती दूसरा पक्ष खुद को मामले से अलग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दे सकता है। इसके बाद फैसले पर प्रभाव डालने की अपनी आखिरी कोशिश में मस्जिद के पैरोकार दूसरे पक्ष ने कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में मोल्डिंग ऑफ़ रिलीफ पेश किया है।
हाल ही में 40 दिन तक लगातार सुनवाई चलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के जन्मभूमि विवाद पर अपने फैसले को सुरक्षित रखा है। कोर्ट में मस्जिद की माँग करने वालों के पक्ष की ओर से जो मोल्डिंग ऑफ़ रिलीफ का दस्तावेज़ अदालत में पेश किया गया, उसमें कहा गया-
“अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दूरगामी असर वाले परिणाम देखने होंगे, इसीलिए बेहतर होगा अगर सुप्रीम कोर्ट अपने इस ऐतिहासिक फैसले को कुछ इस तरह पेश करे, जिससे वह उन संवैधानिक मूल्यों का भी प्रदर्शन करे, जिन पर इस देश को भरोसा है।”
अपने हलफनामे में मस्जिद के पैरोकार पक्ष की ओर से कहा गया है, “कोर्ट विवादित मुद्दे को सुलझाने के लिए दिए गए अपने निर्णय में भारत के बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक मूल्यों का ख़ास ध्यान रखेगा। फैसले में राहत देना उस सर्वोच्च अदालत की ज़िम्मेदारी है, जिसे संविधान का संरक्षक बताया गया है।”
मस्जिद के पक्ष से इस स्टेटमेंट में आगे कहा गया है कि निर्णय में राहत देने साथ अदालत को यह भी ध्यान रखना होगा कि आने वाली नस्लें इस फैसले को किस तरह से देखेंगी, यह भी सोचना होगा। यानी मस्जिद पक्ष ने अदालत को सच्चाई से गुमराह करने के लिए अब भावनात्मक पासा फेंका है, जिसमें उन्होंने इस फैसले के दूरगामी परिणाम की ओर इशारा करते हुए यह कहा है कि आने वाली पीढ़ियों पर इस फैसले का क्या असर पड़ेगा।
एक प्रकार से देखा जाए तो मस्जिद की तरफदारी करता दूसरा पक्ष संविधान की दुहाई देने के बहाने कुछ आग ही बात कह रहा है। उनका कहना है कि इस्लामिक आक्रान्ता द्वारा मस्जिद बनाने के लिए हथियाई गई जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण से भारत के संवैधानिक मूल्यों और उसके बहु-सांस्कृतिक चरित्र का पूरी तरह से ह्रास हो जाएगा। वे परोक्ष रूप से यह भी कह रहे हैं कि शताब्दियों से चले आ रहे राम-जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर आने वाले समय में सर्वोच्च न्यायलय की और से एक अंतिम निर्णय की उम्मीद की जा सकती है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला 14 नवम्बर से लेकर 16 नवम्बर के बीच आ सकता है। दरअसल 16 अक्टूबर को एक रिपोर्ट मीडिया में लीक हुई थी, जिसमें मध्यस्थता पैनल की कुछ जानकारी बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई थी। इस दौरान यह भी कहा गया था कि सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित भूमि पर अपना दावा छोड़ना चाहता है मगर उसके लिए उन्होंने तीन शर्तें रखी हैं।
इस रिपोर्ट में एक कथित शर्त यह भी थी कि दूसरा पक्ष अगर राम जन्मभूमि पर अपना दावा छोड़ते हैं तो इसके बदले उनकी माँग ‘Status Quo’ है यानी सभी पुराने ढाँचे यथास्थिति में संरक्षित किए जाएँ। उल्लेखनीय है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड एक लम्बे से इसकी माँग करता आ रहा है कि हिन्दुओं की ज़मीन पर बनी काशी की ज्ञानवापी मस्जिद तथा मथुरा के शाही ईदगाह पर से अपना दावा वापस ले लें।
हालाँकि बाद में उन्होंने लीक हुई इस रिपोर्ट पर अपना पक्ष रखकर इसे गलत और निराधार बताया था। उन्होने कहा था कि दूसरे पक्ष वाले राम की जन्मभूमि पर से अपना दावा हरगिज़ वापस नहीं लेंगे।