उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने घोषणा की है कि कारसेवा के दौरान पुलिस की गोली से मारे गए कोठारी बंधुओं के नाम पर अयोध्या में सड़क बनवाई जाएगी। कोठारी बंधुओं की हत्या अक्टूबर 30, 1990 को कर दी गई थी। पश्चिम बंगाल में कई चुनावी रैलियों के दौरान भी भाजपा नेताओं ने बंगालियों को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के लिए कोठारी बंधुओं के बलिदान की याद दिलाई।
राज्य में भाजपा के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए कोठारी बंधुओं के परिजनों को भी आमंत्रित किया गया था। उनकी बहन पूर्णिमा कोठारी ने भाजपा के एक कार्यक्रम में हिस्सा भी लिया। उस दौरान वो अपने भाइयों और उनके बलिदान को याद कर के मंच पर ही रो पड़ीं। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बंगाल की जनता को कोठारी बंधुओं का बलिदान याद दिलाया था।
A road in #Ayodhya to be named after #Kotharibrothers, who were killed in police firing during the #RamTemple movement in 1990https://t.co/dDATgaEC30
— Zee News English (@ZeeNewsEnglish) April 7, 2021
उन्होंने कहा था कि दोनों बलिदानियों के नाम पर अयोध्या में अभी भी एक स्मारक है। उन्होंने कहा था कि कोठारी बंधुओं के भव्य राम मंदिर का स्वप्न आज पीएम नरेंद्र मोदी पूरा कर रहे हैं। राम और शरद कोठारी कारसेवा के दौरान भगवा ध्वज के साथ विवादित ढाँचे के ऊपर चढ़े थे। तब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी।
जानिए कौन हैं कोठारी बंधु, जिनके नाम पर अयोध्या में होगी सड़क
साल था 1990 और महीना था दिसंबर। पहले हफ्ते के एक दिन डाकिया आज के कोलकाता और तब के कलकत्ता के खेलत घोष लेन स्थित एक घर में पोस्टकार्ड लेकर पहुॅंचता है। बकौल पूर्णिमा कोठारी, “चिट्ठी देख मैं बिलख पड़ी। उसने मॉं और बाबा का ध्यान रखने को लिखा था। साथ ही कहा था कि चिंता मत करना हम तुम्हारी शादी में पहुॅंच जाएँगे।” यह पत्र था पूर्णिमा के भाई शरद कोठारी का जो अपने बड़े भाई रामकुमार के साथ अयोध्या में 2 नवंबर को ही शहीद हो चुके थे।
चिट्ठी शहादत से कुछ घंटों पहले ही लिखी गई थी। 22 साल के रामकुमार और 20 साल के शरद कोलकाता में अपने घर के करीब बड़ा बाजार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित रूप से जाते थे। दोनों द्वितीय वर्ष प्रशिक्षित थे। कई अन्य स्वयंसेवकों की तरह ही राम और शरद ने भी विहिप की कार सेवा में शामिल होने का फैसला किया। 20 अक्टूबर 1990 को उन्होंने अयोध्या जाने के अपने इरादे के बादे में पिता हीरालाल कोठारी को बताया।
उसी साल दिसंबर के दूसरे हफ्ते में बहन पूर्णिमा की शादी होनी तय थी। पिता ने कहा- कम से कम एक भाई तो घर पर रुको ताकि शादी के इंतजाम हो सके। पर दोनों भाई इरादे से पीछे नहीं हटे। बकौल पूर्णिमा, “आखिर में एक शर्त पर पिता राजी हुए। उनसे हर रोज अयोध्या से खत लिखते रहने को कहा। अयोध्या के लिए निकलने से पहले उन्होंने ढेर सारे पोस्टकार्ड खरीदे ताकि चिट्ठियॉं लिख सके। मुझे जब पता चला कि भाई अयोध्या जा रहे हैं तो मैं दुखी हो गई। उन्होंने वादा किया कि वे मेरी शादी तक जरूर लौट आएँगे।”
दिसंबर के पहले हफ्ते में पूर्णिमा को जो चिट्ठी मिली वो इनमें से ही एक पोस्टकार्ड पर लिखा गया था। पूर्णिमा की शादी भी उसी साल दिसंबर में हो गई। लेकिन, बहन से किया वादा पूरा करने दोनों भाई घर लौट नहीं पाए। राम और शरद ने 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से ट्रेन पकड़ी। बनारस आकर दोनों भाई रुक गए। सरकार ने गाड़ियॉं रद्द कर दी थी तो वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए।
यहॉं से सड़क रास्ता भी बंद था। 25 तारीख से कोई 200 किलोमीटर पैदल चल वे 30 अक्टूबर की सुबह अयोध्या पहुॅंचे। 30 अक्टूबर को विवादित जगह पहुॅंचने वाले शरद पहले आदमी थे। विवादित इमारत के गुंबद पर चढ़कर उन्होंने पताका फहराई। दोनों भाइयों को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठियों से पीटकर खदेड़ दिया। शरद और रामकुमार अब मंदिर आंदोलन की कहानी बन गए थे। अयोध्या में उनकी कथाएँ सुनाई जा रही थी।
दोनों भाइयों के साथ कोलकाता से अयोध्या के लिए निकले राजेश अग्रवाल के मुताबिक, वे 30 अक्टूबर को तड़के 4 बजे अयोध्या पहुॅंंचे। वे बताते हैं कि मस्जिद की गुंबद पर भगवा ध्वज फहरा कोठारी बंधुओं ने उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव की दावे की हवा निकाल दी थी। मुलायम ने कहा था, “वहॉं परिंदा भी पर नहीं मार सकता।” फिर आया 2 नवंबर का दिन। दोनों भाई विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहे थे।
जब सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे। CRPF के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। उनकी अंत्येष्टि में सरयू किनारे हुजूम उमड़ पड़ा था।
बेटों की मौत से हीरालाल को ऐसा आघात लगा कि शव लेने के लिए अयोध्या आने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके। दोनों का शव लेने हीरालाल के बड़े भाई दाऊलाल फैजाबाद आए थे और उन्होंने ही दोनों का अंतिम संस्कार किया था। भाइयों की याद में पूर्णिमा उनके दोस्त राजेश अग्रवाल के साथ मिलकर ‘राम-शरद कोठारी स्मृति समिति’ नाम से एक संस्था चलाती हैं। अब दोनों के नाम पर अयोध्या में सड़क भी होगी।