दशकों पुराने अयोध्या विवाद पर शनिवार (9 नवंबर 2019) को सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने 16 अक्ट्रबर को इस मामले की सुनवाई पूरी की थी। पीठ ने छह अगस्त से लगातार 40 दिन इस मामले में सुनवाई की। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी से उन वामपंथी इतिहासकारों को तगड़ा झटका लगा था, जिन्होंने इतिहास को अपनी जागीर समझ कर न जाने क्या-क्या लिखा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘प्रख्यात इतिहासकारों’ द्वारा लिखी गई चीजों को सिर्फ़ उनका विचार माना जा सकता है, कोई सबूत नहीं। इन ‘प्रख्यात इतिहासकारों’ में कौन लोग शामिल हैं, ये जानने के लिए हमें कोई माथापच्ची नहीं करनी होगी। यह जगजाहिर है।
दरअसल, सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार राजीव धवन ने कोर्ट को एक बड़ा नोट सौंपा था। ‘Historians’ Report To The Indian Nation’ नामक इस नोट को जल्दबाजी में तैयार किया गया था। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील द्वारा सुप्रीम कोर्ट में इस नोट को इसीलिए रखा गया, क्योंकि इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अयोध्या का विवादित स्थल न तो श्रीराम का जन्मस्थान है और न ही बाबर ने मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनवाया। धवन द्वारा इस नोट को पेश किए जाने के बाद रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ ने उपर्युक्त बात कही।
इस रिपोर्ट को 1991 में 4 वामपंथी इतिहासकारों द्वारा तैयार किया गया था। आरएस शर्मा, एम अतहर अली, डीएन झा और सूरज भान ने अयोध्या में हुए पुरातात्विक उत्खनन से निकले निष्कर्ष का अध्ययन किए बिना ही इस रिपोर्ट को तैयार किया था। उत्खनन का आदेश इलाहबाद हाईकोर्ट ने दिया था। इसके बाद निकले निष्कर्षों से साफ़ पता चलता है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़ कर किया गया था। बावजूद इसके चारों वामपंथी इतिहासकारों ने लिख दिया कि वहाँ कोई मंदिर नहीं था।
जब धवन ने इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा तो कोर्ट ने कहा कि वे अधिक से अधिक इसे बस एक विचार अथवा अभिमत मान सकते हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन इतिहाकारों ने
पुरातात्विक उत्खनन से मिली चीजों और उससे निकले निष्कर्षों को ध्यान में नहीं रखा था। एएसआई द्वारा की गई खुदाई में मंदिर के पक्ष में कई अहम साक्ष्य मिले थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस रिपोर्ट का कोई मतलब नहीं है क्योंकि वह उत्खनन के पहले तैयार किया गया था।
कोर्ट ने कहा कि इन इतिहासकारों द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया असावधानीपूर्वक संचालित की गई लगती है। एक तरह से सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि उन्होंने बिना सबूतों को देखे और अहम पहलुओं का अध्ययन किए बिना रिपोर्ट तैयार कर के कुछ भी दावा कर दिया। इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी ऐसे इतिहासकारों के दावों को नकार दिया था। सुप्रिया वर्मा नामक एक कथित एक्सपर्ट ने भी एएसआई के डेटा को ही ग़लत ठहरा दिया। मजे की बात यह कि उन्होंने खुदाई से जुड़ी ‘रडार सर्वे रिपोर्ट’ को पढ़े बिना ही ऐसा कर दिया।
Ram Mandir: SC Bench Junks Report Of ‘Eminent Historians’ As Mere ‘Opinion’, Not Evidence.
— Mohandas Pai (@TVMohandasPai) September 18, 2019
The Fraud of the leftist so called ‘Eminent Historians’ exposed! https://t.co/X2bdwV19Ci
सुप्रिया वर्मा और जया मेनन नामक कथित एक्सपर्ट्स खुदाई के समय वहाँ मौजूद नहीं थीं। लेकिन उन्होंने दावा कर दिया कि वहाँ मिले स्तम्भ कहीं और से लाकर रख दिए गए थे। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के एक अन्य ‘एक्सपर्ट’ गवाह डी मंडल ने कोर्ट में स्वीकार किया कि अयोध्या गए बिना ही उन्होंने विवादित स्थल के ऊपर ‘Ayodhya: Archaeology after Demolition’ नामक एक भारी-भरकम पुस्तक लिख डाली। उन्होंने कोर्ट को बताया कि उन्हें बाबर के बारे में बस इतना पता है कि वह 16वीं शताब्दी का शासक था। इसके अलावा उन्हें बाबर के बारे में कुछ नहीं पता।