केरल हाई कोर्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध फैसला सुनाने पर SC के जस्टिस अरुण मिश्रा ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। मालंकारा चर्च में अंतिम संस्कार के मामले में जस्टिस अरुण मिश्रा ऑर्थोडॉक्स ईसाई धड़े के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के जुलाई, 2017 के फैसले के बावजूद हाई कोर्ट द्वारा यथास्थिति बरकरार रखने (यानी ऑर्थोडॉक्स धड़े के विरोधी जैकोबाइट धड़े को भी वहाँ अधिकार देने) के आदेश के बारे में बोल रहे थे। 1934 के मालंकारा चर्च संविधान के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने 3 जुलाई, 2017 को ऑर्थोडॉक्स और जैकोबाइट ईसाईयों के बीच विवाद में व्यवस्था दी थी कि उपरोक्त चर्च संविधान ऑर्थोडॉक्स धड़े को चर्चों का प्रशासन करने का अधिकार देता है।
वर्चस्व के लिए आपस में लड़ रहे ईसाई धड़े
दरअसल मामला यह है कि ऑर्थोडॉक्स धड़े ने एक सिविल सूट दायर कर एर्नाकुलम (केरल) चर्च पर अपना एकाधिपत्य स्थापित करने और किसी अन्य के इसमें हस्तक्षेप को रोकने के लिए निषेधाज्ञा जारी करने की माँग की थी। इसके निचली अदालत में ख़ारिज होने पर ऑर्थोडॉक्स धड़ा उच्च न्यायालय गया, जिसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ यथास्थिति बनाए रखने (यानी ऑर्थोडॉक्स धड़े के अतिरिक्त जैकोबाइट धड़े को भी वहाँ अधिकार देने) का अंतरिम आदेश तीन हफ्ते के लिए जारी कर दिया। इसी के विरुद्ध ऑर्थोडॉक्स धड़ा सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया।
“न्यायिक अनुशासनहीनता की अति है”
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना को न्यायिक अनुशासनहीनता की अति बताते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा, जो इस केस को सुप्रीम कोर्ट में सुनने वाली बेंच का नेतृत्व कर रहे थे, ने कहा कि उच्च न्यायालय को उच्चतम न्यायालय के आदेश के साथ छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने जोड़ा कि केरल के जजों को यह बताया जाना चाहिए कि वे भी भारत का ही अंग हैं (अतः सुप्रीम कोर्ट का निर्णय उनके लिए भी बाध्यकारी है।)