दूसरे धर्मों को नीचा दिखाकर यीशु को एक मात्र रक्षक बताने वाले युवक को राहत देने से कर्नाटक हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को दूसरे धर्मों को नीचा दिखाने का अधिकार नहीं है। प्रीसिला डिसूजा बनाम कर्नाटक राज्य मामले में जस्टिस एचपी संदेश ने सुनवाई करते हुए आरोपित के विरुद्ध दर्ज शिकायत को रद्द करने से मना किया। कोर्ट ने कहा कि किसी एक व्यक्ति द्वारा कोई धर्म मानने से उसे दूसरे धर्म का अनादर करने का मौलिक अधिकार नहीं मिल जाता।
लाइव लॉ के अनुसार, इस संबंध में एक महिला ने आरोपित व्यक्ति के विरुद्ध शिकायत की थी। महिला ने बताया था कि आरोपित उसके निवास पर आया और बाकी धर्मों को नीचा दिखाते हुए कहा कि न भगवद्गीता और न कुरान मन को शांति देंगे। यीशु मसीह को छोड़कर कोई रक्षा करने नहीं आएगा।
अपने ऊपर हुई इसी शिकायत के मद्देनजर आरोपित ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसका तर्क था कि उसके ऊपर हुआ केस भारत के संविधान अनुच्छेद, 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है। हालाँकि, कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद कहा कि आरोपित पर विशेष आरोप लगे हैं कि उसने किसी अन्य धर्म का अपमान किया।
कोर्ट ने कहा कि शिकायत के बयानों और गवाहों के बयानों को पढ़ने के बाद, यह स्पष्ट है कि धर्म का प्रचार करते समय उन्होंने (आरोपित) विशेष रूप से उल्लेख किया कि अन्य धार्मिक ग्रंथ कोई उम्मीद नहीं देते और केवल यीशु मसीह ही उनकी रक्षा कर सकते हैं।
याचिका में चूँकि ये भी कहा गया है कि ये मामला धारा 298 लगाने वाला नहीं है। इसलिए इस पर कोर्ट ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि कानून की स्थापना करते समय जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों जिनका उद्देश्य किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को उसके धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करना है, के संबंध में आईपीसी की धारा 295 (ए) लागू की गई, और जाँच के बाद जाँच अधिकारी ने धारा 298 लागू किया… इसलिए, याचिकाकर्ताओं के वकील की यह दलील कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोप आईपीसी की धारा 298 को आकर्षित नहीं करते हैं और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रक्रिया का मुद्दा भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन होगा, स्वीकार नहीं किया जा सकता है।”
गौरतलब है कि इससे पहले तमिलनाडु के पेरंबलुर जिले के वी कलाथुर (मुस्लिम बहुल इलाके ) में हिंदू मंदिरों से जुलूस या भ्रमण निकालने का विरोध होने पर मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई थी। यहाँ इस्लामी कट्टरपंथियों ने हिंदू त्योहारों को ‘पाप’ करार दे रखा था। इस केस में कोर्ट ने अपने फैसले के दौरान टिप्पणी की थी,
“केवल इसलिए कि एक धार्मिक समूह विशेष इलाके में हावी है, इसलिए दूसरे धार्मिक समुदाय को त्योहारों को मनाने या उस एरिया की सड़कों पर जुलूस निकालने से नहीं रोका जा सकता है। अगर धार्मिक असहिष्णुता की अनुमति दी जाती है, तो यह एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए अच्छा नहीं है। किसी भी धार्मिक समूह द्वारा किसी भी रूप में असहिष्णुता पर रोक लगाई जानी चाहिए।”
अदालत ने आगे कहा था, “इस मामले में, एक विशेष धार्मिक समूह की असहिष्णुता उन त्योहारों पर आपत्ति जताते हुए दिखाई जा रही है, जो दशकों से एक साथ आयोजित किए जा रहे हैं। गलियों और सड़कों से निकलने वाले जुलूस को सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित करने की माँग की गई क्योंकि इलाका मुस्लिम बहुल है यहाँ कोई भी हिंदू त्योहार या जुलूस नहीं निकाला जा सकता है।”