अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने आज प्रशांत भूषण को लेकर कहा कि उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया जाना चाहिए और उन्हें सजा नहीं दी जानी चाहिए। इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशांत भूषण ने अपनी टिप्पणी के जवाब में जो बयान दिया है, वह ज्यादा अपमानजनक है। बता दें कि प्रशांत भूषण ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे पर सुप्रीम कोर्ट में अपने ट्वीट्स के लिए माफी माँगने से इनकार कर दिया है।
Story about the hearing so far :
— Live Law (@LiveLawIndia) August 25, 2020
‘We Expected Something Better’, SC On Prashant Bhushan’s Statement; AG Urges Court To Take ‘Compassionate View’#PrashantBhushan #contemptofcourt@pbhushan1 #SupremeCourthttps://t.co/k674SeTOgu
ज्ञात हो कि पिछली सुनवाई में प्रशांत भूषण ने वर्ष 2009 में दिए अपने बयान पर खेद जताया था लेकिन बिना शर्त माफ़ी नहीं माँगी थी। उन्होंने कहा था कि तब मेरे कहने का तात्पर्य भ्रष्टाचार कहना नहीं था, बल्कि सही तरीक़े से कर्तव्य न निभाने की बात थी। दरअसल, वर्ष 2009 में एक इंटरव्यू में वकील भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के 8 पूर्व चीफ़ जस्टिस को भ्रष्ट कहा था।
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि न्यायपालिका में करप्शन को लेकर कई पूर्व जज बोल चुके हैं। इस लिहाज से प्रशांत भूषण को भी एक चेतावनी देकर छोड़ दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे बयान सिर्फ कोर्ट को ये बताने के लिए दिए जाते हैं कि आप अस्पष्ट दिख रहे हैं और आप में भी सुधार की जरूरत है। सरकारी वकील ने कहा कि उन्हें सिर्फ ऐसे बयान दोबारा नहीं देने की चेतावनी देकर छोड़ देना चाहिए।
अटॉर्नी जनरल के सुझाव पर प्रतिक्रिया देते हुए, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा, “लेकिन वह यह नहीं सोचते कि उन्होंने जो भी किया, वह गलत था। उन्होंने माफी नहीं माँगी… लोग गलती करते हैं, कभी-कभी तो गलती से भी गलती हो जाती है। यह मत सोचो कि उसने कुछ गलत किया है। क्या करें जब कोई यह नहीं सोचता कि उन्होंने कुछ गलत किया है?”
जस्टिस मिश्रा के सवाल पर केके वेणुगोपाल ने जवाब दिया, “मैं खुद प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना दायर करना चाहता था, जब दो सीबीआई अधिकारी लड़ रहे थे, और उन्होंने कहा कि मैंने दस्तावेजों से छेड़खानी की है। लेकिन बाद में उन्होंने खेद व्यक्त किया, तो मैं पीछे हट गया। ऐसे में लोकतंत्र का पालन कर उन्हें फ्री स्पीच के नाम पर छोड़ दिया जाना चाहिए।”
जस्टिस मिश्रा ने इसके जवाब में कहा कि जब वो यही नहीं मानते हैं कि उन्होंने कुछ गलत किया है तो फिर ऐसे में चेतावनी देने का भी क्या औचित्य रह जाता है? जस्टिस मिश्रा ने कहा कि कोर्ट प्रशांत भूषण और उनके वकील धवन को 30 मिनट का और समय देती है ताकि वो इस पर ‘विचार’ करें।
Justice Mishra says the bench will come back after 30 minutes and asks Dhavan and Bhushan to “think over”.#PrashantBhushan #contemptofcourt@pbhushan1 #SupremeCourt
— Live Law (@LiveLawIndia) August 25, 2020