इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के अध्यक्ष डॉ. आर. वी. अशोकन ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) के खिलाफ अपनी टिप्पणी को लेकर सार्वजनिक रूप से माफी माँगी है। मामला सुप्रीम कोर्ट की तरफ से की गई टिप्पणी के संबंध में एक इंटरव्यू के दौरान अपने द्वारा दिए गए बयान से जुड़ा है। उन्होंने इस संबंध में बृहस्पतिवार (04 जुलाई 2024) को सार्वजनिक रूप से माफी माँगी। उन्होंने कहा कि वह अपने वक्तव्य के लिए खेद व्यक्त करते हैं। इस बारे में आईएमए ने बाकायदा प्रेस नोट भी जारी किया है। नोट में कहा गया है कि उनका (डॉ RV अशोकन का) सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को कम करने का कभी कोई इरादा नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले में सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी, उसमें आईएमए भी एक पक्षकार था।
डॉक्टरों के संगठन की ओर से जारी किए गए एक बयान में कहा गया कि आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर आर. वी. अशोकन ने आईएमए के एक पक्ष होने से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से की गई टिप्पणी के संबंध में प्रेस को दिए अपने बयान को लेकर सार्वजनिक रूप से माफी माँगी है। डॉ. अशोकन ने 23 अप्रैल के आदेश का जिक्र करते हुए एक बयान में कहा कि आईएमए भी कदाचार के मुद्दों के बारे में समान रूप से चिंतित है। सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से जुड़े भ्रामक विज्ञापन संबंधी मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि उसका मानना है कि आईएमए को भी अपना घर ठीक करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में भी डॉ. अशोकन ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अपने बयान को लेकर बिना शर्त माफी माँगी थी।
डॉ. अशोकन ने कहा कि आईएमए ने आधुनिक मेडिकल पेशेवरों के खिलाफ कुछ व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे भ्रामक विज्ञापन और दुर्भावनापूर्ण अभियानों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की है। एक इंटरव्यू के दौरान मेरे द्वारा दिए गए कुछ बयानों के संदर्भ में, मैंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष खेद व्यक्त किया है। मैंने बिना शर्त माफी माँगने के लिए अदालत में अपना हलफनामा भी जमा कर दिया है। उन्होंने अपने माफीनामे में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के महत्व या गरिमा को कम करने का मेरा कभी कोई इरादा नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एसोसिएशन के सदस्यों के बारे में कथित अनैतिक कृत्यों से संबंधित कई शिकायतें हैं जो मरीजों द्वारा उन पर जताए जाने वाले भरोसे को तोड़ते हैं। वे न केवल बेहद महँगी दवाएँ लिख रहे हैं, बल्कि टालने योग्य/अनावश्यक जाँच की भी सिफारिश कर रहे हैं। डॉ. अशोकन ने कहा कि नैतिक प्रथाओं का निरंतर अपडेट और प्रसार आईएमए की मुख्य गतिविधियों में से एक है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए को भी फटकार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आईएमए को इस विषय पर सार्वजनिक माफी माँगनी चाहिए। इसके बाद ये सार्वजनिक माफी सामने आई है।