कभी इंजीनियरिंग-मेडिकल की तैयारी के लिए छात्र-छात्राओं के लिए सबसे पसंदीदा जगह के रूप में उभरा राजस्थान का कोटा, अब आत्महत्या की फैक्ट्री बन चुका है। यहाँ हर साल हजारों छात्र-छात्राएँ आँखों में सपने लेकर आते हैं। इनमें से कुछ विभिन्न कारणों से दुनिया को अलविदा कह जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में कोटा में आत्महत्या की प्रवृत्ति में भारी इजाफा हुआ है।
साल 2023 में कोटा में 26 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली। यह आँकड़ा डराने वाला है। पिछले साल यह आँकड़ा 15 था। यह कोटा में छात्रों में आत्महत्या करने का अभी तक का सबसे अधिक आँकड़ा है। अगर इसके लिए कोई निरोधात्मक उपाय नहीं किए गए तो इस प्रवृत्ति में कमी आने की कोई संभावना नहीं दिख रही।
छात्रों में आत्महत्या करने की बढ़ रही प्रवृत्ति के कारण वहाँ के मकान, हॉस्टल, लॉज, पीजी आदि जगहों के मालिक भी परेशान हैं। मालिकों ने मकानों एवं हॉस्टलों के कमरे के पंखों में एंटी-हैंगिंग डिवाइस लगाना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही बालकनियों और लॉबी में लोहे की जाली लगा रहे हैं, ताकि आत्महत्या के लिए कोई जगह ना मिले।
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले रमेश कुमार (बदला हुआ नाम) ऐसे ही एक बदनसीब पिता हैं। उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे को मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा भेजा था, लेकिन इस साल उनके बेटे ने अपने हॉस्टल के रूम में आत्महत्या कर ली थी। अब उन्होंने अपने छोटे बेटे को कोटा से वापस लाने के निर्णय लिया है, जो इस साल के शुरू में वहाँ गया था।
रमेश का कहना है कि उनके दोनों बच्चे अलग-अलग हॉस्टल में रहते थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने सोचा था कि वे साल 2024 में अपनी पत्नी को कोटा भेजेंगे, ताकि किराए का कमरा लेकर दोनों बच्चों को अपने साथ रख सके। इससे उन्हें घर जैसी सुविधा भी मिलती और बच्चे आराम से तैयारी कर पाते। इससे पहले ही यह दुर्घटना हो गई।
उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे इंजीनियरिंग या मेडिकल के बेस्ट कॉलेज में पढ़ें, लेकिन यह काम जीवन की कीमत लगाकर नहीं होना चाहिए। इसलिए उन्होंने अब अपने छोटे बेटे को वापस बुलाने का निर्णय लिया है। रमेश का कहना है कि अब जोखिम लेने का उनका कोई इरादा नहीं है।
इंजीनियरिंग के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए हर साल लगभग दो लाख छात्र-छात्राएँ कोटा जाते हैं। गला काट प्रतियोगिता और माता-पिता की आकांक्षाओं के बोझ तले डूबे छात्र-छात्राएँ यहाँ कोचिंग के मायाजाल में उलझे रहते हैं।
कोटा प्रशासन द्वारा एंटी हैंगिंग डिवाइस और बालकनी में नेट लगाने के निर्देश के साथ-साथ कोटा पुलिस ने हॉस्टल वार्डनों को ‘दरवाज़े पर दस्तक’ अभियान में हिस्सा लेने के लिए कहा है। इसके साथ ही मेस कर्मचारियों और टिफिन देने वालों को यह रिपोर्ट करने के लिए नियुक्त किया गया कि यदि कोई छात्र बार-बार मेस से अनुपस्थित रहता है और बिना खाए टिफिन पाया जाता है तो इसकी जानकारी दें।
शहर पुलिस ने प्रतियोगी परीक्षा के उम्मीदवारों में तनाव और अवसाद के शुरुआती लक्षणों का पता लगाने के लिए एक समर्पित स्टूडेंट सेल की स्थापना की है। अधिकारियों के मुताबिक, सेल में 11 पुलिसकर्मी शामिल हैं। उन्हें इसलिए चुना गया क्योंकि सभी की उम्र 40 के आसपास है और उनके किशोर बच्चे हैं, जिससे उन्हें छात्रों के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने में मदद मिलेगी।