Monday, December 23, 2024
Homeदेश-समाजकोई डूब गया, किसी को बीमारी थी, कोई ट्रैक्टर से कुचला गया... सबकी मौत...

कोई डूब गया, किसी को बीमारी थी, कोई ट्रैक्टर से कुचला गया… सबकी मौत किसान प्रदर्शन के नाम: 700 से ज्यादा मौतों की हकीकत कुछ और ही

मौतें हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं और पीड़ित परिवार से काफी कुछ छीन लेती है। लेकिन, मौतों को राजनीतिक तमाशा बनाना और उनका इस्तेमाल व्यवस्था विरोधी दुष्प्रचार के लिए करना, एक ऐसी नीचता है जिससे हर किसी को दूर रहना चाहिए।

कृषि कानूनों को केंद्र सरकार निरस्त कर चुकी है। अब शोर उन कथित मौतों को लेकर जो इन कानूनों के विरोध में हुए किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई। केंद्र और राज्य सरकारों से किसान संगठन इन मृतक प्रदर्शनकारियों के परिवारों को मुआवजा देने की माँग कर रहे हैं। रिपोर्टों और किसान संगठनों के दावों के मुताबिक विरोध-प्रदर्शन के दौरान 700-750 कथित किसानों की मौत हुई। 

दिसंबर 2021 में जब केंद्र सरकार ने ऐसे मृतकों की सूची नहीं होने की बात कही थी तो कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक लिस्ट रखी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि इन मृतकों के परिवार को मुआवजा केंद्र सरकार को देना चाहिए। जब किसान संगठन और कॉन्ग्रेस मुआवजे की माँग कर रही है, तब यह तथ्य भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी किसान प्रदर्शनकारी की मौत पुलिस कार्रवाई में नहीं हुई। अब इन मौतों का एक विस्तृत विश्लेषण सामने आया है जिससे पता चलता है कि ऐसे किसानों की संख्या काफी कम है, जिनकी मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल पर हुई। किसान संगठन जिन करीब 700 मौतों का दावा कर रहे उनमें ज्यादातार की मृत्यु अधिक उम्र, बीमारी, दुर्घटना और ऐसे ही अन्य कारणों से हुई। इनमें से शायद ही कोई मौत सीधे तौर पर कृषि कानूनों के विरोध-प्रदर्शन से जुड़ी हुई है। 

एक ब्लॉग पेज ने विरोध-प्रदर्शन के दौरान जान गँवाने वाले किसानों का रिकॉर्ड रख रखा है। एक्टिविस्ट और खोजी पत्रकार विजय पटेल जिनका ट्विटर हैंडल @vijaygajera है, ने इस रिकॉर्ड का गहन अध्ययन कर कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे हैं। विजय ने एक लंबे थ्रेड में इन मौतों की प्रकृति के बारे में बताया है, जिससे साफ है कि ये सीधे तौर पर विरोध-प्रदर्शन से जुड़े नहीं है। कुछ मौतें संदिग्ध आत्महत्या हैं तो कुछेक कोरोना संक्रमण से जुड़ी हैं। मौत हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होती है। लेकिन किसी की मृत्यु का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए करना एक नई तरह की नीचता है। जो तथ्य विजय ने सामने रखे हैं और मृतकों की सूची की पड़ताल के दौरान ऑपइंडिया के सामने आए, उससे जाहिर है कि जिन 700 मौतों को किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जोड़कर सामने रखा जा रहा है कि उनको लेकर कुछ स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।

सबसे पहले तो यह स्पष्ट है कि 700 मौतों की संख्या का इस्तेमाल विपक्ष, किसान संगठनों, प्रोपेगेंडाबाजों और वामपंथी झुकाव वाले मीडिया संस्थान केंद्र सरकार की छवि धूमिल करने की नीयत से कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस इसका दुष्प्रचार न केवल किसानों के विरोध-प्रदर्शन, बल्कि कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के बाद भी राजनीतिक हथियार के तौर पर कर रही है। 

विजय ने जिन 702 मौतों की पड़ताल की है उनमें से केवल 191 की मौत दिल्ली की सीमा के विरोध-प्रदर्शन स्थलों पर हुई। 340 लोगों की मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल से घर लौटने के बाद हुई। यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों किसान संगठन फिर इनकी मौतों को भी विरोध-प्रदर्शन से जोड़ रहे हैं। क्या केवल इसलिए कि जिनकी मृत्यु हुई वह दिल्ली की सीमा के विरोध-प्रदर्शन स्थलों पर मौजूद थे अथवा मौत से पहले वहाँ आए थे? साफ है कि इन लोगों की मौत को विरोध-प्रदर्शनों से जोड़ना बेतुके आरोप के सिवा कुछ नहीं है। इनके अलावा 108 लोगों की मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल से घर लौटते वक्त रास्ते में हुई। इसमें हिंट एंड रन के केस भी शामिल हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि दुर्घटना में मौत को कैसे किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जोड़ा जा सकता? इसके अलवा 63 लोगों की मौत दिल्ली की सीमा से इतर अन्य प्रदर्शन स्थलों या अन्यत्र हुई है।

नदी में डूबा लेकिन नाम किसानों की मौत की लिस्ट में जोड़ा गया

मृतकों की सूची में एक नाम सुखपाल सिंह नाम के किसान का भी है। पोस्ट के अनुसार, सिंह ने कई बार दिल्ली सीमा पर विरोध-प्रदर्शनों में भाग लिया था। मगर मृत्यु के समय वह अपने पैतृक स्थान पर थे। रिकॉर्ड में कहा गया है कि सिंह अपने खेत की तरफ गए थे। इसी दौरान गलती से ब्यास नदी में डूब गए। इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि उनकी मृत्यु को एक प्रदर्शनकारी की मृत्यु क्यों कहा गया, जबकि वह अपने खेत में काम करने के दौरान मरे थे।

ट्रेन में चढ़ते समय हुई मौत, लेकिन सूची में जगह मिली

एक अन्य किसान की पहचान गुरलाल सिंह के रूप में हुई है, जो बहादुरगढ़ रेलवे स्टेशन पर एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का शिकार हो गए। वह घर लौटते समय ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, मगर उनका पैर फिसल गया और यह दुर्घटना घट गई। प्राय: ऐसे हादसे तभी होते हैं जब कोई चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करता है। हालाँकि यह उल्लेख नहीं है कि ट्रेन चल रही थी या नहीं, मगर यह स्पष्ट है कि 47 वर्षीय गुरलाल की मृत्यु रेलवे स्टेशन पर हुई थी, न कि विरोध स्थल पर। परमा सिंह नाम के एक अन्य प्रदर्शनकारी की भी एक ट्रेन दुर्घटना में मृत्यु हो गई। सिंह टिकरी सीमा से लौटते समय कथित तौर पर ट्रेन से गिर गए और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। विरोध-प्रदर्शन बंद होने के बाद दिल्ली सीमा से लौटते समय जसविंदर सिंह नाम के एक अन्य किसान की मौत हो गई। वह कथित तौर पर एक ट्रैक्टर से गिर गए और उससे कुचल कर उनकी मौत हो गई। वहीं सुखविंदर सिंह नाम के एक अन्य प्रदर्शनकारी ने सड़क दुर्घटना में घायल होने के बाद दम तोड़ दिया। पीजीआई चंडीगढ़ में इलाज के दौरान उनकी मौत हुई।

संदिग्ध आत्महत्याएँ

सूची में 40 ऐसे नाम है जिन्होंने आत्महत्या की। इनमें से कई आत्महत्या की जाँच की जरूरत है। विजय ने एक किसान की तस्वीर शेयर की, जिसकी कथित तौर पर आत्महत्या से मौत हो गई थी। लेकिन उसके चेहरे पर चोट के निशान साफ नजर आ रहे थे।

विरोध के दौरान पहली बार आत्महत्या की खबर 16 दिसंबर, 2020 को संत बाबा राम सिंह की आई। उन्होंने कथित तौर पर खुद को गोली मार ली और एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने दावा किया कि सरकार की आँखें खोलने के लिए आत्महत्या की। हालाँकि उनकी मौत को लेकर कई तरह के सवाल उठे थे।।

17 दिसंबर, 2020 को बताया गया कि एक समाचार चैनल के एक एंकर से बात करते हुए चंडीगढ़ की अमरजीत कौर नाम की एक नर्स ने इस आत्महत्या पर सवाल उठाए। अपने बयान में उन्होंने कहा कि यह असंभव है कि संत राम सिंह आत्महत्या करे। उसने आगे सुसाइड नोट को लेकर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यह उनकी हैंडराइटिंग से मेल नहीं खाता है। कौर ने कहा कि जिसने लोगों को समस्याओं से बाहर निकलने और जीवन में मजबूत रहने के लिए प्रोत्साहित किया हो, वह आत्महत्या नहीं कर सकता। उसने कहा कि वह लोगों से कहते थे कि आत्महत्या करना किसी बात का जवाब नहीं है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।

दूसरी रिपोर्ट की गई मौत कुलबीर सिंह की थी, जिसने विरोध स्थल से वापस आने के बाद आत्महत्या कर ली थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह कर्ज के चलते तनाव में था।

बढ़ते कर्ज के दबाव में किसान द्वारा की गई तीसरी आत्महत्या दिसंबर 2020 में दर्ज की गई थी। गुरलभ सिंह ने विरोध स्थल से लौटने के बाद आत्महत्या कर ली। उन पर 6 लाख रुपए का कर्ज था।

एक अन्य किसान रंजीत सिंह ने भी फरवरी 2021 में धरना स्थल से लौटने के बाद आत्महत्या कर ली थी। उन पर 15 लाख रुपए का कर्ज था। रिपोर्ट्स की मानें तो उन्हें बैंक से कुर्की का नोटिस मिला था। लखविंदर सिंह कॉमरेड ने भी आत्महत्या की। उन पर 15 लाख रुपए का कर्ज था। यहाँ तक कि रिपोर्ट्स में कहा गया था कि कर्ज के चलते उन्होंने खुदकुशी कर ली।

मुकेश को जिंदा जलाने का मामला

17 जून 2021 को, यह बताया गया कि मुकेश नाम के एक किसान को उसके साथी किसानों ने टिकरी बॉर्डर पर कथित रूप से आग लगा दी थी। मृतक ने प्रदर्शनकारियों के साथ नशा किया और बाद में कथित तौर पर मारपीट के बाद उसे आग के हवाले कर दिया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुकेश को जातिसूचक गालियाँ दी गईं। सोशल मीडिया पर उसे आग लगाने का एक वीडियो भी वायरल हो गया था, जिसमें आग लगाने से पहले जातिवादी गालियाँ दी रही थी।

मौत की वजहें

अज्ञात बीमारी जो कोरोना या कुछ और भी हो सकती है जो शायद प्रदर्शन स्थल से लेकर लोग गए होंगे से 307 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। हर्ट अटैक से 203 लोगों की जान गई। मौत के लिए ज्ञात यह सबसे बड़ी वजह है। 

विजय ने एक ट्वीट में बताया है कि दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों को राष्ट्रीय और राज्य औसत के हिसाब से, मौत के प्राकृतिक वजह के रूप में चिह्नित किया जाना चाहिए था और इसके लिए सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

मौतों के रिकॉर्ड से पता चलता है कि हार्ट अटैक और अज्ञात कारणों के अलावा, किसानों की मौत हिट एंड रन, दुर्घटना, संदिग्ध आत्महत्या और निमोनिया, कोविड-19, ब्रेन स्ट्रोक, कोल्ड स्ट्रोक, पेट में संक्रमण जैसी विभिन्न बीमारियों की वजह से हुई। इस सूची में 3 ऐसे लोगों का भी जिक्र है जिनकी हत्या हुई। लेकिन उस दलित सिख लखबीर सिंह का नाम नहीं है जिसकी हत्या कुंडली बॉर्डर पर अक्टूबर 2021 में निहंग सिखों ने बेरहमी से कर दी थी।

बुजुर्गों को लालच दिया गया

एक ट्विटर यूजर जिसका हैंडल @Hindavi_Swarajy है, ने नवंबर 2021 में एक थ्रेड प्रकाशित किया था। इसमें उन्होंने बताया था कि उनके दादा को विरोध प्रदर्शन स्थल पर फुसलाकर ले जाने के लिए कैसे लोग उनके घर आए थे। उनके दादा की उम्र 80 वर्ष से अधिक है। उन्होंने घर आए लोगों को अपने दादा को प्रदर्शन में ले जाने से मना कर दिया, लेकिन उनके इलाके के कई बुजुर्ग प्रदर्शन में शामिल होने गए थे। 

उन्होंने बताया था कि प्रदर्शन स्थल पर 7 लोगों की मौत हो गई थी। उन्होंने बताया था, “दुर्भाग्य से प्रदर्शन स्थल पर सात लोगों की मौत हो गई। अपने बीमार बुजुर्गों की सेवा करने, उनका इलाज करवाने की जगह मेरे मुहल्ले के लालची लोगों ने उन्हें प्रदर्शन में शामिल होने भेज दिया। अब वे गिद्ध की तरह मुआवजा मॉंग रहे और मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहे। ऐसे लोगों को वाहेगुरु कभी क्षमा नहीं करेंगे।” 

मौतों को कोई उचित नहीं ठहरा सकता। मौतें हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं और पीड़ित परिवार से काफी कुछ छीन लेती है। लेकिन, मौतों को राजनीतिक तमाशा बनाना और उनका इस्तेमाल व्यवस्था विरोधी दुष्प्रचार के लिए करना, एक ऐसी नीचता है जिससे हर किसी को दूर रहना चाहिए।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

अल्लू अर्जुन के घर पर हमला करने वालों को मिली जमानत, कॉन्ग्रेसी CM रेवंत रेड्डी के साथ तस्वीरें वायरल: तोड़फोड़ के बाद ‘पुष्पा 2’...

बीआरएस नेता ने दावा किया है कि आरोपितों में से एक तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी का आदमी था। वहीं कॉन्ग्रेस नेता ने इन आरोपों पर कोई बयान नहीं दिया है।

इस्लामी लुटेरे अहमद शाह अब्दाली को रोका, मुगल हो या अंग्रेज सबसे लड़े: जूनागढ़ के निजाम ने जहर देकर हिंदू संन्यासियों को मारा, जो...

जूना अखाड़े के संन्यासियों ने इस्लामी लुटेरे अहमद शाह अब्दाली और जूनागढ़ के निजाम को धूल चटाया और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
- विज्ञापन -