Friday, November 22, 2024
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सरकार ने दलितों को दी जमीन, मुस्लिमों ने कर लिया कब्जा: कोर्ट में जीत के बाद भी झारखंड में नहीं हो रही सुनवाई, पुलिस आती है तो भगा देती हैं औरतें

इस बीच अब्दुल, मशरफ़, खलील, हामिद, अलीबख्श आदि ने उस जमीन पर जबरन कब्ज़ा कर लिया। आरोपितों ने पीड़ितों को मारा-पीटा और गालियाँ दे कर भगा दिया। इसकी शिकायत पीड़ितों ने कई बार पुलिस से की लेकिन उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई।

झारखंड के गिरडीह जिले में दलित समुदाय के लोगों ने अपनी जमीन पर अवैध कब्ज़े का आरोप लगाया है। प्रशासन को दिए प्रार्थना पत्र में दलितों ने मुस्लिम पक्ष पर अपनी जमीनें हड़पने की शिकायत की है। अपनी जमीनों को वापस पाने के लिए पीड़ित परिवार 12 सितंबर से DC (जिला उपयुक्त) ऑफिस पर धरना दे रहे हैं जो अब तक जारी है। इन सभी पर अब रोजी-रोटी का भी संकट आ गया है। भाजपा ने इस मुद्दे पर राज्य सरकार की आलोचना की है। ऑपइंडिया से बात करते हुए स्थानीय भाजपा नेता ने बताया कि धरना अभी भी जारी है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मामला गिरडीह जिले के जमुआ प्रखंड का है। यहाँ डीसी ऑफिस पर धरना दे रहीं सावित्री भारती, जीरा देवी, गुलाबी देवी आदि ने बताया कि साल 1986-87 में तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा नावाडीह के कुछ दलित परिवारों को को जमुआ अंचल में 11 हजार एकड़ भूमि रहने के लिए आधिकारिक तौर पर दी गई थी। शुरुआत में पीड़ितों ने वहाँ पेड़-पौधे लगाए। नियमित तौर पर जमीन की रसीद भी कटवाई।

गिरिडीह: दलितों की जमीन पर मुस्लिमों का कब्ज़ा

इस बीच अब्दुल, मशरफ़, खलील, हामिद, अलीबख्श आदि ने उस जमीन पर जबरन कब्ज़ा कर लिया। आरोपितों ने पीड़ितों को मारा-पीटा और गालियाँ दे कर भगा दिया। इसकी शिकायत पीड़ितों ने कई बार पुलिस से की लेकिन उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई।

पीड़ितों का कहना है कि लगभग 37 वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक उनको वहाँ बसाया नहीं जा सका है। आखिरकार सभी पीड़ित कोर्ट की शरण में गए। साल 2016 में यह जमीनी विवाद गिरडीह के उपायुक्त की अदालत तक पहुँच गया। इस मुक़दमे में दलित पक्ष की तरफ से मोहन तुरी थे जबकि मुस्लिम पक्ष का नेतृत्व खलील मियाँ कर रहे थे। 3 साल तक चले मुकदमे में दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें दीं और अपने कागजात पेश किए। आखिरकार 3 साल के बाद 2019 में उपायुक्त की अदालत ने मोहन तुरी के पक्ष में फैसला सुनाया और खलील मियाँ के दावे को अवैध घोषित कर दिया।

पीड़ितों का आरोप है कि साल 2019 में उन्हें मुकदमे में जीत हासिल होने के बावजूद 4 साल बाद तक प्रशासन उनको उनकी जमीन पर कब्ज़ा नहीं दिला पाया है। मुकदमे में जीती गई जमीन पर कब्ज़े से वंचित दलित परिवारों ने आखिरकार एक बार फिर से गिरडीह उपायुक्त से 12 सितंबर, 2023 को गुहार लगाई। उनकी माँग थी कि पुलिस बल लगा कर जमीन की पैमाइश करवाई जाए और अवैध कब्जेदारों को हटा कर उन सभी को मालिकाना हक दिया जाए। जब पीड़ितों की सुनवाई नहीं हुई तब पीड़ितों ने उपयुक्त कार्यालय पर ही धरना शुरू कर दिया।

पीड़ित परिवारों की सँख्या 11 है। 12 सितंबर से धरने के बाद जब लगभग 1 माह तक उनकी कोई सुध लेने नहीं आया तो पीड़ित परिवारों ने धरनास्थल पर ही अपनी रोजी-रोटी के काम शुरू कर दिए। पीड़ित परिवारों का कहना है कि जल्द ही उनके दीपावली और छठ जैसे त्योहार आ रहे हैं। ऐसे में उन सभी के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। परिवार का गुजरा करने के लिए मंगलवार (10 अक्टूबर, 2023) से पीड़ित परिवार DC ऑफिस पर ही सूप और टोकरी बनाने लगा है। पीड़ितों का कहना है कि वो अपनी रोजी-रोटी कमाते हुए धरना जारी रखेगें।

भाजपा के चंदनक्यारी से विधायक अरुण कुमार ने ऐसी घटनाओं को अस्वीकार्य बताया है। उन्होंने जिला प्रशासन से दोषियों को चिह्नित कर के कार्रवाई की माँग की है। भाजपा MLA के अनुसार इससे पहले भी पलामू में विशेष समुदाय के द्वारा महादलित परिवारों को उनके घर से बेघर करने की घटना हो चुकी है।

दी जाती है हत्या की धमकी

ऑपइंडिया ने इस मामले में स्थानीय भाजपा नेता कामेश्वर पासवान से बात की। कामेश्वर ने हमें बताया कि जिस स्थान पर मुस्लिम पक्ष ने अवैध कब्ज़ा किया है, वहाँ से कई बार पुलिस को भगाया जा चुका है। पुलिस को भगाने में मुस्लिम महिलाएँ भी शामिल थीं। बकौल कामेश्वर उस जगह पर मुस्लिमों ने अवैध तौर पर मकान भी बनवा लिए हैं जिसे हटाने की बात करने पर खुलेआम मर्डर होने की धमकी दी जाती है।

बताते चलें कि 29 अगस्त, 2022 को झारखंड के पलामू में 50 महादलित परिवारों ने मुस्लिम भीड़ पर अपनी पिटाई कर के जमीन को जबरन कब्ज़ाने का आरोप लगाया था। तब जिस जगह पीड़ित परिवार 40 वर्षों से रहने का दावा कर रहे थे, उसे मुस्लिम पक्ष अपने मदरसे की जमीन बता रहा था। उस समय पीड़ित परिवारों ने पुलिस पर कार्रवाई में ढिलाई का आरोप लगाया था।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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