प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा चूक मामले की जाँच के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी गठित की है। इस कमेटी में NIA के डीजी, चंडीगढ़ के डीजीपी, पंजाब के एडीजीपी और पंजाव एवं हरियाणा हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल शामिल हैं। इनके अलावा एक सबसे महत्वपूर्ण नाम व इस कमेटी की अध्यक्षता की जिम्मेदारी जिन्हें दी गई है वो सेवानिवृत्त जस्टिस इंदू मल्होत्रा हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित यह कमेटी अब पूरे मामले में सारे सीसीटीवी फुटेजों की पड़ताल करेगी। लोगों के बयान से लेकर पुलिस एक्शन के हर बिंदु पर तथ्यों की जाँच होगी। कमेटी यह ध्यान भी देगी कि भविष्य में कभी इस प्रकार की चूक न हो। इस जाँच के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। हालाँकि कोर्ट ने ये जरूर कहा कि जाँच रिपोर्ट जल्द सौंपी जाए। इसमें पता लगाया गया हो कि आखिर इस लापरवाही के कारण क्या थे।
बता दें कि पीएम सुरक्षा चूक मामले में पीठ की अध्यक्षता करने वाली पूर्व जस्टिस इंदू मल्होत्रा का नाम कई महत्वपूर्ण फैसलों के साथ याद किया जाता है। बेंगलुरु की रहने वाली इंदु मल्होत्रा की रिटायरमेंट पिछले साल ही हुई थी। साल 2018 में उन्हें वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया था। विभिन्न केसों में निर्णय के समय उनकी अलग राय ने हमेशा लोगों का ध्यान उनकी ओर खींचा।
Supreme Court sets up a committee headed by a retired top court judge, Justice Indu Malhotra to investigate the security lapse during PM Narendra Modi's Punjab visit on January 5 pic.twitter.com/nHjzYRFjk7
— ANI (@ANI) January 12, 2022
सबसे चर्चित मामला सबरीमाला केस में फैसले के वक्त का है जब जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में बनी पाँच सदस्यीय पीठ में वह अकेली महिला जज थीं, जहाँ चार पुरुषों ने सबरीमाला में महिलाओं को प्रवेश देने का अधिकार देने का समर्थन किया था, वहीं इंदु मल्होत्रा ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई शिकायतें सही नहीं हैं। समानता का अधिकार धार्मिक आज़ादी के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकता। जजों की निजी राय गैरज़रूरी है। संवैधानिक नैतिकता को आस्थाओं के निर्वाह की इजाज़त देनी चाहिए।
उन्होंने फैसले पर असहमति देते हुए ये भी कहा था कि इस मुद्दे का असर दूर तक जाएगा। धार्मिक परंपराओं में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। अगर किसी को किसी धार्मिक प्रथा में भरोसा है, तो उसका सम्मान होना चाहिए, क्योंकि ये प्रथाएँ संविधान से संरक्षित हैं। अपना मत रखते हुए उन्होंने कहा था कि समानता के अधिकार को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ ही देखना चाहिए, और कोर्ट का काम प्रथाओं को रद्द करना नहीं है।
इसके अलावा समलैंगिक यौन संबंध मामले में फैसला सुनाने वाली पीठ में भी पूर्व जस्टिस शामिल थीं। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था। इंदु मल्होत्रा व्यभिचार को क्राइम सूची में रखने वाली आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक ठहराने और उसे समाप्त करने वाली संविधान पीठ का भी हिस्सा थीं।
पिछले साल 21 मार्च 2021 को वह रिटायर हुई थीं। उनके लिए ये क्षण इतना भावुक करने वाला था कि वो अपना भाषण भी पूरा नहीं कर पाई थीं। उन्हें देख चीफ जस्टिस एस ए बोबड़ ने कहा था कि वह चाहें तो आगे कभी अपना भाषण पूरा कर लें। वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था, “ये एक विडंबना है कि अच्छे जज बहुत जल्दी रिटायर होते हैं। न्यायधीशों की रिटायरमेंट उम्र 70 की जानी चाहिए। इंदु मल्होत्रा को कम से कम 10 साल और काम करना चाहिए।”