राजस्थान में एक फिजिकल ट्रेनिंग टीचर पिछले कुछ समय से परेशान थे क्योंकि अपना सेक्स बदलवाने के बाद उन्हें अपने सर्विस रिकॉर्ड में नाम और लिंग बदलवाने में दिक्कत आ रही थी। बहुत कोशिशों के बाद जब सर्विस रिकॉर्ड में नाम नहीं बदला गया तो उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट का रुख किया।
यहाँ कोर्ट ने मामले पर सुनवाई कर फैसला देते हुए कहा किसी भी इंसान के पास अपने सेक्स और लिंग की पहचान चुनने का अधिकार, उसके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग होता है। कोर्ट ने टीचर की स्थिति पर गौर करते हुए डीएम को उन्हें 2 माह के भीतर सर्टिफिकेट जारी करने को कहा और संबंधित अधिकारियों को सर्विस रिकॉर्ड में उनका नाम और जेंडर बदलने के निर्देश दिए।
Human Being’s Right To Choose Sex Or Gender One Of Most Basic Aspects Of Self Determination, Dignity And Freedom: Rajasthan High Court #RajasthanHC https://t.co/oEG8ARaPOl
— Live Law (@LiveLawIndia) May 28, 2023
जस्टिस अनूप कुमार धांद ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि लैंगिक पहचान के आधार पर भेदभाव के बिना, हर कोई सभी मानवाधिकारों का आनंद लेने का हकदार है। कोर्ट ने कहा कि इस ग्रह पर हर किसी को सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार करने का अधिकार है, चाहे वह पुरुष हो या महिला या कोई अन्य लिंग। अदालत ने कहा कि पहले केवल पुरुष और महिलाओं को ही दो बायोलॉजिकल सेक्स माना जाता थ लेकिन विज्ञान ने यह बात साबित की है इन दो जेंडरों के अलावा भी जेंडर है।
Right to equality is guaranteed by our Constitution which is our basic Fundamental Right which we inherit since we become a part of our mother’s womb. Everybody on this planet has a right to be treated with respect and dignity, be it a Male or a Female or any other gender: HC
— Live Law (@LiveLawIndia) May 28, 2023
बता दें कि इस मामले के याचिकाकर्ता का जन्म महिला के तौर पर हुआ था, जो फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर के तौर पर जनरल फीमेल कैटेगरी में नौकरी कर रही थीं। हालाँकि 32 साल की उम्र में उन्हें जेंडर आइडेंटिटी डिसॉर्डर हो गया। उन्होंने साइकेट्रिस्ट से संपर्क किया तो उन्हें लगा कि उन्हें अपना सेक्स बदलवाने की जरूरत है।
इसके बाद उन्होंने ट्रीटमेंट लिया और अपने आप को पुरुष बताना शुरू कर दिया। यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर ने उन्हें इस संबंध में सर्टिफिकेट भी दिया। इसके बाद उन्होंने अपने आधार पर भी अपना नाम बदलवाया। लेकिन जब वो अपने प्रोफेशनल जीवन में इस बदलाव को कराने गए तो कई एप्लीकेशन डालने के बाद भी उनका नाम सर्विस रिकॉर्ड में नहीं बदला गया। तंग आकर उन्होंने कोर्ट में याचिका दी।
अदालत ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के मद्देनजर, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को न केवल ट्रांसजेंडर के रूप में मान्यता प्राप्त करने का अधिकार है, बल्कि स्व-कथित लिंग पहचान का अधिकार भी है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता जो सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी करवाकर पुरुष बना। उसे पुरुष के तौर पर पहचाने जाने का और अपना नाम, लिंग बदलने का पूरा अधिकार है।
बता दें कि याचिकाकर्ता की सर्जरी के बाद शादी हुई थी और उनके दो लड़के भी हैं। ऐसे में कोर्ट ने माना कि अगर उनका सर्विस में जेंडर और नाम नहीं बदला जाता है तो उनकी पत्नी और बच्चों को सेवाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा है कि वो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के समक्ष एप्लीकेशन दें और डीएम उनके जेंडर बदलने वाले तथ्यों को जाँचकर उन्हें सर्टिफिकेट जारी करें। कोर्ट ने आदेश दिया है कि ये प्रक्रिया 60 दिन में पूरी होनी चाहिए। इसके बाद याचिकाकर्ता अपना नाम और लिंग बदलवाने के लिए संबंधित अधिकारियों पर जा सकता है। जिन्हें जल्द से जल्द याचिकाकर्ता का नाम और लिंग बदलने की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। सर्टिफिकेट आने के बाद ये सब एक माह के भीतर हो जाना चाहिए।