पाकिस्तान के कराची की रहने वाली 19 साल की भावी फैशन डिजाइनर आयशा रशीद को चेन्नई के अस्पताल में एक भारतीय मरीज का दिल प्रत्यारोपित कर नया जीवनदान दिया गया है। आयशा गंभीर हृदय संबंधी रोग से पीड़ित थीं और उन्हें पहली बार 2019 में चेन्नई के एमजीएम हेल्थकेयर में भर्ती कराया गया था। हालाँकि, दिल का प्रत्यारोपण से परिवार झिझक रहा था, क्योंकि उसके लिए 35 लाख रुपए का खर्च वहन आसान नहीं था।
बाद में बाद में अस्पताल की मेडिकल टीम ने इस पाकिस्तानी परिवार को ऐश्वर्यम ट्रस्ट से संपर्क कराया। इस ट्रस्ट ने दिल के प्रत्यारोपण के लिए इस परिवार को धन उपलब्ध कराया। आख़िरकार उन्हें लगभग छह महीने पहले अस्पताल में जीवनरक्षक सर्जरी मिली और वह भी मुफ़्त। वहीं, दिल देने वाला दाता दिल्ली का 69 वर्षीय ब्रेन-डेड मरीज था।
VIDEO | 19-year-old Pakistani girl undergoes successful heart transplant surgery in #Chennai.
— Press Trust of India (@PTI_News) April 26, 2024
"I am feeling fine. I thank (the Indian government) for giving me visa…I got a heart transplant," says Ayesha Rashid, a resident of Karachi, Pakistan.
(Full video available on PTI… pic.twitter.com/bAeNTlkN22
इस घटनाक्रम से नेटिज़न्स सोच रहे हैं कि 1.2 अरब लोगों के देश में एक पाकिस्तानी लड़की प्रतीक्षा सूची में टॉप पर कैसे पहुँची। भारत में उच्च हृदय रोग दर के लिए कुख्यात है और जिसका राष्ट्रीय स्तर पश्चिमी देशों के औसत से दोगुना है। नेटिजन्स इस बात पर भी आश्चर्यचकित दिखे कि एक मुस्लिम दूसरे का अंग कैसे ले सकता है, जबकि इस्लाम में अंगदान पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट एंड मैकेनिकल सर्कुलेटरी सपोर्ट के सह-निदेशक डॉ. केजी सुरेश राव ने कहा, “विदेशियों को एक दिल तभी आवंटित किया जाता है, जब पूरे देश में कोई प्राप्तकर्ता नहीं होता है। चूँकि इस मरीज का दिल 69 साल के व्यक्ति का था, इसलिए कई सर्जन झिझक रहे थे। हमने जोखिम लेने का फैसला किया, क्योंकि आंशिक रूप से दाता के दिल की स्थिति अच्छी थी। हम ये भी जानते थे कि यह आयशा के लिए एकमात्र मौका है।”
हालाँकि, भारतीयों में हृदय रोग की व्यापकता और विशाल आबादी को देखते हुए यूजर्स को ये तर्क गले नहीं उतर रहा है। राकेश कृष्णन सिम्हा नाम के एक यूजर ने कहा कि विदेशियों, विशेष रूप से बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए लोगों के अंग प्रत्यारोपण पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “हर साल हजारों भारतीय हृदय प्रत्यारोपण के इंतजार में मर जाते हैं। हालाँकि, वामपंथी वास्तुकार चित्रा विश्वनाथ के ऐश्वर्यम ट्रस्ट के माध्यम से पाकिस्तानी लड़की ने एक भारतीय हृदय निःशुल्क प्राप्त किया। पाकिस्तानी लड़की के लिए दिल दिल्ली से चेन्नई लाया गया। डॉक्टरों का दावा है कि दिल्ली में कोई भी ऐसा नहीं चाहता था, लेकिन कौन जानता है कि क्या ये डॉक्टर विवाद से बचना चाहते हों।”
Each year thousands of Indians die waiting for a heart transplant. However, a Pakistani girl jumped the queue and received an Indian heart free through leftist architect Chitra Vishwanath's Aishwaryan Trust. The heart was flown from Delhi to Chennai for the Pakistani girl. The…
— Rakesh Krishnan Simha (@ByRakeshSimha) April 25, 2024
एक अन्य यूजर ने लोगों से कॉन्ग्रेस और इंडी गठबंधन को वोट नहीं देने का आग्रह किया। उसने आरोप लगाया, “द्रमुक शासित चेन्नई ने एक पाकिस्तानी लड़की के हृदय प्रत्यारोपण की अनुमति दी, जो कभी अपना अंगदान नहीं करेगी। हजारों भारतीय तमिल लोग सरकारी अस्पताल में कतार में थे, लेकिन एमजीएम हेल्थकेयर ने एक पाकिस्तानी का हृदय प्रत्यारोपण मुफ्त में कर दिया।”
#election2024
— shivkant rawat (@shivkantra64146) April 26, 2024
Say No to Congress and INDIA
DMK RULED CHENNAI allowed heart transplant of a Pakistani girl who will never donate her organs.
Thousands of Indian Tamil people in line in govt hospital but @MGMHealthcare gave heart transplant free of cost to a Pakistani.
एक व्यक्ति ने टिप्पणी की, “अब वह पाकिस्तान वापस जाएगी, एक ‘जिहादी’ से शादी करेगी और कम से कम एक दर्जन बच्चों को जन्म देगी, जो भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ेंगे। महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या उसे एक भारतीय मरीज की कीमत पर दिल दिया गया? क्या एक भी भारतीय मरीज़ हृदय प्रत्यारोपण के इंतज़ार में नहीं थे? एक पाकिस्तानी लड़की को हृदय प्रत्यारोपण की मंजूरी किसने दी?”
Besides this, the most important point to consider here is was she given the heart at the expense of an Indian patient? Wasn’t there a single Indian patient waiting for a heart transplant?
— Brutal Truth (@sarkarstix) April 26, 2024
Who gave the nod for the heart transplant to a Pakistani girl?
अंग ले सकते हैं, लेकिन अंगदान कर नहीं सकते
कई लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि मुस्लिम केवल अंग ही क्यों लेते हैं, वे कभी अंगदान क्यों नहीं करते। यूजर्स का कहना है कि मुस्लिम अंगदान इसलिए नहीं करते, क्योंकि उनका मानना है कि यह उनकी धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन है। उन्होंने चुनौती दी कि जो लोग अंगदान नहीं करते, क्या उन्हें अंग लेने का अधिकार होना चाहिए।
यहाँ तक कि 1983 क्रिकेट विश्व कप विजेता भारतीय टीम के विकेटकीपर सैयद किरमानी ने 2018 में अपनी आंखें दान करने का अपना वादा वापस ले लिया था। उन्होंने चेन्नई के राजन आई केयर सेंटर में नेत्रदान के बारे में जागरूकता अभियान में भाग लेने के दौरान यह वादा किया था। उन्होंने दावा किया था, “इस्लाम में, हमें किसी मृत शरीर के अंगों को बाहर निकालना या दान करना नहीं चाहिए।”
उसी साल उत्तर प्रदेश के कानपुर के एक मुस्लिम डॉक्टर अरशद मंसूरी ने खुलासा किया था कि उन्हें धमकी दी जा रही है, क्योंकि उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद अपने अंगदान करने का निर्णय लिया था। डॉक्टर मंसूरी के समुदाय के कुछ लोग उनकी नेक भावना से आहत दिखे और एक ऐसा कार्य करने के लिए उनसे नाराज़ थे जिसे वे ‘इस्लाम विरोधी’ मानते थे।
इतना ही नहीं, कानपुर के एक मदरसे के अरशद मौलवी मुनीफ बरकती ने दावा किया कि डॉक्टर ने उनसे यह सवाल किया था कि चिकित्सा उद्देश्यों के लिए किसी के शरीर या अंगों को दान करना इस्लाम में स्वीकार्य है या नहीं, जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि मानव शरीर अल्लाह का एक उपहार है और वह कुरान के अनुसार, कोई व्यक्ति इसका स्वामी नहीं है।
जब किडनी काफिर हो गई
चौंकाने वाली बात यह है कि जो व्यक्ति किसी मुस्लिम को अंग देता है, वह भी कट्टरपंथियों के गुस्से का शिकार होता है। केरल के अलप्पुझा जिले के मावेलिक्कारा निवासी हिंदू महिला लेखा नंबूथिरी ने 2009 में किडनी दाताओं की तलाश में एक व्यक्ति के विज्ञापन पर आईं। उन्होंने 15 लाख रुपये तक के प्रस्तावों को ठुकरा दिया था और अपनी किडनी दान करने के लिए उत्सुक थीं।
साल 2012 में उन्होंने अपनी एक किडनी पट्टांबी के शफी को दे दी। शफी को किडनी रिप्लेसमेंट की गंभीर जरूरत थी। उसने खुद को गरीब बताते हुए मृत्यु शय्या पर होने का नाटक किया था। लेखा ने उसे अपना किडनी देने का निर्णय लिया और 2012 में दान कर दीं। वह खराब वित्तीय स्थिति से भी जूझ रही थीं और एक पट्टे के घर में रहती थीं।
लेखा के पति साजन भी एक मरीज थे। उनके उपचार के कारण घर की वित्तीय स्थिति खराब हो गई थी। इस कपल के दो बेटों का नामांकन कक्षा 8 और 10 में हुआ था। हालाँकि, उन्होंने इन कठिनाइयों के बावजूद मुफ्त अंगदान को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया और 15 लाख रुपए तक के कई प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया।
साल 2023 में एक स्थानीय अखबार को इस घटना के बारे में पता चला तो इसे हिंदू-मुस्लिम के बीच सद्भाव के प्रतीक के रूप में इस खबर को लिखना चाहा। लेखा चीजों को सार्वजनिक करने से झिझक रही थी, क्योंकि वह अनावश्यक मीडिया का ध्यान नहीं चाहती थी। बाद में एक रिपोर्टर के समझाने के बाद पति-पत्नी इसके लिए सहमत हो गए। इसे ‘सांप्रदायिक किडनी’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया।
लेखा के पति ने मीडिया को बताया कि उन्होंने अपनी कहानी साझा करने से पहले शफी से अनुमति माँगी थी तो वे नाराज हो गए, क्योंकि अंग दाता दूसरे धर्म से था। इससे वे गुस्सा हो गए और सांप्रदायिक घृणा की भावना से भर गए। लेखा के अनुसार, किडनी स्वीकार करने के लिए दोस्तों, परिवार और उसके समुदाय के लोगों ने उसका उपहास किया।
(यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में रूकमा राठौड़ ने लिखा है। इस लिंक पर क्लिक करके इसे विस्तार से पढ़ सकते हैं।)