उत्तर प्रदेश के कानपुर में 3 जून को नूपुर शर्मा के कथित बयान के विरोध में जुमे की नमाज के बाद पथराव किया गया था। अब अचानक से शहर के मुस्लिम संगठनों ने इस साल मुहर्रम के दौरान पाइकी जुलूस नहीं निकालने का फैसला किया है, क्योंकि उन्हें जुलूस के दौरान हालात बिगड़ने का डर है। माना जा रहा है कि वे शहर में कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर ‘चिंतित’ हैं।
दरअसल, कोरोना महामारी के कारण बीते दो वर्षों को छोड़कर पिछले 225 सालों से लगातार ये जुलूस निर्बाध रूप से निकाले जाते रहे हैं। इस साल से इसके एक बार फिर से शुरू होने की संभावना थी, लेकिन अब एक बार फिर से इस पर रोक लग गई है। बता दें कि पाइकी जुलूस शहर में मुहर्रम के बड़े जुलूसों में से एक माना जाता है।
उल्लेखनीय है कि पाइकी वे लोग हैं, जो कि काले ‘कुर्ता-पायजामा’ पहने हुए रहते हैं। इनकी पीठ और कंधों पर रस्सियों के साथ घंटियाँ बंधी होती हैं। ये मुहर्रम के जुलूस के साथ इमामबाड़ा, कर्बला और इमाम चौक पर जाते हैं, ‘हाँ हुसैन, या हुसैन’ का नारा लगाते हैं।
तंज़ीम निशान-ए-पाइक कासीद-ए-हुसैन के खलीफा शकील और तंज़ीम-अल-पाइक कासिद-ए-हुसैन के लोग अच्छे मुस्लिमों से चंदा लेकर हर साल जुलूस निकालते रहे हैं। इस बार के जुलूस को लेकर जुलूस के वर्तमान प्रभारी कफील कुरैशी ने कहा कि इस साल मुहर्रम के मौके पर पाइकी जुलूस नहीं निकाला जाएगा। उन्होंने कहा, “शहर के माहौल को ध्यान में रखते हुए इस साल पाइकी जुलूस नहीं निकालने का फैसला किया गया है। हमने लोगों से इस मोहर्रम में अपने घरों में नमाज अदा करने और शहर में अमन बनाए रखने में मदद करने की अपील की है।”
खलीफा ने भी लिया ऐसा ही फैसला
कानपुर शहर के खलीफा शकील ने भी शहर की सख्त कानून व्यवस्था को देखते हुए इस साल पाइकी जुलूस नहीं निकालने की बात कही है। खलीफा ने कहा, “इस साल पाइकी का जुलूस नहीं निकाला जाएगा। प्रशासन को इस बारे में अवगत करा दिया गया है। यह निर्णय 3 जून की हिंसा के बाद शहर के माहौल को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। हमने लोगों से इस तरह के किसी भी काम में शामिल नहीं होने के लिए कहा है।”